भदोही जिले में बनने वाली कालीनों का सबसे बडा ग्राहक टर्की, अब सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी
भारतीय कालीनों का महत्वपूर्ण ग्राहक देश रहा टर्की अब सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी साबित हो रहा है। मशीनमेड के माध्यम से पूरी दुनियां में टर्की ने पांव पसार दिया है। मशीनमेड कालीनों की चमक के आगे भारतीय हैंडमेड कालीनों को तगड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
भदोही [कैशर परवेज]। भारतीय कालीनों का महत्वपूर्ण ग्राहक देश रहा टर्की अब सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी बन गया है। मशीनमेड के माध्य से विश्व में टर्की ने पांव पसार दिया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पैठ बना चुके टर्की के मशीनमेड कालीनों की चमक के आगे हैंडमेड कालीन फीकी पड़ गई है। भारतीय कलीन निर्माताओं के लिए यह कड़ी चुनौती बन गई है।
आयातकों को खूब पसंद आ रहे मशीनमेड कालीन
मशीनमेड सस्ते व फैंसी कालीनों को आयातक खूब पसंद कर रहे हैं। इसमें टर्की सरकार का महत्वपूर्ण योगदान है। पहले तो इंपोर्ट ड्यूटी में अप्रत्याशित वृद्धि कर दूसरे देश से आने वाले माल पर ब्रेक लगा दिया। इसके बाद अपने देश में व्यवसाय स्थापित करने के लिए उद्यमियों को हर संभव सुविधा प्रदान कर प्रोत्साहित किया।
टर्की में 250 करोड़ का होता था व्यापार
टर्की देश में भारत से प्रतिवर्ष 250 से 300 करोड का बाजार करता था। मशीनमेड फैंसी कालीन तैयार होने से यह सिमटकर 19 से 20 करोड़ पर आ गया। पिछले वित्तीय वर्ष के निर्यात आंकड़े पर नजर डालें तो भारत से टर्की को महज 2.65 मिलियन डालर का निर्यात हो सका। जबकि वर्ष 2015 में 17.08 मिलियन डालर का निर्यात हुआ था।
इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ने से पीछे हट गए कालीन निर्यातक
टर्की सरकार ने वर्ष 2015 में अप्रत्याशित रूप से इंपोर्ट ड्यूटी 10 से बढ़ाकर 85 फीसद कर दिया। इसके कारण भारत सहित अन्य देशों का निर्यात पूरी तरह ठप हो गया। निर्यातकों के अनुसार पहले तो डोमोस्टेटिक मार्केट को मशीनमेड कालीनों से भर दिया बाद में विश्व बाजार में पांव पसारा। इस समय यह हाल है कि अमेरिका यूरोप सहित विश्व प्रमुख आयातक 70 से 80 फीसद टर्की से मशीनमेड कालीन खरीद रहे हैं।
पहले बेल्जियम मशीनमेड कालीनों का उत्पादन करता था जबकि बाद में हालैंड व चाइना भी मशीनमेड तैयार करने लगा। इसके बाद मशीनमेड उत्पाद को लेकर टर्की ने धमाकेदार इंट्री की। मशीन मेड सस्ते कालीनों को आयातक पसंद कर रहे हैं। इससे भारतीय हैंडमेड कालीनों को तगड़ी चुनौती मिल रही है। -संतोष गुप्ता, निर्यातक
टर्की की तरह भारत सरकार को भी कालीन उद्योग को संभालने के लिए सहयोग करना चाहिए। संकटकाल में एकमा ने सरकार के सामने यह समस्या उठाई थी। इसे गंभीरता से नहीं लिया गया जिसका परिणाम कालीन उद्योग के सामने है। अब भी सरकार पहल करे तो समस्या का समाधान निकल सकता है। -असलम महबूब, मानद सचिव (अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ)
पिछले छह साल का निर्यात आंकड़ा
वर्ष 2015 -- -- -- -- -- -- -- -- -- -124 करोड
वर्ष 2016 -- -- -- -- -- -- -- -- -- -- 58 करोड
वर्ष 2017 -- -- -- -- -- -- -- -- -- -- 44 करोड
वर्ष 2018 -- -- -- -- -- -- -- -- -- -- 49 करोड
वर्ष 2019 -- -- -- -- -- -- -- -- -- -- 38 करोड
वर्ष 2021 -- -- -- -- -- -- -- -- -- -- 19 करोड