आजादी की मनौती के रूप में 74 साल से हो रही जौनपुर की यह रामलीला

बात वर्ष 1942 की है जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का एलान किया। इसमें खेत-खलिहान से जुड़े नौजवान डा. दयाशंकर लाल भी कूद पड़े। उनका बागी तेवर देख ब्रिटिश सरकार ने पकड़ा और वाराणसी केंद्रीय कारागार में डाल दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 08:38 PM (IST) Updated:Thu, 14 Oct 2021 08:38 PM (IST)
आजादी की मनौती के रूप में 74 साल से हो रही जौनपुर की यह रामलीला
जौनपुर में रामलीला ऐसी है जो आज भी आजादी की मनौती के रूप में 74 साल से अनवरत जारी है।

जौनपुर [आनंद स्वरूप चतुर्वेदी]। असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है विजयदशमी। भगवान श्रीराम की रावण पर विजय का पर्व है दशहरा। हमारे देश ने भी 75 साल पहले अभिमान, अत्याचार और असत्य से भरे ब्रिटिश शासन पर जीत हासिल की थी। आजादी मिली थी हमें। स्वाधीनता संग्राम की तमाम गाथाएं हैैं, अमर कहानियां हैैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक गांव की रामलीला ऐसी है जो आज भी आजादी की मनौती के रूप में 74 साल से अनवरत जारी है। यह रामलीला है कबूलपुर गांव की।

गुलामी की बेडिय़ों से मां भारती की आजादी को लेकर लोगों की आंखों में अलग-अलग सपने थे, अलग-अलग आशाएं थीं। इनमें ही शामिल था डा. दयाशंकर का संकल्प, जिसे देश के आजाद होने पर उन्होंने इरादे में बदला और कबूलपुर गांव में रामलीला शुरू कराई जो आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारतीयों को उनके संकल्पों की याद दिलाती है।

1942 में स्वाधीनता संग्राम में कूदे: बात वर्ष 1942 की है जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का एलान किया। इसमें खेत-खलिहान से जुड़े नौजवान डा. दयाशंकर लाल भी कूद पड़े। उनका बागी तेवर देख ब्रिटिश सरकार ने पकड़ा और वाराणसी केंद्रीय कारागार में डाल दिया। सख्ती की गई, लेकिन इसने उनके संकल्पों को दृढ़ किया। ऐसे समय में धर्मानुरागी डा. दयाशंकर ने प्रभु श्रीराम का स्मरण किया और उनसे रामलीला कराने की मन्नत के साथ देश की आजादी मांग ली। श्रद्धा और विश्वास के साथ सलाखों के पीछे जय सियाराम, जय जय सियाराम गुनगुनाते और संवाद भी लिखते जाते। उन्होंने रामचरित मानस व राधेश्याम रामायण के आधार पर पटकथा लिखी। देश आजाद हुआ जिसने डा. दयाशंकर के भक्तिभाव को समृद्ध किया।

समिति बनाकर शुरू कराई रामलीला: अगले ही साल 1948 में उन्होंने पैतृक गांव कबूलपुर में श्रीनारायण लीला समिति का गठन कर रामलीला का शुभारंभ कर दिया। राष्ट्र-धर्म के भावों में पगी प्रभु श्रीराम की लीला ने थोड़े ही समय में पूरे जिले में अलग पहचान हासिल कर ली। वर्ष 1978 में उनके निधन के बाद इस रामलीला का मंचन कबूलपुर बाजार में किया जाने लगा जो आज भी जारी है। इसमें भूमिका निभाने वाले जगन्नाथ चौहान, अखिलेश सिंह व अशोक कुमार गुप्ता बताते हैैं कि इस अनूठी रामलीला से लगभग दो दर्जन गांव के लोगों की भावना जुड़ी है। मंचन के दौरान प्रभु श्रीराम के साथ मां भारती का जयकारा राष्ट्रभक्ति के भावों को भी प्रबल कर जाता है।

इंदिरा जी के हाथों मिला ताम्र पत्र: स्वतंत्रता सेनानी डा. दयाशंकर के इस भाव को पूरे देश ने प्रणाम किया। देश की आजादी के 25वें वर्ष में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया। संवाद को ख्यात साहित्यकार डा. रामकुमार वर्मा, महादेवी वर्मा, आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे विद्वानों की भी सराहना मिली।

जनसरोकारों से भी है नाता: कबूलपुर की रामलीला समिति के संस्थापक सदस्य दुर्गा प्रसाद गुप्त, अध्यक्ष योगेश श्रीवास्तव, महामंत्री प्रदीप श्रीवास्तव, रोमी श्रीवास्तव, उमेश मिश्र आदि ने बताया कि समिति रामलीला-कृष्णलीला के मंचन के साथ ही स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण व अन्य सामाजिक सरोकारों में सक्रिय भागीदारी करती है।

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