फसलों की सिंचाई पर निर्भरता कम कर देगा यह बैक्टीरिया, आइसीएआर के विज्ञानियों की खोज

विज्ञानियों के हाथ एक ऐसा जीवाणु (बैक्टीरिया) लगा है जो कृषि क्षेत्र में ऊर्जा जल और अर्थ प्रबंधन को पूरी तरह बदल सकता है। इस बैक्टीरिया के प्रयोग से सरसों की फसल बिना सिंचाई लहलहाएगी तो गेहूं की फसल को दो सिंचाई की ही आवश्यकता होगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 05 Dec 2021 06:19 PM (IST) Updated:Sun, 05 Dec 2021 06:29 PM (IST)
फसलों की सिंचाई पर निर्भरता कम कर देगा यह बैक्टीरिया, आइसीएआर के विज्ञानियों की खोज
आइसीएआर, मऊ के परिसर में खेत में गेहूं की फसल पर बैक्टीरिया के परीक्षण का परिणाम बेहद सकारात्मक आया है।

वाराणसी, शैलेश अस्थाना। विज्ञानियों के हाथ एक ऐसा जीवाणु (बैक्टीरिया) लगा है, जो कृषि क्षेत्र में ऊर्जा, जल और अर्थ प्रबंधन को पूरी तरह बदल सकता है। इस बैक्टीरिया के प्रयोग से सरसों की फसल बिना सिंचाई लहलहाएगी तो गेहूं की फसल को दो सिंचाई की ही आवश्यकता होगी। यह बैक्टीरिया फसल को मुरझाने या सूखने नहीं देता है। इससे सिंचाई में होने वाले एक तिहाई खर्च की बचत होगी तो ईंधन (डीजल और बिजली) की खपत भी घटाई जा सकेगी। सबसे बड़ी बात पीने योग्य भूगर्भ जल का सिंचाई में इस्तेमाल रोका जा सकेगा। उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के कुशमौर स्थित राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (आइसीएआर) के विज्ञानियों ने इस बैक्टीरिया को उच्च लवण सांद्रता (हाई साल्ट कंसनट्रेशन) वाले क्षेत्र से खोजा है।

ब्यूरो के निदेशक डा. अनिल कुमार सक्सेना के निर्देशन में वरिष्ठ विज्ञानी डा. हिलोल चकदर व प्रधान विज्ञानी डा. आलोक श्रीवास्तव ने अध्ययन में पाया कि यह एक पुरा बैक्टीरिया है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह बैक्टीरिया के ज्ञात इतिहास से भी पुराना है। बैक्टीरिया के गुणों को देखकर विज्ञानी हैरान रह गए। उन्होंने प्रयोग में पाया कि गेहूं और सरसों के बीज को इस बैक्टीरिया से उपचारित कर बोआई करने से यह उन्हें इतनी शक्ति प्रदान करता है कि सरसों की फसल को शीत या आसपास के खेतों से महज नमी मिलती रहे तो सिंचाई की जरूरत नहीं रह जाती। गेहूं की फसल को भी तीन के बजाय दो सिंचाई की आवश्यकता ही रह जाती है। डा. श्रीवास्तव ने अपना यह शोध हाल ही में बीएचयू में 15वीं कृषि विज्ञान कांग्रेस में प्रस्तुत किया था।

डा. श्रीवास्तव ने बताया कि इस बैक्टीरिया से पानी, ईंधन, परिवहन और मानव श्रम की बचत कर गेहूं की खेती की लागत को करीब 33 फीसद तक घटाया जा सकता है। गेहूं विश्व में सबसे ज्यादा उपजाई जाने वाली फसल है। सिर्फ एक सिंचाई कम करके वैश्विक स्तर पर पानी, ईंधन और इसमें लगने वाले मानवश्रम की बचत का अनुमान लगाया जा सकता है।

इस तरह काम करता है बैक्टीरिया

यह बैक्टीरिया पौधों की जड़ों के साथ मिट्टी में कालोनी बना लेता है। यह पौधों के लिए मिट्टïी में उपलब्ध आवश्यक पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। साथ ही, इसके जीन में ऐसे गुण पाए जाते हैैं जो पानी की कमी के कारण पौधों में पैदा होने वाले तनाव के खिलाफ मजबूती प्रदान करते हैैं। यह बैक्टीरिया पौधों को इतना ताकतवर बनाता है कि विपरीत मौसम में भी फसल लहलहाती रहती है।

भविष्य की योजनाओं पर काम कर रहा ब्यूरो

ब्यूरो के निदेशक डा. अनिल कुमार सक्सेना ने बताया कि अब इस बैक्टीरिया के उपयोग से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में खेती करने की संभावनाओं पर काम कर रहे हैं। इसके लिए बैक्टीरिया की जीनोम सीक्वेंसिंग भी की जा रही है। गेहूं, सरसों के अलावा अन्य फसलों की सिंचाई में इस बैक्टीरिया की मदद से जल प्रबंधन से होने वाली बचत का अध्ययन किया जा रहा है। यदि सफलता मिली तो खेती की लागत कम कर किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में यह खोज क्रांतिकारी साबित होगी।

ब्यूरो से ले सकते हैैं बैक्टीरिया का कल्चर

विज्ञानियों ने लैब के बाद ब्यूरो के परिसर में खेत में भी इस बैक्टीरिया का परीक्षण किया और सफलता मिलने के बाद जैव सूत्रीकरण कर बीज का कल्चर तैयार किया है। बैक्टीरिया से उपचारित बीज की कीमत में कोई खास अंतर नहीं आता। डा. सक्सेना ने बताया कि इन दिनों रबी की फसल की बोआई हो रही है। किसान चाहें तो बैक्टीरिया को ब्यूरो से प्राप्त कर गेहूं और सरसो के बीजों का उपचार कर सिंचाई की लागत को कम कर सकते हैैं।

राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो की लैब में प्रयोग करते डा. हिलोल चकदर (बाएं)ःः स्रोत-स्वय़ं

chat bot
आपका साथी