उत्तर प्रदेश में दलदल पर बने पहले रेलवे ट्रैक पर 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ी रेलगाड़ी
बलिया से बांसडीहरोड रेलखंड पर तीन किलोमीटर (किमी संख्या 59 से 62) हिस्सा दलदल है। इसे पार करते समय यात्रियों की सांसें थम सी जाती थीं। यहां ट्रेन 10 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा की रफ्तार से चल ही पाई।
बलिया, जागरण संवाददाता। भारतीय रेलवे ने बलिया जिले में एक शानदार मुकाम हासिल किया है। बलिया से बांसडीहरोड रेलखंड पर तीन किलोमीटर (किमी संख्या 59 से 62) हिस्सा दलदल है। इसे पार करते समय यात्रियों की सांसें थम सी जाती थीं। यहां ट्रेन 10 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा की रफ्तार से चल ही पाई। अब इस खतरनाक ट्रैक को 50 किमी की रफ्तार से दौड़ने लायक बना दिया गया है। ये मुमकिन हुआ है बैडफारमेशन ट्रीटमेंट से जिसके जरिए रेलवे को काफी फायदा होने जा रहा है। रेलवे ट्रैक के अगल अगल काफी दूर तक जल और दलदल इस चुनौती को अब तक गंभीर बनाए हुए थे।
बलिया जिला गंगा और सरयू आदि नदियों से घिरा होने के साथ ही हरियाली से परिपूर्ण है। बलिया जिले में अनुकूल वातावरण होने से पर्याप्त बारिश और बाढ़ का दौर भी रहता है। देवारा क्षेत्र से लेकर काफी दूर तक पानी का जलस्तर भी काफी ऊंचा है। इसी वजह से जिले में काफी दूर तक दलदली हालात भी लंबे समय से बने रहे हैं। इसकी वजह से रेलवे ट्रैक के साथ ही सड़कों को बनाने में काफी चुनौती का सामना करना पड़ता रहा है। लिहाजा रेलवे की गति को बढ़ाने के लिए प्रयासों को अमलीजामा पहनाया गया तो यह परिणाम सामने आया है।
विशेषज्ञों के अनुसार यहां काफी दूर तक काली मिट्टी है और रेलवे ट्रैक पानी से घिरा रहता है। काफी दूर तक इलाका डूब क्षेत्र घोषित होने की वजह से रेलवे दोहरीकरण कर रहा है। वर्ष 2019 में रेलवे ट्रैक धंस गया तो अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं। इसके चलते ट्रेनें दूसरे ट्रैक पर न्यूनतम गति से गुजारी जाने लगीं, लेकिन समस्या बढ़ती गई। आरडीएसओ (रेलवे डिजाइन एंड स्टैंडर्ड आर्गनाइजेशन) ने सर्वे के बाद बैडफारमेशन ट्रीटमेंट (आस्टिया की तकनीक) से ट्रैक को गतिमान बनाने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। दिल्ली की एचएमबीएस टेक्सटाइल प्राइवेट लिमिटेड को प्रोजेक्ट का जिम्मा सौंपा गया। जीओ ग्रिड और जीओ टेक्सटाइल की मदद से बेहतर ट्रैक तैयार कर लिया गया है।
ऐसे हुआ दलदल ट्रैक का बैडफारमेशन ट्रीटमेंट : ट्रैक के नीचे की काली मिट्टी डेढ़ मीटर गहराई तक निकाली गई। आठ मीटर चौड़ा क्षेत्र समतल किया गया। फिर जीओ टेक्सटाइल फाइबर टुकड़ा बिछाया गया। इस पर सफेद बालू की मोटी लेयर चढ़ाई गई। इसके ऊपर तीन किलोमीटर लंबा और आठ मीटर चौड़ा जीओ ग्रिड फाइबर बिछाया। फिर जीरो से 20 एमएम तक आकार के मिक्स स्टोन चिप्स (विशेष स्वायल) की डेढ़ मीटर मोटी परत चढ़ाई गई है। इसके ऊपर गिट्टी बिछाकर स्लीपर व पटरी रखकर जाम कर दिया गया। बलिया से छपरा तक दोहरीकरण कार्य 450 करोड़ में चल रहा है।
असम, महाराष्ट्र और राजस्थान में हुआ इस तकनीक पर काम : पूवरेत्तर रेलवे के निर्माण इकाई के अधिशासी अभियंता शिवशरण ने बताया कि उत्तर प्रदेश में यह तकनीक नई है। इस विधि से आइडीएसओ वसई रोड से कल्याण (महाराष्ट्र) व पुणो अहमदनगर रेल खंड (महाराष्ट्र), बंगलुरू से हसन रेल खंड (कर्नाटक) जबकि वलसद से बड़ोदरा रेलवे लाइन (गुजरात) पर प्रभावी की गई है। उप्र में कई इलाके हैं, जहां इससे ट्रैक को ठीक किया जा सकता है।
हरियाणा से मंगाया जीओ ग्रिड: प्रोजेक्ट में प्रयुक्त जीओ ग्रिड को हरियाणा के सोनीपत से मंगाया गया था। यह प्लास्टिक का जाल होता है। उच्च गुणवत्ता की प्लास्टिक होने से इसकी स्ट्रेंथ अधिक होती है। सड़ने का झंझट नहीं होता। जीओ टेक्सटाइल भी हरियाणा से आई। यह विशेष तरह के टेक्सटाइल (प्लास्टिक कोटेट) लेयर होती है, जो पानी को रोकता है।
बोले रेलवे अधिकारी : रेलवे का यह प्रयोग फिलहाल बलिया से छपरा रेलखंड स्थित बांसडीहरोड के पास सफल हो गया है। इस ट्रैक को और तेज बनाने की कोशिश चल रही है। -विवेक नंदन, अधिशासी अभियंता, बलिया निर्माण, पूवरेत्तर रेलवे।