वाराणसी में पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल, मल्टीपरपज हाल का उच्चीकरण व पुनर्विकास कार्य पूरा

पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल भवन का उच्चीकरण कार्य पूरा हो गया है। रविवार को ठुमरी साम्राज्ञी की पुण्यतिथि रही और सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसका लोकार्पण करेंगे। मकबूल आलम रोड चौकाघाट स्थित पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल का क्षेत्रफल करीब नौ एकड़ है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 03:15 PM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 03:18 PM (IST)
वाराणसी में पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल, मल्टीपरपज हाल का उच्चीकरण व पुनर्विकास कार्य पूरा
मकबूल आलम रोड चौकाघाट स्थित पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल

जागरण संवाददाता, वाराणसी। पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल भवन का उच्चीकरण कार्य पूरा हो गया है। रविवार को ठुमरी साम्राज्ञी की पुण्यतिथि रही और सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसका लोकार्पण करेंगे। मकबूल आलम रोड चौकाघाट स्थित पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल का क्षेत्रफल करीब नौ एकड़ है। इसमें विभिन्न आयोजनों के लिए मल्टीपरपज हाल पूर्व से निर्मित है। शहर में यह पहला सभागार है जो किसी संगीत विभूति को समर्पित है।

परियोजना दो चरणों में क्रियान्वित है। प्रथम चरण में प्राधिकरण निधि से मल्टीपरपज हाल के उच्चीकरण व पुर्नविकास कार्य है। परियोजना के द्वितीय चरण में शासन द्वारा वित्तपोषण के माध्यम से पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल परिसर का पुनर्विकास कार्य प्रस्तावित है। प्राधिकरण निधि से प्रथम चरण के अंतर्गत 6.94 करोड़ से मल्टीपरपज हाल के उच्चीकरण व पुनर्विकास कराए गए हैं। द्वितीय चरण के तहत परिसर को दिल्ली हाट की तर्ज पर वाराणसी हाट विकसित किया जाना है। हाट क्षेत्र में 54 दुकानों के माध्यम से वाराणसी की हस्तकला व हैंडलूम का व्यापक प्रदर्शन किया जाएगा। फूड कोर्ट भी बनेगा जिसमें 32 दुकानें होंगी। 150 व्यक्तियों की क्षमता वाले आधुनिक सुविधाओं से युक्त एम्फीथिएटर का विकास किया जाएगा।

कलाकारों के इंद्रलोक का सच होगा सपना

पर्यटन, संस्कृति और व्यवसाय को एक साथ पिरोने का नाम ही सांस्कृतिक संकुल है। 17 मार्च वर्ष 2001 को जब इस शहर के उत्तरी छोर पर चौकाघाट में 50 करोड़ रुपये की लागत से सांस्कृतिक संकुल की आधारशिला रखी जा रही थी तब तबला सम्राट पद्मविभूषण पंडित किशन महाराज ने कहा था 'कलाकार काशी को अब तक 'बैकुंठलोक मानते हैैं। सांस्कृतिक संकुल बनने के बाद यह नगर कलाकारों के लिए 'इंद्रलोक हो जाएगा। तत्कालीन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री जगमोहन ने बड़े दावे से कहा था कि महानगर ही नहीं, पूरब के कलाकारों को आश्वस्त किया था कि संकुल ऐसा बनेगा जिसमें कलाकारों, संगीतकारों व विद्वानों समेत साधना और संस्कृति का पोषण हो।

सांस्कृतिक संकुल के 9.13 एकड़ के कैंपस का उद्देश्य था बनारस शैली का कला केंद्र बनाना, शास्त्रीय व लोक संगीत का विकास, सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति जनजागरण, पूर्वांचल में संस्कृति को नई ऊंचाई देना, कार्यशाला, शिक्षण-प्रशिक्षण, स्टडी सेंटर व संग्रहालय का विकास, हस्तकला सामग्री उचित दर पर पर मिल सके। प्रचार प्रसार हो सके। इसमें कल्चरल सेंटर में स्टूडियो, आर्ट गैलरी, म्यूजियम, क्लास रूम, ओपेन एयर थियेटर, आडिटोरियम व अन्य सुविधाएं विकसित की जानी थी। कन्वेंशन सेंटर में सेमिनार कक्ष, कांफ्रेंस हाल विविध आकार के। एक बड़ा कक्ष पांच सौ से साढ़े सात सौ का। के साथ ही गेस्ट हाउस और हस्त शिल्प प्रमोशन के लिए कमर्शियल कांपलेक्स व पार्किंग बनाई जानी थी, लेकिन सिर्फ एक हाल ही बन सका जो शादी विवाह या सरकारी आयोजनों तक ही सीमित रह गया।

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