तेज धूप और गर्मी के कारण फीकी हुई शहद की मिठास, भूखों मर रहीं मधुमक्खियां
मौसम की मार से मधुमक्खियों की जान पर बन आई है। आसमान में आग उगल रही सूरज की किरणों व शहरीकरण के चलते मधुमक्खियों ने बक्शा से बाहर निकलना कम कर दिया है। भोजन न मिलने से वे भूखों मर रही हैं।
जौनपुर, जेएनएन। मौसम की मार से मधुमक्खियों की जान पर बन कर आई है। आसमान में आग उगल रही सूरज की किरणों व शहरीकरण के चलते मधुमक्खियों ने बक्शा से बाहर निकलना कम कर दिया है। भोजन न मिलने से वे भूखों मर रही हैं। जिंदा रखने के लिए वैकल्पिक आहार दिया जा रहा है।
गर्मी और बारिश मौनवंशों के लिए संकटभरा होता है। मई माह से 15 अक्टूबर तक इनके समक्ष भोजन का संकट रहता है। वर्तमान में मकरंद व पराग कण की कमी हो गई है। वहीं तीखी धूप के कारण मधुमक्खियां बाहर नहीं निकल रही हैं। पर्याप्त भोजन न मिलने से कमजोर हो चुके इन मौन वंशों के लिए शत्रु कीट भी जान के दुश्मन बन गए हैं। प्रतिदिन 1200-1300 अंडे देने वाली रानी मधुमक्खी आहार न मिलने के कारण वर्तमान में 200 से 250 अंडे ही दे पा रही हैं। ऐसे में शहद उत्पादन भी कम हो गया है। जिले के मौन पालक गोरखनाथ ने बताया कि भोजन की तलाश में तराई क्षेत्रों के अलावा पश्चिम बंगाल व नेपाल तक मधुमक्खी पालक बक्शा लेकर जाते हैं। इसके अलावा जहां वाराणसी के पिंडरा आदि सब्जियां व सूरजमुखी की खेती वाले क्षेत्रों का भी पता लगाकर जाते हैं वहां मकरंद और पराग थोड़ा बहुत मिल रहा है। कमी को पूरा करने के लिए वैकल्पिक आहार दिया जा रहा है।
उद्यान विशेषज्ञों का मानना है कि मधुमक्खियों की कमी के से परागण भी नहीं हो रहा है जिससे जायद फसलों का उत्पादन दस से 15 प्रतिशत प्रभावित हुआ है। मधुमक्खियां फूलों से मकरंद को चूसकर पेट में जमा करती हैं और पराग कणों को अपनी पिछली टांगों पर बनी पराग टोकरियों में इकट्ठा कर अपने घर लाती हैं। मकरंद में कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं जिनसे वह ऊर्जा प्राप्त करती हैं जबकि परागकणों में प्रोटीन, विटामिन पाए जाते हैं। मधुमक्खियां मकरंद मिले पराग कण को लार से घुलाती हैं। उनके लार में मौजूद एंजाइम से पराग की प्रकृति प्रभावित होती है। जो शहर में प्राकृतिक गुण विकसित करती हैं।
वैकल्पिक आहार : पराग की पूर्ति के लिए चने का आटा, सोयाबीन का आटा, मिल्क पाउडर, यीस्ट ओर पिसी चीनी का गाढ़ा घोल।
बड़े काम की है शहद : आयुर्वेदिक चिकित्सक डा. एपी ने अनुसार आयुर्वेद की लगभग साठ प्रतिशत दवाओं का प्रयोग शहद के साथ करना होता है। शहद मोटापा कम करने के साथ ही वजन बढ़ाने में भी उपयोगी होता है। मधु वीर्य रक्त, पित्त एवं कफ नाशक होता है। कास्मेटिक सामग्रियों के निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जाता है। मधुमक्खियों के डंक से गठिया रोग का भी उपचार किया जाता है।
तेज धूप व गर्मी से मौनवंशों को बचाएं : जिला उद्यान निरीक्षक हरि शंकर ने सलाह दिया कि मधुमक्खियों को लू से बचाने के लिए मौनगृहों के चारों तरफ घास-फूस का बाड़ लगाने की व्यवस्था करें तथा मौन गृहों का प्रवेश द्वार पूरब या उत्तर दिशा में रखें। माइग्रेशन के समय मौन वंशों को हमेशा ऊंचे एवं छायादार स्थान पर रखें। मौनगृह (बाक्स) के ऊपर भींगा बोरा रखकर उसे सुबह एवं शाम गीला करते रहें। जिससे अंदर का तापमान नियंत्रित रहेगा। पीने के लिए पानी जगह-जगह मिट्टी के बर्तन में भरकर रखें। समय-समय पर चींटी अवरोधक प्यालियों का पानी बदलते रहें। भोजन की कमी को पूरा करने के लिए वैकल्पिक आहार दें। इसके अलावा मोमीपतिंगे एवं माइट से बचाव के लिए जरूरत के अनुसार सल्फर का प्रयोग सप्ताह में एक बार अवश्य करें।