शीतला अष्‍टमी दो जुलाई को, जानिए उत्‍तम स्‍वास्‍थ्‍य के लिए माता शीतला के पूजन का विधान

पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वादश माह की सभी तिथियों की अपनी अपनी पहचान है। स्‍कंदपुराण के मुताबिक 12 महीने में शीतला अष्टमी के व्रत का विधान है। फाल्गुन मास के मध्य शीतला जी की पूजा का विशेष विधान माना गया है या पूजा अष्टमी तिथि के दिन की जाती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 30 Jun 2021 03:00 PM (IST) Updated:Wed, 30 Jun 2021 03:00 PM (IST)
शीतला अष्‍टमी दो जुलाई को, जानिए उत्‍तम स्‍वास्‍थ्‍य के लिए माता शीतला के पूजन का विधान
स्‍कंदपुराण के मुताबिक 12 महीने में शीतला अष्टमी के व्रत का विधान है।

वाराणसी, जेएनएन। हिंदू सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वादश माह की सभी तिथियों की अपनी अपनी पहचान है। स्‍कंदपुराण के मुताबिक 12 महीने में शीतला अष्टमी के व्रत का विधान है। फाल्गुन मास के मध्य शीतला जी की पूजा का विशेष विधान माना गया है या पूजा अष्टमी तिथि के दिन की जाती है। चैत्र वैशाख ज्‍येष्‍ठ एवं आषाढ़ मास में शीतला जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। वैसे सामान्यता शीतला अष्टमी का व्रत चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रखा जाता है। लेकिन, आषाढ़ मास में भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री शीतला जी की विशेष पूजा अर्चना करने कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। सामान्यतया व्रत महिलाएं करती हैं, व्रत के अंतर्गत नियमित व सीमित रहते हुए बासी भोजन करने का विधान है। इस दिन गृहणी घर में गैस का चूल्हा जलाकर भोजन या माताजी के लिए भोग नहीं बनाती हैं, यह कार्य व्रत के एक दिन पूर्व सप्‍तमी के दिन ही रात में किया जाता है।

व्रतकर्ता को प्रातः काल शीतल जल से स्नान आदि करके पूजा अर्चना के निमित्त शीतला माता के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। ज्‍योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि आषाढ़ मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि एक जुलाई गुरुवार को दिन में 2:02 पर लगेगी जो कि अगले दिन दो जुलाई शुक्रवार को दिन में 3:29 तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप दो जुलाई शुक्रवार को शीतला अष्टमी के व्रत का पर्व मनाया जाएगा। शीतला माता को दिगंबरा बतलाया गया है। यह गर्दभ पर आसीन रहती हैं, सूप मार्जनी (झाड़ू) और नीम के पत्तों से अलंकृत रहती हैंं। इनके हाथ में शीतल जल से पूर्व कलश रहता है। नीम के पत्तों से पालन करने पर शारीरिक कष्टों की निवृत्त होती है। रोगी के समीप जल से युक्‍त कलश एवं नीम की पत्तियां रखी जाती हैं।

शीतला माता को की पूजा के लिए तिथि विशेष पर घी और शक्कर मिली हुई खीर का ही भोग अर्पित किया जाता है। इसके अतिरिक्त परिवार के लिए भी और परंपरा के अनुसार अन्य चीजें मिष्ठान आदि भी शीतला माता को अर्पित करते हैं। बीमारी, नेत्र, रोग, ज्वर, बुखार, चेचक एवं अन्य बीमारियां जिसमें शरीर पर छोटे-बड़े फोड़े फुंसी आदि दूर हो जाते हैं। शीतला स्तोत्र शीतला जी की अन्य पारंपरिक लोकगीत एवं स्थितियां शीतला जी की महिमा में गाई जाती हैं। व्रत करता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। अनर्गल वार्तालाप एवं हास परिहास से बचना चाहिए। अन्‍न ग्रहण नहीं करना चाहिए, रात्रि में शीतला माता की पूजा करके घर में दीपक जलाना चाहिए।

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