गंगा के रास्ते बनारस तक इस बार राजमहल नहीं बल्कि पांडव पर सवार होकर आए विदेशी सैलानी

कुछ दिनों पूर्व राजमहल गंगा के रास्ते विदेशी सैलानियों को लेकर बनारस आया था तो वहीं अब पांडव नामक क्रूज से 24 सैलानी आए हैं।

By Edited By: Publish:Fri, 22 Nov 2019 02:04 AM (IST) Updated:Fri, 22 Nov 2019 09:27 AM (IST)
गंगा के रास्ते बनारस तक इस बार राजमहल नहीं बल्कि पांडव पर सवार होकर आए विदेशी सैलानी
गंगा के रास्ते बनारस तक इस बार राजमहल नहीं बल्कि पांडव पर सवार होकर आए विदेशी सैलानी

वाराणसी, जेएनएन। गंगा के रास्ते बनारस का पर्यटन अब फलने-फूलने लगा है। जहां कुछ दिनों पूर्व राजमहल गंगा के रास्ते विदेशी सैलानियों को लेकर बनारस आया था तो वहीं अब पांडव नामक क्रूज से 24 सैलानी आए हैं। गुरुवार की दोपहर उनका जहाज खिड़किया घाट से पहले लंगर डाला तो बोट के सहारे सैलानी किनारे आए। दिन में सारनाथ का भ्रमण किया तो देर शाम गंगा आरती में शामिल हुए। सैलानी शुक्रवार को अस्सी घाट से बनारस की सुबह का नजारा लेंगे। देर शाम बाबतपुर एयरपोर्ट से कोई दिल्ली के लिए रवाना होगा तो कोई वापस कोलकता लौट जाएगा। क्रूज के पायलट जयंत मंडल ने बताया कि 24 सैलानियों को लेकर बनारस आए हैं।

पर्यटन विभाग का पूरा पैकेज बना हुआ है। प्रत्येक सदस्य ने करीब छह लाख रुपये भुगतान किया है जिसमें विभिन्न स्थानों का भ्रमण, रहने व खाने के अलावा अन्य सुविधाएं शामिल है। क्रूज में फाइव स्टार होटल जैसी सुविधा दी जा रही है। 12 केबिन बने हैं। प्रत्येक केबिन में दो सदस्य रहते हैं। दिन में भ्रमण के बाद क्रूज में ही रात गुजारते हैं। इसको ध्यान में रखते हुए राजघाट पुल से कुछ दूर पहले की क्रूज को गंगा में लंगर डालकर रोक दिया गया है ताकि पुल से ट्रेनों के गुजरने पर उनको परेशानी न हो। बताया कि नौ नवंबर से कोलकता से बनारस के लिए रवाना हुए थे। रास्ते में सुल्तानगंज, मुंगेर, मोकामा, नालंदा, बोध गया, पटना, बक्सर, गाजीपुर में क्रूज का ठहराव रहा।

- गंगा के रास्ते कोलकता से वाराणसी के लिए क्रूज से सफर करना दिलचस्प रहा। रास्ते भर भारत के गांव को देखने का मौका मिला। ऐतिहासिक धरोहरों तक भी गए। फ्रैंक, जर्मनी

- वास्तव में गंगा के किनारे भारत बसता है। रास्ते में जो नजारा देखने को मिला वह अद्भुत था। भारत के बारे में जितना सुना था उससे भी अच्छा दिखा। केथ ऐस्टॉन, आस्ट्रेलिया

- वाराणसी पहुंचने से पहले कई ऐसे स्थल देखने को मिला जिसे अब तक किताबों में पढ़ा था। नजदीक से उसे जाना। ऐसे ऐतिहासिक स्थलों को बचा कर रखना होगा। हेरस, जर्मनी

- वाराणसी पहुंचने के बाद बहुत अच्छा लग रहा है। यहां पर घुमने के बाद भारत के अन्य शहरों में भी जाने की योजना है। यहां के कई स्थल इतिहास को जीवंत करते हैं। वाइलकेलिम, जर्मनी

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