चंदौली में आजादी के पूर्व जमीन पर बना नक्शा देश की एकता और अखंडता का दे रहा संदेश

इस्लामपुर मदरसा में अखंड भारत का नक्शा आज भी देश की एकता और अखंडता का संदेश दे रहा। आजादी से 10 साल पहले यानि 1937 में जमीन पर चौकोर आकार में बनाए गए नक्शे में नदियों का संगम कर उनका बंगाल की खाड़ी में गिरते दिखाया गया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sun, 15 Aug 2021 06:10 AM (IST) Updated:Sun, 15 Aug 2021 06:10 AM (IST)
चंदौली में आजादी के पूर्व जमीन पर बना नक्शा देश की एकता और अखंडता का दे रहा संदेश
नक्शे में नदियों का संगम कर उनका बंगाल की खाड़ी में गिरते दिखाया गया है।

जागरण संवाददाता, पीडीडीयू नगर (चंदौली)। इस्लामपुर मदरसा में अखंड भारत का नक्शा आज भी देश की एकता और अखंडता का संदेश दे रहा। आजादी से 10 साल पहले यानि 1937 में जमीन पर चौकोर आकार में बनाए गए नक्शे में नदियों का संगम कर उनका बंगाल की खाड़ी में गिरते दिखाया गया है। वहीं अखंड भारत के साथ ही चीन व श्रीलंका का भी अंग है। मदरसा में तैनात तत्कालीन भूगोल शिक्षक अब्दुल जलील ने नक्शा बनाने के लिए पहल की थी। इसमें उच्च कोटि की तकनीकी का इस्तेमाल किया गया। इस वजह से नक्शे का अस्तित्व आज भी बचा है। हालांकि संरक्षण के अभाव में अब इसमें दरारें पड़ने लगी हैं। विडंबना यह कि शासन-प्रशासन इस दुर्लभ निशानी को सहेजने के लिए गंभीर नहीं।

इस्लामिया इरफानुल उलूम मदरसा की स्थापना 1932 में हुई थी। इसका उद्देश्य मुस्लिम बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना है। उस समय मदरसे में लौंदा गांव निवासी अब्दुल जलील भूगोल पढ़ाते थे। उन्होंने बच्चों को देश की भौगोलिक स्थिति से अवगत कराने के लिए यह पहल की थी। जमीन पर ही अखंड भारत (पाकिस्तान सम्मिलित) नक्शा बनाने का काम शुरू किया। सब काम छोड़कर वे अखंड भारत का नक्शा बनाने में जुट गए। नक्शा में तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत में शामिल अलग-अलग प्रेसिडेंसी को दिखाया गया है। वहीं नदियों का पानी भी नक्शे में चिह्नित स्थानों से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। हिंद महासागर में चीन व श्रीलंका भी दिखाए गए हैं। नक्शा में महान हिमालय, ग्लेशियर आदि भी हैं। इस अद्भुत नक्शे को देखकर सभी आश्चर्य में पड़ जाते हैं। हालांकि सुरक्षा व संरक्षण के अभाव में दुर्लभ नक्शा बदहाल होने लगा है। कई जगह दरारें पड़ रही हैं। यदि संरक्षण की व्यवस्था नहीं की गई तो जल्द ही इसका अस्तित्व मिट जाएगा।

अब्दुल जलील करते थे देखभाल : दुर्लभ कृति के जनक अब्दुल जलील जीवन पर्यंत नक्शे को लेकर फिक्रमंद रहे। सेवानिवृत्ति के बाद भी समय-समय पर नक्शा की देखभाल करते थे। इसके संरक्षण को लेकर प्रयासरत रहे। उनकी मौत के बाद कुछ दिनों तक मदरसा प्रबंधन ने भी इस निशानी को अक्षुण रखने की कवायद की। हालांकि प्रशासनिक मदद न मिलने की वजह से बाद मदरसा प्रबंधन भी बेपरवाह हो गया। इसकी वजह से अखंड भारत के इस दुर्लभ नक्शे में अब दरारें पड़ने लगी हैं।

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