रामलहर में जीत दर्ज कर सुर्खियों में छा गए थे सुखदेव राजभर, अखिलेश को बताया था भविष्य का नेता

पूर्वांचल की सियासत में दखल रखने वाले सुखदेव राजभर के निधन के साथ ही जिले ने राजनीति के पुरोधा को खो दिया। गरीबों जरूरतमंदों की लड़ाइयां लड़ते-लड़ते जनता के दिलों में इस कदर जगह बना लिए कि चुनावी अखाड़े के शेर कहे जाने लगे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 12:04 AM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 12:04 AM (IST)
रामलहर में जीत दर्ज कर सुर्खियों में छा गए थे सुखदेव राजभर, अखिलेश को बताया था भविष्य का नेता
अखिलेश यादव 29 अगस्त को सुखदेव राजभर से मुलाकात करने अचानक उनके घर पहुंचे थे।

आजमगढ़, राकेश श्रीवास्तव। पूर्वांचल की सियासत में दखल रखने वाले सुखदेव राजभर के निधन के साथ ही जिले ने राजनीति के पुरोधा को खो दिया। गरीबों, जरूरतमंदों की लड़ाइयां लड़ते-लड़ते जनता के दिलों में इस कदर जगह बना लिए कि चुनावी अखाड़े के शेर कहे जाने लगे। उन्होंने पहली ही बार भाजपा के कद्दावर प्रत्याशी को पहले ही प्रयास में पटखनी दे डाली। राम लहर में भी जीत ने सुखदेव राजभर को पूर्वांचल की राजनीति में सुर्खियों में ला खड़ा किया था। उसके बाद उनका विजय रथ आगे बढ़ा तो वर्ष 2012 में रुका, लेकिन उसके बाद वर्ष 2017 में जनता ने फिर से उन्हें अपनाकर विधानसभा भेज दिया। उनके निधन की देर शाम खबर आई तो जिले में शोक की लहर दौड़ पड़ी। सियासी दलों के लोगों ने एक स्वर से कहा कि आजमगढ़ की सियासत को अपूरणीय क्षति हुई है।

आजमगढ़ जिले के दीदारगंज क्षेत्र के बड़गहन गांव निवासी सुखदेव राजभर ने 1991 की राम लहर में लालगंज से पहली बार किस्मत आजमाई थी। उस समय सामान्य रही सीट पर भाजपा के नरेंद्र सिंह उनके सामने थे। चहुंओर भाजपा की जीत की चर्चाएं थीं, लेकिन परिणाम 24 वोटों से सुखदेव के पक्ष में चला गया। उस जीत को लोग सुखदेव की सामाजिक सेवा से जोड़कर देख रहे थे। उसके बाद फिर 1993 में जीत दर्ज की, लेकिन वर्ष 1996 में भाजपा के नरेंद्र सिंह ने उन्हें पटखनी दे दी। चुनाव हारने के बाद भी सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी बन चुके थे। लिहाजा जनता के बीच उनकी गतिविधियां कभी कमजोर पड़ने नहीं पाई। समय चक्र बदला तो वर्ष 2002 और 2007 के चुनाव में सुखदेव का सिक्का लालगंज की राजनीति में चला। वर्ष 2012 के चुनाव में परिसीमन बदला तो लालगंज सुरक्षित सीट होने पर नवगठित दीदारगंज विधानसभा से किस्मत आजमाए तो हार का तगड़ा झटका लगा। सपा के आदिल शेख को जनता ने पसंद किया, लेकिन सूबे में 2017 में फिर चुनाव का बिगुल बजा तो सुखदेव के चुनावी सारथी उनके पुत्र कमलाकांत बन गए। सुखदेव भी समझ चुके थे कि उनका बेटा भी भविष्य के सियासी चक्रव्यूह भेदने वाला अभिमन्यु बनेगा। हुआ भी वही वर्ष 2017 में बसपा से चुनाव लड़े तो ऐतिहासिक जीत दर्ज की। हालांकि, 26 साल की राजनीति में उम्र ढलने से कमजोर पड़ते गए तो कमान बेटे कमलाकांत को सौंप दी। बेटे स्वत: निर्णय लेते हुए सियासत में साइकिल की सवारी करने की ठानते हुए 31 जुलाई को सपा के हो गए। उसके बाद सपा के मुखिया अखिलेश यादव बीते दिनों उनके घर जाकर उन्हें बेटे के भविष्य को लेकर सांत्वना भी दी थी। बेटे का प्रयास परवान चढ़ता कि पिता का साया उनके सिर से उठ गया। उनके निधन की खबर से जिले में शोक की लहर दौड़ गई। दीदारगंज के लोग ज्यादा मर्माहत नजर आए। उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी एवं पूर्व विधायक आदिल शेख ने उन्हें कुशल राजनीतिज्ञ बताया। कहा कि जीतने और हारने दोनों के ही बाद उनसे सीख मिली। वह प्रत्येक स्थिति में मेरा हौसला आफजाई करते थे। समाजसेवी एसके सत्येन ने उनके निधन को जिले की राजनीति के लिए अपूरणीय क्षति बताया। सुखदेव के पुत्र कमलाकांत ने कहा कि पिता की राह पर चलते हुए जनता की सेवा करूंगा।

