हिंदी साहित्य सम्मेलन का बीजारोपण भी 'नागरी प्रचारिणी सभा काशी' की वाटिका में, विरासती थातियों के संरक्षण का श्रेय भी

हिंदी साहित्य व भाषा के उन्नयन को सतत सचेष्ट गौरवमण्डित संस्था अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग) के बीजवपन का श्रेय भी काशी की नागरी प्रचारिणी सभा के ही नाम अंकित है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय का प्रसिद्ध राष्ट्रीय संग्रहालय (भारत कला भवन) भी नागरी प्रचारिणी सभा का सदैव ऋणी रहेगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 09:10 PM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 09:10 PM (IST)
हिंदी साहित्य सम्मेलन का बीजारोपण भी 'नागरी प्रचारिणी सभा काशी' की वाटिका में, विरासती थातियों के संरक्षण का श्रेय भी
अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग) के बीजवपन का श्रेय काशी की नागरी प्रचारिणी सभा के ही नाम अंकित है।

वाराणसी, [कुमार अजय]।  हिंदी साहित्य व भाषा के उन्नयन को सतत सचेष्ट गौरवमण्डित संस्था अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग) के बीजवपन का श्रेय भी काशी की नागरी प्रचारिणी सभा के ही नाम अंकित है। बहुत कम लोग जानते हैं कि हिंदी सेवी यशः पुरुष महामना मदन मोहन मालवीय के मन में हिंदी को हिंदुस्तान के ललाट की बिंदी बनाने का विचार की नागरी के इस दिशा में चल रहे प्रयत्नों से प्रस्फुटित हुआ। सन 1910 में मालवीय जी की अध्यक्षता में प्रयाग में आयोजित पहले सम्मेलन के अध्यक्षीय संबोधन में महामना ने स्वयं स्वीकार किया कि आयोजन की कल्पना कितने गहन मंथन के बाद 'सभा' के वाटिका में ही पल्लवित हुई। इस ऐतिहासिक सम्मलेन के आयोजन की शक्ल में ढलने के पीछे कितने तर्क-वितर्क, वाद-विवाद व मनन-विमर्शों का योगदान रहा है। टुकड़ो-टुकड़ो में इसका विस्तृत वर्णन आज भी नागरी प्रचारिणी सभा के पुराने दस्तावेजों प्रकाशित अंकों वार्षिक विवरणिकाओं तथा संस्था की प्रबंध समिति व साधारण सभा के प्रतिवेदनों में अंकित है। आगे चलकर प्रयाग में साहित्य सम्मेलन का स्वतंत्रत कार्यालय स्थापित होने तथा राजर्षि बाबू पुरुषोत्तम दास टण्डन जैसे कर्मठ व्यक्तित्व के महति अंशदान के चलते संस्था गौरव के शिखर को छूने लगी। महात्मा गांधी जैसे महनीय का आशीर्वाद मिलने के बाद संस्था ने हिंदी जगत में अपार श्रेयस प्राप्त किया। बावजूद इस वट वृक्ष की जड़ों से लिपटी नागरी प्रचारिणी सभा के आंगन से माटी की गंध को शायद ही भुलाया जा सके।

विरासती थातियों के संरक्षण का श्रेय भी

सर्व विद्या की राजधानी काशी के मणिमुकुट काशी हिंदू विश्वविद्यालय का प्रसिद्ध राष्ट्रीय संग्रहालय (भारत कला भवन) भी नागरी प्रचारिणी सभा का सदैव ऋणी रहेगा। इस अमिट तथ्य के साथ कि दो-चार-दस नहीं पूरे 22 वर्षों तक संग्रहालय के धरोहरों के संरक्षण व संवर्धन का दायित्व भी सभा ने एक चौकन्ने अभिभावक के रूप में निभाया। गुरुदेव रविंद्रनाथ ठाकुर की अध्यक्षता में स्थापित भारत कला परिषद का यह अतुलनीय कोश (संवत 1986) में सर्व प्रथम सभा के ही सिपुर्द हुआ। संवत 2007 तक इसका पुष्टिवर्धन सभा के संरक्षण में ही हुआ। इसके पूर्व यह कला वैभव सेंट्रल हिन्दू स्कूल के एक भवन में संरक्षित था। सभा के संरक्षण में आने के बाद यह थाती लगातार समृद्ध होती रही। बाद में संग्रहालय के असीम विस्तार के चलते नागरी प्रचारिणी सभा के पक्षों का संकुचन होता गया। दैव योग से उन्हीं दिनों काशी हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से संग्रहालय के संरक्षण का सकारात्मक प्रस्ताव मिलने के बाद संवत 2007 में इसे बीएचयू परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया।

मुंशी प्रेमचंद को कृतांजली

संवत 2006 में सभा ने अप्रतिम कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी का स्मारक बनवाकर उन्हें भी कृतांजली अर्पित की। उसी विक्रमी वर्ष में सभा के निजी मुद्रणालय की शुरुआत हुई। मुंशी जी के अनुज महताब राय इसके व्यवस्थापक नियुक्त हुए। उन्हीं की राय-बात से लमही गांव में प्रेमचंद स्मारक की स्थापना का निर्णय हुआ। महताब बाबू गांव के पैतृक मकान का अपना हिस्सा सभा को दान कर दिया। पास की थोड़ी सी जमीन और क्रय करके वहीं पर प्रेमचंद स्मारक की स्थापना हुई। मुंशी जी की संगमरमरी प्रतिमा लगाई गई। स्मारक का शिलान्यास तत्कालीन राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद ने किया।

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