...और इस तरह Ballia के इस गांव के लोगों के लिए कल्याणकारी हो गई एक देवी मूर्ति

नवरात्र में हम आपको एक ऐसे ही स्थान के बारे बता रहे हैं जहां स्थापित देवी मां की मूर्ति को कभी तस्करों ने अनिष्टकारी बता कर अपने हाथ करना चाहा था लेकिन एक आदमी की आस्था ने उस मूर्ति को तस्करों के हाथ में जाने से बचा लिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 08:50 AM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 09:35 AM (IST)
...और इस तरह Ballia के इस गांव के लोगों के लिए कल्याणकारी हो गई एक देवी मूर्ति
एक आदमी की आस्था ने उस मूर्ति को तस्करों के हाथ में जाने से बचा लिया।

बलिया, जेएनएन। मानव जीवन में आंस्था का बड़ा ही महत्व रहा है। मन में आस्था है तो पत्थर भी भगवान हैं, नहीं हो तो उसके लिए कोई भी धर्मिक स्थान महज पिकनिक स्पॉट है। नवरात्र में हम आपको एक ऐसे ही स्थान के बारे बता रहे हैं, जहां स्थापित देवी मां की मूर्ति को कभी तस्करों ने अनिष्टकारी बता कर अपने हाथ करना चाहा था, लेकिन एक आदमी की आस्था ने उस मूर्ति को तस्करों के हाथ में जाने से बचा लिया। आज वही देवी मां की मूर्ति और मंदिर पूरे क्षेत्र के लिए आंस्था का केंद्र है।

बैरिया तहसील के मुरलीछपरा ब्लाक में एक गांव है जगदीशपुर, वही यह मूर्ति स्थापित है। गांव के लोग बताते हैं कि लगभग 15 दशक पूर्व पश्चिम बंगाल में एक मारवाड़ी परिवार के लोग अपने यहां यह मूर्ति स्थापित करने के लिए लाए थे। वहां उस मूर्ति को अपने हाथ करने के चक्कर में कुछ तस्कर पड़ गए। उन्होंने देवी मूर्ति का हाथ छोटा-बड़ा कहकर उसे अनिष्टकारी बताया। उनकी बातों में आकर उक्त मारवाड़ी परिवार ने देवी की मूर्ति को स्थापित नहीं कराया। उस वक्त उसी मरवाड़ी के यहां जगदीशपुर गांव के शिव शंकर पांडेय रहते थे। उन्होंने वह मूर्ति गांव में स्थापित कराने ने लिए मांग लिया। जब वह उक्त मूर्ति को लेकर अपने गांव आए तो वही तस्कर यहां भी पहुंच गए और गांव के लोगों को मूर्ति को अनिष्टकारी बताते हुए भड़काना शुरू कर दिया।

तस्करों की बातों में गांव के लोग भी आ गए। अंत में गांव की ओर से यह निर्णय लिया गया कि इस मूर्ति को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाए। अगले दिन ऐसा कर भी दिया गया, लेकिन इस कार्य से शिव शंकर पांडेय का मन व्याकुल हो चला। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि जिस दिन मूर्ति को गंगा में डाला गया, उसी रात में वही तस्कर गंगा नदी से उस मूर्ति को निकालने में जुटे थे। ग्रामीणों ने उन्हें पकड़ कर जब कड़ाई से पूछना शुरू किया तब तस्करों ने इस राज को खोला कि वे इस मूर्ति के पीछे वे बंगाल से ही लगे हैं। यह मूर्ति काफी कीमती है।

इस सच्चाई को जानने के बाद गांव के लोग पुन: उस मूर्ति को नदी से छान कर गांव लेकर आए और एक मंदिर का निर्माण कराकर उसमें स्थापित किया। अब वहां से पूरे गांव की ही नहीं, आसपास के गांव की भी आंस्था जुड़ चुकी है। क्षेत्रीय लोग घर में कोई भी नया काम करते है तो पहले इस मंदिर में जरूर जाते हैं। सभी के अंदर यह विश्वास है कि यहां मत्था टेकने वालों का सदैव कल्याण होता है। नवरात्र में वहां रोज लोगों की भीड़ हो रही है।

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