वाराणसी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध, स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में है जिक्र, पितरों को मिलती है मुक्ति

काशी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। कुंड की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पूर्व हुई है। इसके पास पीपल का पेड़ है। पेड़ पर एक सिक्का रखवाया जाता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 09:21 AM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 01:48 PM (IST)
वाराणसी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध, स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में है जिक्र, पितरों को मिलती है मुक्ति
त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।

वाराणसी [सौरभ चंद्र पांडेय]। कहते हैं काशी में जो मनुष्य अंतिम सांस लेता है, शिव उसे अपने श्रीचरणों में स्थान देते हैं। इससे मृतात्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की व्याधियों से मुक्ति दिलाने के लिए काशी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध संस्कार किया जाता है। यह श्राद्ध कर्म काशी के अलावा कहीं और नहीं होता है। इसका वर्णन स्कंद और गरुड़ पुराण में मिलता है।

काशी के अलावा देश में कहीं नहीं होता है त्रिपिंडी श्राद्ध : काशी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। कुंड की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पूर्व हुई है। इसके पास पीपल का पेड़ है। पेड़ पर एक सिक्का रखवाया जाता है। इससे पितर ऋण मुक्त हो जाते हैं। यजमान भी पितृ ऋण से मुक्त हो जाते हैं। प्रेत बधाएं तीन प्रकार की होती हैं। इनमें सात्विक, राजस, तामस शामिल हैं। तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलवाने के लिए काला, लाल और सफेद झंडे लगाए जाते हैं।

पिशाचमोचन कुंड के नाम से फेसबुक पेज : कोरोना के कारण पुरोहितों ने आनलाइन और आफलाइन दोनों तरह से श्राद्ध कर्म की व्यवस्था की है। तीर्थ पुरोहित मुकुंद उपाध्याय बताते हैं कि पिशाचमोचन नाम से फेसबुक पेज बनाया गया है। इस पर श्राद्ध का महात्म्य, विधान, तिथिवार विवरण उपलब्ध है। पुरोहितों, कर्मकांडी ब्राह्मणों के फोन नंबर भी हैैं। गूगल मीट और जूम एप के माध्यम से पुरोहित अपने यजमानों की जिज्ञासाओं को शांत करेंगे।

तृतीया तिथि का यह है मान : आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष का मान है। यह पखवारा इस बार 16 दिन का है। तृतीया तिथि का मान दो दिन होने के कारण एक दिन की वृद्धि हो रही है। तृतीया तिथि 23 सितंबर को सुबह 5:58 बजे से 24 सितंबर को सुबह 7:17 बजे तक रहेगी। जिस तिथि को श्राद्ध कर्म किया जाता है, उस तिथि का मध्याह्न में मिलना जरूरी है। इस कारण 23 सितबंर को तृतीया तिथि जबकि 24 को चतुर्थ तिथि का श्राद्ध कर्म होगा।

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