शरद पूर्णिमा की रात चंद्र किरणों से अमृत की बरसात, कोजागरी मान के तहत लक्ष्मी के नाम विशिष्‍ट अनुष्ठान

आश्विन शुक्ल पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा की रात सोलह कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा ने अमृत रस वर्षा की।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Mon, 14 Oct 2019 11:01 AM (IST) Updated:Mon, 14 Oct 2019 11:01 AM (IST)
शरद पूर्णिमा की रात चंद्र किरणों से अमृत की बरसात, कोजागरी मान के तहत लक्ष्मी के नाम विशिष्‍ट अनुष्ठान
शरद पूर्णिमा की रात चंद्र किरणों से अमृत की बरसात, कोजागरी मान के तहत लक्ष्मी के नाम विशिष्‍ट अनुष्ठान

वाराणसी, जेएनएन। आश्विन शुक्ल पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा की रात सोलह कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा ने अमृत रस वर्षा की। इसी विश्वास के साथ आरोग्य कामना से लोगों ने रविवार को चटक चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे गाय के दूध से बनी खीर रख हर बूंद सहेज लेने के जतन किए। इससे पहले सुबह-सवेरे गंगा समेत नदी सरोवरों में स्नान कर कार्तिक पर्यंत स्नान-विधान का भी श्रीगणेश किया। इसके लिए पंचगंगा घाट के साथ ही दशाश्वमेध, अस्सी, केदारघाट समेत स्नान घाटों पर भीड़ रही। 

राधा-कृष्ण का श्वेत श्रृंगार

शरद पूर्णिमा की रात श्रीकृष्ण का गोपियों संग रास की मान्यता अनुसार वैष्णवजनों ने रासोत्सव मनाया। राधा-कृष्ण का श्वेत धवल वस्त्रों व फूलों से श्रृंगार किया। मक्खन-मिश्री समेत श्वेत मिष्ठान अर्पित कर पूजन अनुष्ठान किए। 

कोजागरी व लक्खी पूजा 

कोजागरी के मान विधान के तहत बंगीय समाज ने महालक्ष्मी की पूजा की। इस रात ऐरावत पर सवार महालक्ष्मी के भ्रमण की मान्यता को देखते हुए उनकी कृपा आकांक्षा से रात्रि पर्यंत भजन कीर्तन करते हुए जागरण किया। 

ललिता सहस्त्रनाम पाठ 

वेद पारायण केंद्र की ओर से अस्सी स्थित परिसर में श्रीचक्र सपर्या पूजन किया गया। सुबह 9.30 से 5.30 बजे तक 11- 11 कर्मकांडी व वैदिक ब्राह्मïणों ने संस्थापक आचार्य पं. अशोक द्विवेदी के सानिध्य में अनुष्ठान किया। सायंकाल विद्वत सभा में सम्मान भी किया गया। 

आरोग्य कामना से अमृत प्रसाद की कतार 

शरद पूर्णिमा रविवार को चंद्र किरणों से अमृत की बरसात के बीच श्रद्धालुओं ने संत मत अनुयायी आश्रम मठ गड़वाघाट में जागते बिताई। इससे पहले गाय के दूध में बनी खीर में पीठाधीश्वर सद्गुरु स्वामी सरनानंद महाराज ने आयुवेर्दिक औषधि प्रदान की। इसे भर पेट खाकर खुले आसमान के नीचे बैठे रहे। आश्रम की नौ दशक पुरानी परंपरा के तहत दमा से मुक्ति व आरोग्य के लिए यह औषधि प्रदान की जाती है। शिवाला स्थित अघोराचार्य कीनाराम स्थली में पीठाधीश्वर बाबा सिद्धार्थ गौतम राम ने दवा वितरित की। 

chat bot
आपका साथी