Swami Vivekananda Birth Anniversary : स्वामी विवेकानंद ने वाराणसी के युवाओं को सेवा का असल अर्थ समझाया
स्वामी जी से ही प्रेरणा लेकर काशी के ही कुछ तरूणों ने केदारनाथ भौमिक यामिनी रंजन व चारू चंद्र दास की अगुवाई में पहले दशाश्वमेध और बाद में रामापुरा स्थित दो कमरों के भवन में दी पुअर मेंस रिलिफ एसोसिएशन के नाम से एक आरोग्यशाला शुरु की।
वाराणसी [कुमार अजय]। Swami Vivekananda Birth Anniversary स्वामी विवेकानंद जी का धेय पाथेय बना रहा। वे मिशन से जुड़े सेवकों मित्रों व सहयोगियों को भी हमेशा मानव सामर्थ की हदें बताते रहते थे। हमारे हाथ सिर्फ सेवा ही संभव है। राहत देने वाला तो परमेश्वर है। इस बात को वे कभी नहीं भूले जहां भी सेवा के प्रकल्प स्थापित किए वहां सेवा देने वाले युवाओं को भी हमेशा इसी निर्विकार भाव से सेवा के लिए प्रेरित करते रहे।
स्वामी जी से ही प्रेरणा लेकर काशी के ही कुछ तरूणों ने केदारनाथ भौमिक, यामिनी रंजन व चारू चंद्र दास की अगुवाई में पहले दशाश्वमेध और बाद में रामापुरा स्थित दो कमरों के भवन में दी पुअर मेंस रिलिफ एसोसिएशन के नाम से एक आरोग्यशाला शुरु की जो बाद में नगर के गरीब गुरबों की आशाओं का केंद्र बन गया। जब स्वामी जी काशी आए तो लोगों ने उन्हेंं इस अभियान के बारे में जानकारी दी। वे बेहद खुश हुए और वहां का कामकाज देखने स्वयं रामापुरा पहुंच गए। उन्होंने वहां सेवा दे रहे नौजवानों की पीठ थपथपाई और प्रकल्प के नाम से जुड़े रिलिफ शब्द को लेकर स्वयं सेवकों को एक मीठी फटकार भी लगाई। स्वामी जी ने कहा हमारी सामथ्र्य सिर्फ सेवा तक ही संभव है। रिलिफ देने वाले हम होते कौन हैं।
बात सेवकों के मन में गहरे तक पैठ गई। स्वामी जी के सुझाव पर ही आरोग्यशाला का नाम बदलकर होम आफ सॢवस रखा गया। यही आरोग्यशाला बाद में रामकृष्ण मिशन से जुड़कर लक्सा क्षेत्र स्थित एक बड़े अस्पताल के रूप में बदल गई। रामकृष्ण मिशन की शाखाएं पूरे देश में हैं। किंतु काशी में आज भी यह स्वामी जी के दिए गए नाम रामकृष्ण मिशन होम आफ सॢवस की पहचान से ही संचालित है। स्वामी जी के इसी उद्बोधन से प्रेरित होकर इस प्रकल्प को शुरु करने वाले कुछ तरूणों ने संन्यास धारण कर सेवा व्रत को ही अपना अभिष्ट बना दिया।
वह आत्मिय मुलाकात व मदद वाले हाथ 19वीं सदी के प्रारंभिक काल तक स्वामी विवेकानंद जी की कीर्ति कस्तूरी की सुगंध की मानिंद पूरे देश विदेश तक फैल चुकी थी। सन 1902 में जब वे काशी आए तो उनकी ख्याती से प्रभावित होकर भिनगाराज राजर्षि उउदय प्रताप जू देव ने स्वामी जी से मिलने की उत्कट अभिलाषा अपनी सुभेच्छुओं को बताई। कठिनाई यह थी कि राजर्षि उन दिनों एकांतवास के क्रम में आश्रम परिसर से बाहर न निकलने के वचन से बंधे हुए थे। यह बात जब राजर्षि उदय प्रताप जू देव के आश्रम से कुछ ही दूर पर गोपाल लाल विला में प्रवास कर रहे विवेकानंद जी को पता चली तो स्वास्थ्य शिथिल होने के बाद भी वे पैदल ही भोजूवीर आज उदय प्रताप कालेज की ओर चल पड़े। दोनों मनीषियों ने इस आत्मिय भेंट में देश के गौरव बोझ से लेकर वेंदात तक की चर्चा की। लौटते समय राजर्षि ने स्वामी जी को विदा देते हुए वेदांत के प्रचार-प्रसार के नेमित्य पांच सौ रुपये की सहयोग राशि भी भेंट की। इसी धनराशि से लक्सा स्थित होम आफ सर्विस के परिसर में ही श्री रामकृष्ण अद्वैत आश्रम बनवाया गया।