यूपी के वित्तविहीन संस्कृत कालेजों में मनमाने तरीके से हो रहा शिक्षकों का चयन

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध सूबे के तमाम वित्तविहीन महाविद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती महज (कागज)पर है। वहीं नियुक्त शिक्षकों को मानदेय फाइलों तक ही सीमित है। कई वित्तविहीन कालेजों में मानक के अनुरूप शिक्षकों की संख्या नहीं है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 04 Nov 2021 09:20 AM (IST) Updated:Thu, 04 Nov 2021 09:20 AM (IST)
यूपी के वित्तविहीन संस्कृत कालेजों में मनमाने तरीके से हो रहा शिक्षकों का चयन
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध सूबे के तमाम वित्तविहीन महाविद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती महज (कागज)पर है।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध सूबे के तमाम वित्तविहीन महाविद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती महज (कागज)पर है। वहीं नियुक्त शिक्षकों को मानदेय फाइलों तक ही सीमित है। कई वित्तविहीन कालेजों में मानक के अनुरूप शिक्षकों की संख्या नहीं है। आवश्यकता पडऩे पर विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए कुछ माह के लिए मानदेय पर शिक्षकों को बुलाया जाता है। वहीं क्लास खत्म होते ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा जाता है। इस प्रकार सूबे के तमाम वित्तविहीन संस्कृत कालेजों में अध्यापकों का आर्थिक शोषण किया जा रहा है।

वित्तविहीन संस्कृत कालेजों को विश्वविद्यालय से शास्त्री-आचार्य की मान्यता के लिए विषय के अनुसार शिक्षकों का नाम व संख्या का विवरण देना होता है। वहीं शिक्षकों के चयन के लिए प्रबंधकों को विश्वविद्यालय से अनुमोदन कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में प्रबंधक अपने स्तर से शिक्षकों का चयन करते हैं। वहीं जब इच्छा किए शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। इसके कारण वित्तविहीन संस्कृत कालेजों में शिक्षकों का विवरण विश्वविद्यालय के पास नहीं होता है। इससे इतर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ व सूबे के अन्य विश्वविद्यालयों से संबद्ध स्ववित्तपोषित कालेजों को मान्यता के समय ही मानदेय पर शिक्षकों का चयन नियमानुसार करना होता है। इसके तहत स्ववित्तपोषित कालेजों को भी शिक्षकों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी करना अनिवार्य है। वहीं साक्षात्कार के लिए विश्वविद्यालय बकायदा विशेषज्ञ नामित करता है। इस प्रकार विश्वविद्यालय के अनुमोदन के बाद ही स्ववित्तपोषित कालेजों में शिक्षकों का चयन हो सकता है। इसके चलते विद्यापीठ से संबद्ध स्ववित्तपोषित कालेजों में शिक्षकों का आर्थिक शोषण होने की संभावना कम होती है।

chat bot
आपका साथी