वाराणसी में गेहूं खरीद में तीन वर्षों का टूटा रिकॉर्ड, नकदी के इंतजाम के लिए किसान बेच रहे अपनी फसल
कोरोना महामारी के कारण काशी में इस बार गेहूं की खरीद में पिछले तीन वर्षों का रिकॉर्ड टूटता दिखाई दे रहा है। आंकड़े बता रहे हैं कि तीन वर्ष पहले वित्तीय वर्ष 2019-20 में करीब चार हजार एमटी गेहूं की खरीद हुई थी। हालांकि उस वर्ष परिस्थितियां सामान्य थी।
वाराणसी, जेएनएन। दुकानों पर समर्थन मूल्य से ज्यादा का भाव मिलने के बावजूद क्रय केंद्र पर किसान अपनी फसल दे रहे हैं। आंकड़ों में देखें तो 55 सौ एमटी गेहूं की खरीद हुई अब तक इस वर्ष में। 08 सौ एमटी गेहूं की खरीद हुई गत वर्ष में। 587.5 फीसद इस बार अधिक हुई गेहूं की खरीद अब तक हुई है। 41 सौ एमटी गेहूं की खरीद हुई थी 2019 में तो 1975 रुपये प्रति क्विंंटल सरकार का समर्थन मूल्य है। 21 सौ प्रति क्विंटल का भाव दुकानदार दे रहे हैं।
कोरोना महामारी के कारण काशी में इस बार गेहूं की खरीद में पिछले तीन वर्षों का रिकॉर्ड टूटता दिखाई दे रहा है। आंकड़े बता रहे हैं कि तीन वर्ष पहले वित्तीय वर्ष 2019-20 में करीब चार हजार एमटी गेहूं की खरीद हुई थी। हालांकि उस वर्ष परिस्थितियां सामान्य थी। फिलहाल गत दो वर्षों से परिस्थितियां प्रतिकूल चल रही हैं। इस कारण किसान अपनी फसल को बेंच रहे हैं। वहीं पिछले वर्ष महामारी की समस्याओं का आभास नहीं होने के कारण किसानों ने अपनी फसल को नहीं बेंचा था।
किसानों के पास नकदी की है कमी
कोरोना महामारी के दूसरे लहर में किसान अपनी फसल इसलिए भी बेंच रहे हैं कि उनके पास नकदी की कमी है। अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए वह अपनी फसल को बेंचकर नकदी का इंतजाम कर रहे हैं।
फसल का 70 फीसद क्रय केंद्र को शेष 20 फीसद दुकानों पर दे रहे किसान
किसान अपनी फसल का 70 फीसद भाग सरकार द्वारा स्थापित किए गए गेहूं क्रय केंद्र पर विक्रय कर रहे हैं। वहीं शेष 20 फीसद फसल फुटकर दुकानदारों को बेंच रहे हैं। मजे की बात यह है कि गांव में किसानों को फुटकर दुकानदार गेहूं का भाव 21 सौ रुपये प्रति क्विंटल तक दे रहे हैं फिर भी किसान सरकारी क्रय केंद्र पर समर्थन मूल्य 1975 के भाव विक्रय कर रहे हैं। इस पर किसानों ने बताया कि क्रय केंद्र गेहूं बेचने के तीन दिन बाद खाते में पैसा आ जा रहा है। वहीं फुटकर दुकानदार फसल तो हमारी एकमुश्त ले लेंगे लेकिन फसल का मूल्य टुकड़ो में देंगे। इस कारण हम जरूरी सामान खरीदने के लिए उनको नकदी न देकर सामान के बदले गेहूं दे रहे हैं। शेष 10 फीसद आपातकाल के लिए अपने बखारों में संचय करके रख रहे हैं।
सरकारी राशन से चल जाता है रसोई का काम
रजनहिया गांव के किसान बबलू पटेल ने बताया कि गत पांच वर्षों से हम लोग अपनी फसल के बजाय सरकारी राशन का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। इधर दो वर्षों से सरकार वर्ष में दो महीने मुफ्त राशन भी बांट रही है। ऐसे में हम अपनी फसल को नकदी में बेंचकर अन्य कार्यों में इस्तेमाल करते हैं।
बोले किसान
सरकारी क्रय केंद्र पर हमने 12 क्विंटल गेहूं बेचा है। सरकार की ओर से तीन दिन में पैसा खाते में जमा कर दिया गया। यदि इतनी फसल फुटकर दुकानों पर 225 रुपये ज्यादा के दर से बेंचते तो पैसा फंसने का भी डर रहता है।
गुलाब प्रजापति, चक्का।
नकदी के आवश्यकता की पूर्ति फसल बेंचकर करते हैं। रसोई के राशन की आपूर्ति सरकारी राशन से हो जाती है। फिर ज्यादा मात्रा में अन्न भंडारण क्यों करें।
रामबली, मोहनपुर।