Sharad Purnima 2021 : अबकी सिद्धियोग में अमृत की बरसात, उदयातिथि में पूर्णिमा 20 अक्टूबर को

सनातन धर्म मेें आश्विन शुक्ल पूर्णिमा की मान्यता शरद पूर्णिमा के रूप में है। सुख-समृद्धि व आरोग्य-ऐश्वर्य कामना का पर्व इस बार 20 अक्टूबर को पड़ रहा है। इस बार शरद पूर्णिमा पर सिद्धियोग मिलने से पर्व और भी खास हो जा रहा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 06:20 AM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 06:20 AM (IST)
Sharad Purnima 2021 : अबकी सिद्धियोग में अमृत की बरसात, उदयातिथि में पूर्णिमा 20 अक्टूबर को
इस बार शरद पूर्णिमा पर सिद्धियोग मिलने से पर्व और भी खास हो जा रहा है।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। सनातन धर्म मेें आश्विन शुक्ल पूर्णिमा की मान्यता शरद पूर्णिमा के रूप में है। सुख-समृद्धि व आरोग्य-ऐश्वर्य कामना का पर्व इस बार 20 अक्टूबर को पड़ रहा है। इस बार शरद पूर्णिमा पर सिद्धियोग मिलने से पर्व और भी खास हो जा रहा है। ज्‍योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार पूर्णिमा 19 की शाम 6.41 बजे लग रही है जो 20 अक्टूबर की शाम 7.37 बजे तक रहेगी। उदयातिथि में पूर्णिमा 20 अक्टूबर को मिलने से शरद पूर्णिमा इसी दिन मनाई जाएगी। काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय पांडेय के अनुसार शरद पूर्णिमा में तिथि प्रतिपदा से युक्त होनी चाहिए। यह योग 20 अक्टूबर को बन रहा है।

सोलह कलाओं से युक्त चंद्रमा

च्योतिष शास्त्र के अनुसार केवल शरद पूर्णिमा पर ही चंद्रमा षोडश कलाओं से युक्त होता है। मान्यता है तिथि विशेष पर उसकी किरणों से अमृत वर्षा होती है। इस विशेषता के कारण शृंगार रस के साक्षात स्वरूप प्रभु श्रीकृष्ण ने इसे रासोत्सव के लिए उपयुक्त माना। आयुर्वेद शास्त्र में भी नक्षत्राधिपति चंद्रमा को औषधियों का स्वामी माना है। इस रात चंद्र किरणों में औषधीय अमृत गुण आ जाता है। इसकेसेवन से जीवन शक्ति मजबूत होती है।

पूजन विधान

शरद पूर्णिमा की सुबह आराध्य देव का श्वेत वस्त्राभूषण से श्रृंगार कर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। रात में गाय के दूध की घी-मिष्ठान मिश्रित खीर अर्पित कर पूर्ण चंद्रमा का पूजन करना चाहिए।

मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी ऐरावत पर सवार हो पृथ्वीलोक पर भ्रमण के लिए आती हैं और पूछती हैैं- को जागृयेतिच्। व्रत व भजन-पूजन के साथ रतजगा कर रहे भक्तों को यश-कीर्ति व समृद्धि का आशीष देती हैैं। इस पूजा को च्कोजागरी उत्सवच् के नाम से जाना जाता है। तिथि विशेष पर ऐरावत पर सवार भगवान इंद्र व माता लक्ष्मी का पूजन और उपवास करना चाहिए। रात में सविधि पूजन कर घर-बाहर, मंदिरों में यथा शक्ति दीप जलाना चाहिए। प्रात:काल इंद्र-लक्ष्मी का पूजन कर ब्राह्मणों को खीर का भोजन करा कर वस्त्रादि-दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन दुर्गोत्सव की पूरक पूजा के रूप में लक्ष्मी पूजन (लक्खी पूजा) का विधान है।

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