आयुर्वेद की सेकेंड टापर सुरेश ने ढाई हजार किलोमीटर दूर बीएचयू को चुना, शल्य तंत्र विभाग के एमएस काेर्स में प्रवेश

आयुर्वेद में मास्टर इन सर्जन की प्रवेश परीक्षा में सेकेंड टापर रहीं केरल की आर्या एम सुरेश ने बीएचयू को चुना। प्राचीन चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत बीएचयू की शल्य तंत्र विभाग के एमएस (मास्टर इन सर्जरी) कोर्स में प्रवेश लेकर वह अपनेआप को औरों से काफी बेहतर समझ रहीं हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 27 Jan 2021 09:58 PM (IST) Updated:Thu, 28 Jan 2021 07:30 AM (IST)
आयुर्वेद की सेकेंड टापर सुरेश ने ढाई हजार किलोमीटर दूर बीएचयू को चुना, शल्य तंत्र विभाग के एमएस काेर्स में प्रवेश
आयुर्वेद में मास्टर इन सर्जन की प्रवेश परीक्षा में सेकेंड टापर रहीं केरल की सुरेश ने बीएचयू को चुना।

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। आयुर्वेद में मास्टर इन सर्जन की प्रवेश परीक्षा में सेकेंड टापर रहीं केरल की आर्या एम सुरेश ने बीएचयू को चुना। प्राचीन चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत बीएचयू की शल्य तंत्र विभाग के एमएस (मास्टर इन सर्जरी) कोर्स में प्रवेश लेकर वह अपनेआप को औरों से काफी बेहतर समझ रहीं हैं। भारत के दक्षिणी छोर यानि कि करीब ढाई हजार किलोमीटर दूर केरल के त्रिवेंद्रम से चलकर बीएचयू में प्रवेश लेने आईं हैं, जबकि इस रैंङ्क्षकग पर उन्हें कई बेहतर विकल्प घर के आसपास ही मिल सकते थे। मसलन, यह ऐसा उदाहरण है जो बीएचयू के आयुर्वेदिक ज्ञान-गाथा को नि:संकोच देश भर के संस्थानों से बढ़त दिलाता है। वर्तमान में आर्या बीएचयू में ही रह रही हैं।

शल्य चिकित्सा के विभागाध्यक्ष प्रो. शिव जी गुप्ता के अनुसार बीएचयू का यह विभाग आयुर्वेदिक पद्धति से सर्जरी के मामले में देश भर में मार्गदर्शक की भूमिका में रहा है। यहां पर शल्य व क्षार सूत्र से संबंधित न केवल सबसे अधिक रोगी देखे जाते हैं, बल्कि जब तक वे पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो जाए, उन पर निगरानी रखी जाती है। इससे बीएचयू में शल्य चिकित्सा में शोध और अनुसंधान की संभावना काफी बढ़ जाती है। वहीं पीजी करने वाले छात्रों को मेडिकल स्किल के रूप में  इसका प्रत्यक्ष लाभ मिलता है। इसी के आधार पर एकेडमिक जगत में बीएचयू के शल्य चिकित्सा की गुणवत्ता का मापन होता है। यहां भारत की प्राचीन विधा और आधुनिकतम पद्धति के समावेश से सर्जिकल प्रक्रिया पूरी होती है।

पीजे देशपांडे ने साठ के बाद शुरू किया विभाग

एक समय था जब आयुर्वेद की शल्य चिकित्सा विधा को लोग भूल चुके थे, लेकिन वर्ष 60 के दशक के बाद बीएचयू के प्रख्यात पुरा छात्र रहे प्रो. प्रभाकर जनार्दन देशपांडे ने बीएचयू में शल्य चिकित्सा विभाग की शुरूआत की। इसके बाद देश भर के लोगों का रूझान बीएचयू की तरफ हुआ। एनो-रेक्टल डिजीज एवं मलाशय संबंधी रोग, मूत्र विकार, वेदनाहर और फ्रैक्चर हीङ्क्षलग समेत तमाम रोगों पर शोध और इलाज प्रारंभ हुआ। आज बीएचयू के आयुर्वेद संकाय में आपरेशन से जुड़े दो विभाग हैं। शल्य तंत्र विभाग और शल्क्य विभाग, जहां छोटे-बड़े आपरेशन किए जाते हैैं।

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