अंग्रेजों की नजरों से बची रही नवाब वाजिद अली शाह की सोने से जड़ी ताजिया

मुहर्रम के महीने में यहां सांप्रदायिक सछ्वाव और एकता का एक खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है, जरी इमामबाड़े में सोने से जड़ी ताजिया देखने हर मजहब के लोग आते हैं और सिर झुकाते हैं।

By Edited By: Publish:Thu, 20 Sep 2018 10:58 PM (IST) Updated:Fri, 21 Sep 2018 06:23 PM (IST)
अंग्रेजों की नजरों से बची रही नवाब वाजिद अली शाह की सोने से जड़ी ताजिया
अंग्रेजों की नजरों से बची रही नवाब वाजिद अली शाह की सोने से जड़ी ताजिया

जौनपुर, [सतीश सिंह]: मुहर्रम के महीने में यहां सांप्रदायिक सद्भाव और एकता का एक खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। खानजादा मोहल्ले के जरी इमामबाड़े में सोने से जड़ी ताजिया का दर्शन करने न सिर्फ मुस्लिम बल्कि हर मजहब के लोग आते हैं और अपना सिर झुकाते हैं। इमामबाडे़ के मुतवल्ली सैयद क़मर रजा़ रिजवी ने बताया कि मुहर्रम के दौरान ही इस सोने से जड़ी इस ताजिए अलम और सोने के अक्षरों वाली वाली कुरान शरीफ के दर्शन करने का मौका मिलता है।

देश के तमाम हिस्सों से आए हिंदू, मुस्लिम समेत दूसरे धर्मों के लोग यहां दुआएं मांगने आते हैं। जरी इमामबाड़े की यह ताजिया -मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गई है। मन्नत पूरी होने पर चढ़ावे के तौर पर ताजिये में चांदी के घुंघरू बांधे जाते हैं। रजा ने बताया कि 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह ने अंग्रेजों की नजरों से बचाने के लिए इस कीमती ताजिये को ताबूत में रखकर गोमती नदी में बहा दिया था। मछलीशहर कस्बे के रहने वाले अली जामिन जैदी ने इस ऐतिहासिक धरोहर को खानजादा मोहल्ले में स्थित जरी इमामबाड़े में लाकर रखा था। ताजिये के साथ सोने के जरी वाली कुरान शरीफ भी मिली थी, वह भी सुरक्षित है। इकबाल रिजवी (गुड्डू भाई), अल्पसंख्यक भाजपा मंडल अध्यक्ष फ़हमी रिजवी, हसन अब्बास व जयानंद चौबे ने कहा कि यह ताजिया प्रदेश में नहीं पूरे देश में मछलीशहर का नाम रोशन करता है।

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