वाराणसी डायर वध का ऊधम सिंह ने लिया था संकल्प, सफाईकर्मी की नौकरी के बहाने लंदन प्रस्थान की बनाई योजना
राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह अपने कार्यकाल में बनारस आए तो काशीवासियों की मांग पर अमर शहीद के हर शहादत दिवस (31 जुलाई) पर ऊधम सिंह के नाम 32 फायर की सलामी का आदेश सुनाया। सुरक्षाबलों की 32 फायर की सलामी के साथ शान से तिरंगा फहराया जाता है।
वाराणसी, कुमार अजय। साल 1919 की बैसाखी के अवसर पर जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किए गए जघन्य नरसंहार से पूरा देश दहल गया था। समूची दुनिया में निंदाओं और भत्र्सनाओं का दौर था। मगर इस जुबानी जमा खर्च से बेपरवाह एक सिख नौजवान के दिलोदिमाग पर बदले का जुनून तारी था। प्रतिशोध की ज्वाला से धधक रहे 21 साल के ऊधम सिंह (जन्म 26 दिसंबर 1898, शहादत 31 जुलाई 1940)कराची से काशी तक भटक रहे थे।
ऐसे समय में एक बोझिल सुबह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू बाल मुकुंद सिंह अपने रामापुर वाले मकान से निकल गिरजाघर चौराहे पर अड़ी लगाए बैठे थे। उसी समय दुबले-पतले, मैले-कुचैले वस्त्रों वाले एक सिख नौजवान ने उनसे गुरुद्वारा का पता पूछा। चेहरे पर थकान की रेखाओं के बाद भी उसकी आंखों में कौंधती विद्रोह की बिजलियां अनुभवी बाबू साहब की नजरों से बच न सकीं। बनारस उन दिनों बंगाल व पंजाब के क्रांतिकारियों की गतिविधियों का केंद्र था। बाल मुकुंद लगभग सभी के संपर्क में थे। उन्होंने नौजवान को पास बैठाया, जल जलपान कराकर मंतव्य साझा किया। पता चला, चट्टानी इरादों वाला वह युवक ऊधम सिंह था।
गुरुद्वारे में प्रवास के दौरान आजादी के दोनों सिपाही मिलते रहे। बाबू साहब ने पहचान मिटाने के लिए प्रयाग घाट पर ऊधम के केश मुड़ाकर राम मोहम्मद सिंह आजाद नाम दिया। डायर वध के उसके फौलादी इरादे को ताकत दी और विलायत जाने वाले पानी के जहाज पर नौकरी का जुगाड़ बनाकर लंदन पहुंचने की जुगत बताई। ऊधम को विदा करते समय वचन दिया कि बनारस में उनकी शेष स्मृतियों को पूजेंगे-पूजवाएंगे। बाबू बाल मुकुंद के पौत्र बाबू उदय सिंह बताते हैं कि 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सन हाल में आततायी जनरल डायर को गोली मारकर ऊधम ने वचन निभाया। इधर काशी में बाबू बाल मुकुंद ने गिरजाघर चौराहे पर ऊधम के नाम का दीया जलाया। 1980 में गिरजाघर चौराहे की वाटिका में अमर शहीद ऊधम सिंह की आवक्ष प्रतिमा लगाकर उनकी यादें सजोई गईं।
आज भी दी जाती है 32 फायर की सलामी
दिवंगत राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह अपने कार्यकाल में बनारस आए तो काशीवासियों की मांग पर अमर शहीद के हर शहादत दिवस (31 जुलाई) पर ऊधम सिंह के नाम 32 फायर की सलामी का आदेश सुनाया। बनारस में आज भी उनके बलिदान दिवस पर सुरक्षाबलों की 32 फायर की सलामी के साथ शान से तिरंगा फहराया जाता है।