Mahashivratri 2020 : स्वयंभू श्री किकेश्वर नाथ महादेव उर्फ मोटे महादेव, शिवलिंग पर तलवार के प्रहार के हैं निशान

काशी के हड़हासराय में स्थापित श्री कि केश्वर नाथ महादेव उर्फ मोटे महादेव की अलग ही काशी में पहचान है उनके आकार को देखकर स्नेह से भक्तों ने मोटे महादेव का नाम दे दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 21 Feb 2020 11:42 AM (IST) Updated:Fri, 21 Feb 2020 05:37 PM (IST)
Mahashivratri 2020 : स्वयंभू श्री किकेश्वर नाथ महादेव उर्फ मोटे महादेव, शिवलिंग पर तलवार के प्रहार के हैं निशान
Mahashivratri 2020 : स्वयंभू श्री किकेश्वर नाथ महादेव उर्फ मोटे महादेव, शिवलिंग पर तलवार के प्रहार के हैं निशान

वाराणसी, जेएनएन। शहर के हड़हासराय में स्थापित श्री कि केश्वर नाथ महादेव उर्फ मोटे महादेव की काशी में अलग ही पहचान है। उनके विशाल आकार को देखकर ही स्नेहवश भक्तों ने उनको मोटे महादेव का नाम दे दिया। इस शिवलिंग को लेकर लोगों में काफी आस्था भी है। मंदिर में एक प्राचीन कुआं हैं जिसमें सात तरह का पानी अलग अलग औषधीय गुणों वाला माना जाता है। साथ ही द्वादश ज्योर्तिलिंगों के प्रतीक स्वरूप शिवलिंग हैं जो स्वंयभू हैं। मंदिर के सेवकियों व कई पीढ़ी से देखरेख करने वालों ने बताया कि औरंगजेब के काल से भी प्राचीन यह शिवलिंग है जिसका जिक्र काशी खंड में दर्ज है।

मंदिर के सेवकिया कमलेश पांडेय बताते हैं कि औरंगजेब की सेना के आक्रमण के दौरान किए गए प्रहार के कारण तलवार से कटे का निशान शिवलिंग पर साफ दिखाई देता है। 1880 में भी मंदिर का जीर्णोद्धार क्षेत्रीय लोगों ने करवाया था। एक जनवरी को मंदिर में विशेष श्रृंगार व भंडारा होता है। वहीं शिवरात्रि पर शिव बरात निकाली जाती है जिसमें मोटे महादेव की प्रतीक आकृति को दूल्हा बनाकर बरात निकलती है।

स्वंयभू हैं मोटे महादेव 

कई पीढिय़ों से मंदिर की सेवा करने वाले लक्ष्मी नारायण सिंह बताते हैं यह शिवलिंग स्वयंभू हैं। मान्यता है कि मोटे महादेव के शिवलिंग पर चढ़ाए गए बेलपत्र का सुबह के वक्त बासी मुंह अगर सेवन किया जाए तो कई बीमारियों से निजात मिल जाती है। ऐसा 40 दिन तक लगातार करना होता है। यहां हनुमान जी का भी मंदिर है। साथ ही अन्य कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं हैं, जिन्हें मन्नत पूरी होने पर लोगों ने स्थापित कराई हैं। काशी में इस अनोखे मंदिरों से जीर्णाेद्धार करवा रहे राधेश्याम गुप्ता बताते हैं शिवलिंग पहले काफी बड़ा था लेकिन जैसे जैसे मंदिर बनता गया शिवलिंग नीचे दबता गया। बताया कि माता-पिता व पत्नी की इच्छा थी मंदिर का सुंदरीकरण करवाने की तो इस वक्त यह कार्य हो रहा है। 

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