हाथों में यथार्थ गीता लिए कदम बढ़े नये संकल्प की ओर, सामाजिक समरसता को दे रहे मूर्त रूप

राज्यमंत्री फग्गन सिंह की राजनीतिक सादगी और सूझबूझ के कारण ही उनके क्षेत्र सहित मन्त्रिमण्डल के जनप्रतिनिधि उन्हें राजनीतिक शुचिता और समरसता का जीवन्त उदाहरण मानते हैं। उस शख्स के हाथों में यथार्थ गीता और चेहरे पर उत्साह व आवेग की चमक साफ-साफ देखी जा रही थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 13 Oct 2021 12:01 PM (IST) Updated:Wed, 13 Oct 2021 12:01 PM (IST)
हाथों में यथार्थ गीता लिए कदम बढ़े नये संकल्प की ओर, सामाजिक समरसता को दे रहे मूर्त रूप
बलिया के अंजोरपुर में पैदा हुए और वाराणसी में समाजसेवा कर रहे हैं कृपा शंकर यादव।

वाराणसी [रवि पांडेय]। एक नए संकल्प के साथ अपने हाथों में यथार्थ गीता लिए हुए वह शख्स भारत की राजधानी दिल्ली के सफदरजंग रोड पर स्थित कोठी नम्बर आठ में दाखिल होता है। जिस कोठी में देश के इस्पात राज्यमंत्री फग्गनसिंह बतौर राज्यमंत्री निवास करते हैं। जो आदिवासी समुदाय के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और संविधान के प्रति जागरूक करते हुए छः बार से देश के संसद भवन का हिस्सा बनते आ रहे हैं। राज्यमंत्री फग्गन सिंह की राजनीतिक सादगी और सूझबूझ के कारण ही उनके क्षेत्र सहित मन्त्रिमण्डल के जनप्रतिनिधि उन्हें राजनीतिक शुचिता और समरसता का जीवन्त उदाहरण मानते हैं। उस शख्स के हाथों में यथार्थ गीता और चेहरे पर उत्साह व आवेग की चमक साफ-साफ देखी जा रही थी।

यह वही हैं जिन्‍होंने पदम् विभूषित प्रख्यात समाजसेविका डॉ. निर्मला देश पाण्डेय के देहावसानोपरान्त क्रान्ति की भूमि बलिया से धार्मिक नगरी काशी के रामनगर तक नशा उन्मूलन पदयात्रा कर समाज और राष्ट्र को यह सन्देश दिया था कि नशा नाश की निशानी और अपराध की जननी होती है इसका समूल विनाश किए बिना सामाजिक समरसता नही लाई जा सकती।

बात बलिया के एक छोटे से गांव अंजोर पुर में पैदा हुए और वाराणसी में समाजसेवा कर रहे कृपा शंकर यादव की हो रही है। जो नशा उन्मूलन अभियान के दौरान पूर्वांचल के गांव- गिरांव की पगडण्डियों को अपने कदमों से नापते हुए समय-समय पर अपने सामाजिक कार्यों से अपने आस-पास के लोगो को प्रभावित करते रहे हैं। हालांकि, इस क्रम में उन्हें कई बार अपनों के कोपभाजन का शिकार भी होना पड़ा लेकिन कृपा शंकर यादव के कदम नही रुके और न ही उनका उत्साह व ऊर्जा समाजसेवा करने के प्रति कम हुआ। समाजसेवा करने के क्रम में ही उन्होंने विश्व व्यापी कोरोना महामारी के पहले लहर में अपने साथियों के साथ मिलकर 21 दिनों तक लगातार 250 से लगायत 400 गरीबों, मजलुमो और राहगीरों के लिए स्वयं अपने हाथों से खाना बनाकर बांटने का काम किया था।

रामनगर के शहीद स्मारक में उन्हीं युवाओं की मदद से सैकड़ों पौधों को लगवा कर काशी में पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के प्रति भी लोगों को जागरूक किया था। यथार्थ गीता के सन्देश के अनुसार कृपा शंकर का मानना है कि मनुष्य की केवल दो ही जाति है देवता और दानव। जिनके हृदय में सामाजिक समरसता, प्रेम, अपनत्व और विश्वास की स्थापना के प्रति सकारात्मक ऊर्जा होती है वही देवता हैं और जो स्वार्थ के वश में पड़ कर अपराध, दुष्‍कर्म, हिंसा और अनैतिक कार्यों को बढ़ावा देते हैं वही दानव हैं। देश के 21 लोकसभा सदस्यों को यथार्थ गीता भेंट करने के संकल्प के बारे में कृपा शंकर ने बताया कि समय के इस बदलते परिवेश में राजनीतिक आदर्शों और सिद्धांतों पर स्वार्थ, अपराध और भ्रस्टाचार की काली छाया पड़ चुकी है हर ओर हिंसा, अत्याचार और दुराचार की घटनाओं का सुनाई देना समाज और राष्ट्र के लिए घातक है।

वर्तमान प्रतिकूल परिस्थितियों में जरूरत है स्वामी विवेकानन्द के राजनीतिक सिद्धांतों और प्रभु अड़गड़ानन्द महाराज के सामाजिक व आध्यात्मिक सोच को जन जन तक पहुंचाकर सम्पूर्ण भारत में सामाजिक समरसता और राजनीतिक गलियारे में स्पष्ट नीति और नियति को स्थापित करना। उन्होंने अपने संकल्प के बारे में बताया कि लोकसभा सदस्य ही लोकतांत्रिक व्यवस्था और मूल्यों के संरक्षक होते हैं उनका सम्पूर्ण जीवन राजनीतिक शुचिता को स्थापित करने में व्यतीत हो जाता है इसीलिए लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यवस्थाओ को नए रूप में स्थापित करने के लिए अड़गड़ानन्द महाराज द्वारा रचित यथार्थ गीता को लोकसभा सदस्यों तक पहुंचाना मेरे सामाजिक जीवन की प्रमुख प्राथमिकता है। 

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