सुखदेव राजभर राजनीतिक सफर

2017 वे समाजवादी पार्टी के आदिल शेख को 3,645 वोटों के अंतर से हराकर उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा के सदस्य हैं।

2012 वे दीदारगंज निर्वाचन क्षेत्र से 2227 वोटों के अंतर से सपा के आदिल शेख के खिलाफ विधानसभा चुनाव हार गए।

2007 सदस्य, लालगंज से चौथे कार्यकाल के लिए उत्तर प्रदेश की 15 वीं विधान सभा जहां उन्होंने फिर से भाजपा के नरेंद्र सिंह को हराया। इसके बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष चुने गए।

2002 सदस्य, उत्तर प्रदेश की 14 वीं विधान सभा में तीसरे कार्यकाल के लिए जहां उन्होंने लालगंज सीट पर नरेंद्र सिंह को 1748 मतों के अंतर से हराया।

2002 संसदीय कार्य, कपड़ा और रेशम उद्योग विभाग के मंत्री (मायावती सरकार के मंत्रिमंडल) ।

पूर्वांचल की राजनीति में था खास प्रभाव

सुखदेव राजभर का पूर्वांचल की सीटों पर ख़ास प्रभाव था। 2017 विधानसभा चुनावों के बाद हुए विश्लेषण में यह सामने आया था कि यूपी की लगभग 22 सीटों पर भाजपा की विजय में राजभर वोट बैंक बड़ा कारण था। जबकि पूर्वांचल के लगभग 25 से 28 जिलों में करीब 125 से ज्यादा सीटों पर राजभर वोट का असर है। यूपी में राजभर वोट 3 प्रतिशत हैं। जबकि पूर्वांचल में यही वोटबैंक 16 से 18 प्रतिशत तक है। पूर्वांचल में वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, मऊ, जौनपुर, देवरिया जैसे जिलों में राजभर बहुतायत संख्या में है। राजभर यहां जीत हार भी तय करते हैं। यूपी की लगभग 65 विधानसभा सीटों पर लगभग 45 हजार से 80 हजार तक राजभर वोट हैं। जबकि 56 विधानसभा सीट पर 25 हजार से 45 हजार तक है।

सुखदेव ने मायावती को लिखा था पत्र, अखिलेश को बताया था भविष्य का नेता

अखिलेश यादव 29 अगस्त को सुखदेव राजभर से मुलाकात करने अचानक उनके घर पहुंचे थे। इसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि, जल्द ही सुखदेव राजभर बसपा का दामन छोड़कर अपने बेटे कमलाकांत राजभर संग सपा में शामिल हो सकते हैं। यहीं नहीं इसी साल 31 जुलाई को सुखदेव द्वारा बसपा सुप्रीमो मायावती को भेजे पत्र में साफ कर दिया था कि वो अखिलेश समर्थक हैं। उसमे लिखा था कि मैं बीमार हूं, इसलिए सक्रिय राजनीति से अलग हो रहा हूं। मगर मैं अखिलेश का समर्थन करता हूं। इसके साथ ही अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का भविष्य बताया था। उन्होंने बेटे कमलाकांत को दलितों, पिछड़ों व राजभर समाज की सेवा के लिए अखिलेश के हवाले करने की घोषणा भी की थी।

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