आत्मनिर्भरता की कहानी : कोरोना काल में हुए बेरोजागर, सोनपापड़ी को बनाया हथियार

गूगल पर सर्च कर प्रधानमंत्री की योजनाओं के बारे में जानकारी ली फिर सोनपापड़ी बनाकर बेचने का इरादा किया। यही नहीं लघु उद्योग स्थापित कर न सिर्फ आत्मनिर्भर बने बल्कि इससे कई प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी भी चल रही है।

By Abhishek sharmaEdited By: Publish:Sun, 24 Jan 2021 07:30 AM (IST) Updated:Sun, 24 Jan 2021 07:30 AM (IST)
आत्मनिर्भरता की कहानी : कोरोना काल में हुए बेरोजागर, सोनपापड़ी को बनाया हथियार
गूगल पर सर्च कर प्रधानमंत्री की योजनाओं के बारे में जानकारी ली, फिर सोनपापड़ी बनाकर बेचने का इरादा किया।

मऊ [अरुण राय]। कोरोना संक्रमण में पूरा देश जूझ रहा था। हर तरफ त्राहि-त्राहि मची थी। ऐसे में कोपागंज के इंदारा निवासी संजय कुमार पांडेय को प्राइवेट नौकरी से हाथ धोना पड़ा और वह अपने गांव आकर रोजी-रोटी के जुगाड़ में लग गए। गूगल पर सर्च कर प्रधानमंत्री की योजनाओं के बारे में जानकारी ली, फिर सोनपापड़ी बनाकर बेचने का इरादा किया। यही नहीं लघु उद्योग स्थापित कर न सिर्फ आत्मनिर्भर बने बल्कि इससे कई प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी भी चल रही है। इससे आंध्र प्रदेश में रहकर मजदूरी का कार्य करने वाले मजदूर अब अपने घर में नौकरी पाकर खुश नजर आ रहे हैं।

संजय कुमार की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में हुई। उन्होंने मास्टर की डिग्री इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हासिल की। वर्ष 2011 में दिल्ली में दो वर्ष तक किसी प्राइवेट कंपनी से जुड़े रहे। वहां उनका मन नहीं लगा तो आगरा गए और एक प्राइवेट कंपनी से जुड़कर सात वर्षोें तक कार्य किए। दिसंबर 2019 में पिता की तबीयत खराब होने की वजह से घर आना पड़ा। इस बीच मार्च माह 2020 में कोरोना का संक्रमण फैल गया। इसकी वजह से पुन: नौकरी पर जाना मुश्किल हो गया। जब परिवार का खर्च चलना मुश्किल हुआ तो आत्मनिर्भर बनने की सोचे। इसके बाद केंद्र की योजनाओं के बारे में जानकारी हासिल किए।

लघु उद्योगों के बारे में जानकारी जुटाई। पूरी तरह से मन बनाकर सोनपापड़ी के धंधे से जुडऩे का निश्चय किया। जुलाई में एक फूड कंपनी के नाम से उद्योग विभाग में रजिस्ट्रेशन कराया। अब अच्छे कारीगर की समस्या आई। इस पर प्रवासी मजदूरों का उन्होंने सहारा लिया। कुछ मजदूर आंध्र प्रदेश से महामारी के चलते वापस लौट आए थे। उनके समक्ष भी रोजी-रोटी का संकट था। संजय के आग्रह तीस मजदूर उनके साथ काम करने को तैयार हो गए। अब उनकी गाड़ी पटरी पर दौडऩे लगी। इन दिनों प्रतिदिन छह से सात कुंटल सोनपापड़ी मिठाई उनके यहां से निकल रही है। इसे वह सीधे बाजारों में भेज देते हैं। दूसरी तरफ घर पर ही रोजगार मिल जाने से उनके यहां काम कर रहे प्रवासी मजदूरों ने भी आंध्र प्रदेश जाने का इरादा त्याग दिया है। 

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