दरख्‍त के नीचे बैठे दो पीठाधीश्वर, चंदौली के इस वटवृक्ष के नीचे 400 साल पहले बाबा कीनाराम करते थे तपस्या

गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर सीएम योगी आदित्यनाथ अघोराचार्य की तपोस्थली पहुंचे तो उस विशाल वटवृक्ष के नीचे बैठना नहीं भूले जिसके नीचे 400 साल पहले बाबा कीनाराम तपस्या करते थे। सीएम अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम के साथ पांच मिनट के लिए बैठे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 05 Dec 2021 04:57 PM (IST) Updated:Sun, 05 Dec 2021 04:57 PM (IST)
दरख्‍त के नीचे बैठे दो पीठाधीश्वर, चंदौली के इस वटवृक्ष के नीचे 400 साल पहले बाबा कीनाराम करते थे तपस्या
गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर सीएम योगी आदित्यनाथ अघोराचार्य की तपोस्थली पहुंचे तो उस विशाल वटवृक्ष के नीचे बैठना नहीं भूले

चंदौली, जागरण संवाददाता। गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर सीएम योगी आदित्यनाथ अघोराचार्य की तपोस्थली पहुंचे तो उस विशाल वटवृक्ष के नीचे बैठना नहीं भूले जिसके नीचे 400 साल पहले बाबा कीनाराम तपस्या करते थे। सीएम अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम के साथ पांच मिनट के लिए बैठे। दोनों विपरीत विचारधारा वाले पंथों के पीठाधीश्वरों के एक साथ बैठकर चर्चा करने के कई निहितार्थ निकाले गए।

बाबा कीनाराम में बाल्यकाल से आध्यात्मिक संस्कार रचे-बसे थे

अघोराचार्य बाबा कीनाराम ने 16वीं सदी के उत्तराद्रर्ध में काशी के केदारखंड स्थित उसकी मूलपीठ पर औघड़दानी शिव व भगवान दत्तात्रेय द्वारा प्रवर्तित अघोर दर्शन को पुनप्रतिष्ठित किया तो अनादि काल से मानवीय जीवन शैली का अंग रहा यह मत एक बार फिर अपने पूर्ण प्रभाव के साथ अस्तित्व में आया। अनेकानेक चमत्कारों व साधना के उच्चतम शिखर की उपलब्धियों के दम पर बाबा कीनाराम ने इसके आध्यात्मिक गुण-धर्म को सहज-सरल सूत्रों के रूप में जन-जन तक पहुंचाया।

चंदौली के रामगढ़ में रघुवंशी क्षत्रिय परिवार में अकबर सिंह के घर 1601 में जन्मे बाबा कीनाराम में बाल्यकाल से आध्यात्मिक संस्कार रचे-बसे थे। इस अवस्था में ही अनेकानेक घटनाओं ने उनकी आध्यात्मिक शक्ति का सभी को अहसास करा दिया। कुछ ही दिन बाद विरक्त किशोर घर से निकल पड़े और घूमते-फिरते बलिया के कारो गांव स्थित कामेश्वर धाम रामानुजी संप्रदाय के गृहस्थ संत शिवादास की सेवा में पहुंचे।

उन्होंने किशोर मन को परखने की दृष्टि से परीक्षा ली तो असामान्य सिद्ध पाया और मंत्र दीक्षा देने के लिए विवश हो गए। कहा जाता है कि कारो के कामेश्वर धाम में साधनारत बाबा रोजाना आधी रात को पैदल करीमुद्दीनपुर के कष्टहरणी भवानी मंदिर हो आते। उन्हें माता कष्टहरणी ने अपने हाथों प्रसाद प्रदान कर सिद्धि दी। पत्नी की मृत्यु के बाद जब महात्मा शिवाराम ने पुनर्विवाह किया तो बाबा कीनाराम का उनसे मोहभंग हो गया। गिरनार गए जहां उन्हें दत्तात्रेय के दर्शन हुए। हिमालय की कंदराओं में वर्षों कठिन तप के बाद जब बाबा कीनाराम वाराणसी आए तो हरिश्चंद्र घाट पर औघड़ बाबा कालूराम के पास पहुंचे। माना जाता है कालूराम दत्तात्रेय स्वरूप ही थे जो बड़े प्रेम से दाह संस्कार के बाद बिखरी खोपडिय़ों को पास बुलाते और चने खिलाते।

बाबा कीनाराम को यह सब व्यर्थ लगा और उन्होंने अपनी सिद्धि शक्ति से इसे रोक दिया। कुछ ही देर में कालूराम ने ध्यान लगाकर समझ लिया कि यह शक्ति केवल कीनाराम में है। उसके बाद उन्होंने अनेक परीक्षाएं लीं और असल रूप में दर्शन दिया। क्रींकुंड ले आए और बताया कि इस स्थान को गिरनार समझो। यहां सभी तीर्थों का फल मिल जाएगा। बाबा कीनाराम ने इसके बाद प्रथम गुरु शिवाराम के नाम पर चार मठ तो दूसरे गुरु औघड़ बाबा कालूराम की स्मृति में बनारस के क्रींकुंड, चंदौली के रामगढ़, गाजीपुर के देवल व जौनपुर के हरिहरपुर में चार औघड़ गद्दियां स्थापित की।

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