वाराणसी में ऐतिहासिक लाल खां के मकबरा का लौटेगा वैभव, पुरातत्व विभाग कराएगा मकबरे का बहुत जल्द जीर्णोद्धार

वाराणसी के राजघाट क्षेत्र में गंगा के तट पर मौजूद लाल खां का रौजा (मकबरा) का निर्माण सन 1773 में हुआ था। विशालकाय कैम्पस में खूबसूरत मकबरे में वीर योद्धा लाल खां की मजार है। लाल खां तत्कालीन काशी नरेश के सेनापति थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 08:38 PM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 08:38 PM (IST)
वाराणसी में ऐतिहासिक लाल खां के मकबरा का लौटेगा वैभव, पुरातत्व विभाग कराएगा मकबरे का बहुत जल्द जीर्णोद्धार
पर्यटन की दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है लाल खां का रौजा

जागरण संवाददाता, वाराणसी। सैकड़ों साल की थाती संजोए और पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण राजघाट स्थित लाल खां के मकबरा का बहुत जल्द जीर्णोद्धार होगा। इसकी तैयारी भारतीय पुरातत्व ने शुरू कर दी है। टेंडर होते ही काम शुरू कर दिया जाएगा।

अधीक्षण पुरातत्वविद डा. नीरज सिन्हा ने बताया कि काशी की ऐतिहासिकता की जानकारी के लिए राजघाट स्थित गंगा नदी के किनारे खुदाई की गई थी। इससे काशी के लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व के इतिहास की जानकारी हुई। मौसम के उतार-चढ़ाव से लाल खां का रौजा की दीवारें काली पड़ने के साथ जगह-जगह से क्षरण हो रही हैं। चबूतरा व गुंबद का रंग भी खराब हो गया है। यह प्राचीन धरोहर पुरातत्व व पर्यटन के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। इसके जीर्णोद्धार की सारी तैयारियां कर ली गई हैं। टेंडर होते ही जीर्णोद्धार का काम शुरू हो जाएगा।

काशी नरेश ने बनवाया लाल खां का रौजा

दरअसल, वाराणसी के राजघाट क्षेत्र में गंगा के तट पर मौजूद लाल खां का रौजा (मकबरा) का निर्माण सन 1773 में हुआ था। विशालकाय कैम्पस में खूबसूरत मकबरे में वीर योद्धा लाल खां की मजार है। मकबरे की भीतर उनके परिवार के सदस्यों की मजार हैं। लाल खां तत्कालीन काशी नरेश के सेनापति थे। उन्होंने अपनी वीरता से काशी के विस्तार और विकास में बड़ा योगदान दिया। एक बार काशी नरेश ने उनसे कुछ मांगने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि कुछ ऐसी व्यवस्था हो जिससे मौत के बाद वो महल की चौखट का दीदार कर सकें। काशी नरेश ने उनकी इच्छा के सम्मान में लाल खां की मृत्यु के बाद राजघाट में दफन कराया।

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