पूर्वांचल में प्रचलित हो रही संडा विधि से धान की रोपाई, किसानों को अधिक मुनाफे का भरोसा

पूर्वी उत्तर प्रदेश कुछ जिलों में संडा विधि से धान की खेती किसानों के बीच काफी प्रचलित हो रही है। कृषि जलवायु में धान की फसल को जुलाई के प्रारंभ से लेकर मध्य अक्टूबर (100 दिनों तक ) अत्यधिक नम अवस्था का सामना करना पड़ता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 06:40 AM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 06:40 AM (IST)
पूर्वांचल में प्रचलित हो रही संडा विधि से धान की रोपाई, किसानों को अधिक मुनाफे का भरोसा
संडा विधि से धान की खेती किसानों के बीच काफी प्रचलित हो रही है।

बलिया, जेएनएन। पूर्वी उत्तर प्रदेश कुछ जिलों में संडा विधि से धान की खेती किसानों के बीच काफी प्रचलित हो रही है। कृषि जलवायु में धान की फसल को जुलाई के प्रारंभ से लेकर मध्य अक्टूबर (100 दिनों तक ) अत्यधिक नम अवस्था का सामना करना पड़ता है। इन क्षेत्रों में धान की खेती उपरहान (ऊंची जमीन) या नीचले खेतों में की जाती है।

उपरहार खेतों में मानसून आने के बाद लंबे ब्रेक की स्थिति में धान की फसल को पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। नीचले खेतों में अधिक पानी होने से रोपाई में बिलंब होता है। दोनों परिस्थितियों में धान के कल्ले कम निकलते हैं। बढ़वार अच्छी नहीं होने से पैदावार कम हो जाती है। मौसम में ग्लोबल वार्मिंग एवं जल की कमी को देखते हुए कृषक डबल ट्रांसप्लांटिंग करने की कोशिश कर रहा है, जिसे संडा रोपाई कहा जाता है।

इस विधि से करें रोपाई

पौधे से कल्लों को अलग करके रोपाई दोबारा की जाती है। जल की अधिकता एवं कमी दोनों स्थितियों के साथ अधिक तापमान को सहने की क्षमता बढ़ जाती है। काशी हिंदूू विश्वविद्यालय वाराणसी द्वारा किए शोध परीक्षण में तीन सप्ताह की नर्सरी सामान्य दूरी पंक्ति से पंक्ति 20 सेमी, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी पर रोपाई करें एवं दूसरी रोपाई पहले रोपे गये धान के तीन सप्ताह बाद करें। इससे अधिक दिन के पौधे के कल्ले लगाने पर उपज मे गिरावट आ जाती है। दूसरी बार रोपाई की दूरी नजदीक रखे पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे कि दूरी 10-10 सेमी रखनी चाहिए।

बोने कृषि अधिकारी : इस विधि से खेती करने से किसानों के कई लाभ हैं। धान में पइया निकलने की संभावना बहुत कम होती है। रोग व खेत में पानी लगने की स्थिति में भी पौधों में गलन कम होती है। पैदावार भी सवा से डेढ़ गुना अधिक होती है। -प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, कृषि विज्ञान केंद्र सोहांव।

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