बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में बिना स्तन हटाए ही ब्रैकीथेरेपी से कैंसर का सफल उपचार

ब्रेकीथेरेपी एक तकनीक है जिसमें कैंसर के विशेषज्ञ प्रभावित अंग के अंदर या पास में विकिरण का स्रोत डालकर उपचार करते हैं। ट्यूमर के सटीक स्थान पर ट्यूब इम्प्लान्ट किए जाते हैं जिसके रास्ते स्रोत को आपरेशन के बाद ट्यूमर के स्थान पर सरलता से पहुंचाया जाता है

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 08 Dec 2021 12:14 PM (IST) Updated:Wed, 08 Dec 2021 12:14 PM (IST)
बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में बिना स्तन हटाए ही ब्रैकीथेरेपी से कैंसर का सफल उपचार
बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में बिना स्तन हटाए ही ब्रैकीथेरेपी से कैंसर का सफल उपचार

जागरण संवाददाता, वाराणसी। ब्रेकीथेरेपी एक तकनीक है जिसमें कैंसर के विशेषज्ञ प्रभावित अंग के अंदर या पास में विकिरण का स्रोत डालकर उपचार करते हैं। ट्यूमर के सटीक स्थान पर ट्यूब इम्प्लान्ट किए जाते हैं, जिसके रास्ते स्रोत को आपरेशन के बाद ट्यूमर के स्थान पर सरलता से पहुंचाया जाता है। ज्यादातर ये प्रक्रिया सर्जरी के चंद हफ्तों बाद की जाती है व ट्यूमर बेड को अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन द्वारा रेखांकित किया जाता है। इसके पश्चात आवश्यक स्थान पर अधिक खुराक देकर आसपास के सामान्य अंगों को न्यूनतम डोज मिलती है। हालांकि इससे अधिक श्रेष्ठ तरीका है इंट्रा-आपरेटिव ब्रेकीथेरेपी, यानी आपरेशन के समय ही ट्यूब्स को इंप्लांट करके छिद्रित करना। इससे ट्यूमर बेड को शत-प्रतिशत रेडिएशन मिलता है, जो कि मरीज़ के जिंदगी में और सुधार लाता है।

इस तकनीक से चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के जनरल सर्जरी व रेडिएशन अंकोलाजी विभाग ने पीड़ित का बिना स्तन निकाले ही कैंसर का सफल उपचार किया है। इंट्रा-आपरेटिव ब्रेकीथेरेपी देश के सिर्फ कुछ चुनिंदा संस्थाओं में ही की जाती है। बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के इतिहास में पहली सफलता के बाद दूसरी बार यह प्रक्रिया सात दिसंबर को किया गया।

रेडिएशन अंकोलाजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुनील चौधरी ने बताया कि इंप्लांट किए गए मरीज़ को आपरेशन के तीसरे दिन वांछित रेडिएशन डोज दिया जाएगा। वहीं दो दिन में बूस्ट का इलाज पूर्ण हो जाएगा। घाव भरने के बाद बाहरी रूप से रेडियेशन देकर बीमारी को पूर्णतः नियंत्रित करने का प्रयास किया जाएगा। इस उपचार में जनरल सर्जरी के प्रो. वीके शुक्ला, प्रो. एसके भारतिया, डाा. संजय सरोज, डा. अरविंद प्रताप व रेडिएशन आंकोलोजी के विभागाध्यक्ष प्रो. सुनील चौधरी, प्रो. ललित अग्रवाल व अंकुर मौर्या के नेतृत्व में सम्भव हो पाया। कैंसर के मरीज़ों में बहुविषयक यानि तरीके से योजनाबद्ध इलाज अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हुआ है। उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर आपरेशन के दौरान स्तन को काट कर निकाल दिया जाता है। इसके कारण महिला को सामाजिक व मानसिक परेशानी झेलनी पड़ती है। ब्रैकी थेरेपी विधि में सिर्फ ट्यूमर को ही हटाया जाता है।

प्रो. चौधरी ने बताया कि स्तन का कैंसर भारतीय महिलाओं में सर्वाधिक होने वाला कैंसर है। प्रतिदिन इस रोग से प्रभावित महिलाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। इस रोग का जीवनकालिक संभावना शहरी जनसंख्या में 22 में से 1 व ग्रामीण जनसंख्या में 60 में से ए महिलाओं में होता है।

स्तन के कैंसर के इलाज के मूल रूप से चार अवयव होते हैं 

सर्जरी, रेडियोथेरेपी, हार्मोनल थेरेपी व कीमोथेरेपी। सर्जरी के दो विकल्प होते हैं। पहला है मास्टेक्टामी, जिसमें प्रभावित स्तन पूरी तरह से निकाल दिया जाता है। दूसरा विकल्प होता है बीसीटी यानी ब्रेस्ट कांजर्वेटिव थेरेपी। इसे स्तन संरक्षण सर्जरी कहते हैं, जिसमें स्तन का सिर्फ वो हिस्सा निकाला जाता है जिस भाग में ट्यूमर विकसित हो जाता है। इसके बाद उस भाग को रेडिएशन द्वारा संबोधित किया जाता है। अज्ञानता के कारण आम तौर पर मरीज पूरा स्तन निकलवाना पसंद करते हैं, इस डर से कि बीमारी वापस न आ जाए। परंतु असंख्य शोध पत्रों और अमेरिकी अनुमोदन के हिसाब से मास्टेक्टामी के बनिस्पत बीसीएस को उत्तरजीविता लाभ यानि सर्वाइवल व परिणाम के पहलुओं में प्रारंभिक चरणों के स्तन कैंसर के केस में समकक्ष पाया गया है। इसके अतिरिक्त जीवन के गुणवत्ता, मानसिक प्रभाव और शारीरिक छवि के मापदंडों पर भी इसे समकक्ष पाया गया है।

बीसीटी के तहत सर्जरी के बाद ट्यूमर बेड, यानि आपरेशन के बाद बचे हुए स्तन में रेडिएशन (विकिरण) देने की आवश्यकता होती है, जिससे बिमारी को उन्मूलित करने में सहायता मिलती है। मशीन के द्वारा बाहरी रेडिएशन के बाद ट्यूमर के स्थान को रेडियो थेरेपी बूस्ट, यानि अतिरिक्त डोज दिया जाता है, जिससे कि सूक्ष्मता से बीमारी को जड़ से हटाया जा सके। इस बूस्ट को देने का एक उत्तीर्ण विकल्प है इन्टरस्टीशियल ब्रेकीथेरेपी।

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