द्वादशमासों में ज्येष्ठ मास को प्राप्त है बड़े भ्राता का दर्जा, पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होने से इसे ज्येष्ठ माना गया

ज्येष्ठ मास को सर्वश्रेष्ठ होने के कारण बड़े भ्राता का दर्जा दिया गया है। पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होने से इसे ज्येष्ठ माना गया है। नक्षत्र स्नान दान तथा व्रत के लिए सर्वोतम है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री के अनुसार महाज्यैष्ठी योग पूर्णिमा को ही होता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 11:14 AM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 05:19 PM (IST)
द्वादशमासों में ज्येष्ठ मास को प्राप्त है बड़े भ्राता का दर्जा, पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होने से इसे ज्येष्ठ माना गया
ज्येष्ठ मास को सर्वश्रेष्ठ होने के कारण बड़े भ्राता का दर्जा दिया गया है।

वाराणसी, जेएनएन। द्वादशमासों में ज्येष्ठ मास को सर्वश्रेष्ठ होने के कारण बड़े भ्राता का दर्जा दिया गया है। इस मास की पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होने से इसे ज्येष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र स्नान दान तथा व्रत के लिए सर्वोतम है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री के अनुसार महाज्यैष्ठी योग पूर्णिमा को ही होता है। इसमें गंगा या अन्य तीर्थस्थलों में स्नान का विशेष महत्व है। पूर्णिमा को जलकुम्भ पंखा, चन्दन, शर्करा, फल-वस्त्र का दान करने से भगवान विष्णु की प्रीति प्राप्त होती है। कश्मीर में आज के दिन रूपभवानी जयन्ती मनायी जाती है । तो काशी में संत कबीर दास का प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है। वहीं दक्षिण भारत में वट सावित्री व्रत का समापन होता है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा को तिलदान का महत्व बताते हुए आदित्य पुराण में लिखा है कि

ज्येष्ठे मासि तिलान् दद्यात् पौर्णमास्यां विशेषतः।।

अश्वमेधस्य यत् पुण्यं तत् प्रा प् नोति न संशयः।।

अर्थात ज्येठ मास की पूर्णिमा को तिल दान करने से अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है। शुद्धिदीपिका का कथन है कि इस तिथि में छत्र चामर उपानह तथा आसन दान करने से मनुष्य अगले जन्म में मानवों का अधिपति अर्थात राजा होता है।

इस तरह करें बिल्वरात्रि व्रत की पूजा

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को बिल्वरात्रि व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत इस वर्ष गुरुवार यानी 24 जून को पड़ रहा है। ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन सरसों मिले हुए जल से स्नान करके 'श्रीवृक्ष' (बिल्ववृक्ष) का गन्ध-पुष्पादि से पूजन करें। इसमें एक समय हविष्यान्न भोजन का विधान है। यदि भोजन को कुत्ता, सूअर या गधा देख ले तो उसका त्याग कर दें। इस प्रकार प्रत्येक शुक्ल पूर्णिमा को व्रत करें। वर्ष पर्यन्त व्रत करके समाप्ति के दिन बिल्व वृक्ष के समीप जाकर एक पात्र में एक किलो बालू या जौ, गेहूं, चावल और तिल भरे तथा दूसरे पात्र को दो वस्त्रों से ढककर उसमें सुवर्ण या मिट्टी निर्मित उमा-महेश्वर की मूर्ति स्थापित करें। दो लाल वस्त्र अर्पण करके विविध प्रकार के गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्यादि से पूजन करके

श्रीनिकेत नमस्तुभ्यं हरप्रिय नमोऽस्तु ते।

अवैधव्यं च मे देहि श्रियं जन्मनि जन्मनि॥

इस मन्त्र से प्रार्थना करें। इसके बाद बिल्वपत्र की एक हजार आहुति देकर सोलह या आठ अथवा चार दम्पतियों (स्त्री-पुरुषों) को वस्त्रालंकारादि से भूषित करके भोजन कराएं। इससे सभी प्रकार के अभीष्ट सिद्ध हो जाते हैं।

भगवान के शयन से उठने के बाद स्नान करने के कारण इसे देव स्नान पूर्णिमा का मिला है मान

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सनातन धर्म में हिंदी के 12 महीनों का अपना अलग-अलग महत्व है। जिसमें 12 महीनों की पूर्णिमाओं का विशेष स्थान होता है। इसमें जेष्ठ पूर्णिमा का विशेष स्थान माना गया है। कारण की भगवान चातुर्मास में शयन के लिए चले जाते हैं। देखा जाए तो चातुर्मास से पूर्व पड़ने वाला जेष्ठ पूर्णिमा व चातुर्मास के बाद पडने वाला कार्तिक पूर्णिमा का अपना एक विशिष्ट महत्व होता है। जेष्ठ पूर्णिमा को ही देव स्नान पूर्णिमा भी कहा जाता है।

इस दिन भगवान जगन्नाथ को विधिवत अत्यधिक स्नान कराया जाता है। सनातन धर्म में इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस बार जेष्ठ पूर्णिमा 24 जून को मनाई जाएगी। जेष्ठ पूर्णिमा तिथि 24 जून को मध्यरात्रि के बाद रात 2:22 बजे लग रही है। जो 24 जून को रात्रि 11:59 बजे तक रहेगी। इस दिन गंगा स्नान के साथ दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रहकर भगवान विष्णु का पूजन करके दान करने से अमोघ पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से लोगों को वैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है।

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