पितृपक्ष : पितरों को तर्पण प्रदान कर जीवंत हुई कृतज्ञता की परंपरा, तिलांजलि देने को उमड़े कृतज्ञालु

कृतज्ञता ज्ञापित करने का पखवारा पितृपक्ष की शुरुआत मंगलवार को काशी में उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर तर्पण के रूप में जीवंत हो गई। प्रातःकालीन बेला से दोपहर तक लोगों ने अपने ज्ञात- अज्ञात पितरों को तिलांजलि व जलांजलि प्रदान की।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 02:09 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 05:24 PM (IST)
पितृपक्ष : पितरों को तर्पण प्रदान कर जीवंत हुई कृतज्ञता की परंपरा, तिलांजलि देने को उमड़े कृतज्ञालु
पितृपक्ष की शुरुआत मंगलवार को काशी में उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर तर्पण के रूप में जीवंत हो गई।

वाराणसी, जेएनएन। अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का पखवारा पितृपक्ष की शुरुआत मंगलवार को काशी में उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर तर्पण के रूप में जीवंत हो गई। प्रातःकालीन बेला से दोपहर तक लोगों ने अपने ज्ञात- अज्ञात पितरों को तिलांजलि व जलांजलि प्रदान की।

धर्म नगरी काशी वैसे तो धर्म आध्‍यात्‍म और मोक्ष की नगरी के तौर पर पहचानी जाती है लेकिन मोक्ष नगरी के तौर पर श्राद्ध के मौके पर धर्म आध्‍यात्‍म से परे पुरखो को तर्पण की मंशा से आने वाले लोगों से काशी गुलजार हो जाती है। परंपराओं के निर्वहन के क्रम में अमूमन सभी प्रमुख घाटों पर परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। मान्‍यता हालांकि कुछ प्रमुख गंगा घाटों की ही है। जबकि पिशाच मोचन पर भी आस्‍था का रेला पूरे पखवारे बना रहता है। मान्‍याताओं के मुताबिक ही आस्‍था का क्रम पहले दिन से ही वाराणसी में गंगा तट के प्रमुख घाटों पर नजर आने लगा है। इस लिहाज से आस्‍था का क्रम पूरे पखवारे काशी में परंपरा के अनुसार पूरा होगा। 

  

इस निमित्त मुख्यतः तुलसीघाट, केदारघाट, शीतला, दशाश्वमेध, सिंधिया प्रह्लाद , पंचगंगा घाटों पर लोगों ने जौ के आटे का पिंड बनाकर सविधि मंत्रोच्चारण के बीच मां गंगा की जलधार में अर्पित किया। कुछ ने अकेले तो कुछ ने समूह में यह कृत्य करने के बाद अपने पितरों को तिल की अंजलि प्रदान की। कर्मकांड की परंपरा के अनुसार पितरों को जल का अर्पण करने के पूर्व देवों, सप्त ऋषियों व दिव्य पुरुषों को भी क्रमश: चावल व जौ के साथ तर्पण किया गया। इसी क्रम में आजीवन कुंवारे व ब्रह्मचारी रहने वाले भीष्म पितामह को भी तर्पण दिया गया। पितृ -तर्पण का समापन भगवान भास्कर को जल देने के बाद दशों दिशाओं व भगवान विष्णु से प्रार्थना - याचना कर किया गया। इस दौरान तर्पण करने वाले लोगों ने घाट पर ही मुंडन व स्न्नान कर अपने को पवित्र करने की विधि निभाई।

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