सावन का दूसरा सोमवार : श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में आज माता पार्वती संग गर्भगृह में विराजेंगे बाबा

सावन के दूसरे सोमवार के लिए सभी मंदिरों में तैयारियां लगभग पूरी हो गईं है। गांव से शहर तक के देवालयों में रविवार शाम से ही मंदिरों की साफ-सफाई शुरु हो गई। वहीं बाबा दरबार में शयन आरती के बाद मंदिर की सफाई का कार्य आरंभ हुआ।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 08:30 AM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 08:30 AM (IST)
सावन का दूसरा सोमवार : श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में आज माता पार्वती संग गर्भगृह में विराजेंगे बाबा
दूसरे सोमवार की परंपरा अनुसार बाबा दरबार में सप्तर्षि आरती के बाद किया जाएगा श्रृंगार

वाराणसी, जागरण संवाददाता। सावन के दूसरे सोमवार के लिए सभी मंदिरों में तैयारियां लगभग पूरी हो गईं है। गांव से शहर तक के देवालयों में रविवार शाम से ही मंदिरों की साफ-सफाई शुरु हो गई। वहीं बाबा दरबार में शयन आरती के बाद मंदिर की सफाई का कार्य आरंभ हुआ।

मंदिर को सुगंधित पुष्पों से मंदिर को सजाया गया। परंपरानुसार सावन के दूसरे सोमवार को गर्भगृह में बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ की माता गौरा संग विशेष झांकी सजाई जाएगी। उसके बाद बाबा का विशेष श्रृंगार किया जाएगा। इस दुर्लभ और नयनाभिराम झांकी देखने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। बाबा का यह श्रृंगार शाम को भोग आरती के पहले किया जाता है। मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील वर्मा ने बताया कि सावन के दूसरे सोमवार को मंगला आरती के बाद आमभक्तों के दर्शन के लिए मंदिर का गर्भ गृह बंद करके झांकी दर्शन द्वार खोल दिया जाएगा। सभी भक्तों को कोरोना गाइडलाइन के पालन के साथ ही प्रवेश दिया जाएगा।

यह वस्तुएं होंगी प्रतिबंधित

एसपी ज्ञानवापी ने श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी तरह का इलेक्ट्रानिक उपकरण, मोबाइल, कैमरा, ब्लेड, चाकू, पेन, पेन ड्राइव, बीड़ी-सिगरेट, लाइटर, माचिस आदि लेकर कतार में न लगने की अपील की है। उन्होंने आग्रह किया है कि इस तरह की वस्तुएं लाकर में रखकर ही कतार में लगें। मंदिर परिसर हर छह घंटे पर सैनिटाइज किया जाएगा। आपात स्थिति के लिए डाक्टर और एनडीआरएफ की टीम भी तैनात रहेगी। पेयजल और खोया पाया केंद्र, के साथ पब्लिक एड्रेस सिस्टम की भी व्यवस्था की गई है।

काशी में अनुजों सहित शिवलिंग रुप में पूजित हैं श्रीराम

लंका पर रण अभियान के निमित्त सेतु बंधन से पूर्व श्रीराम ने अपने आराध्य भगवान शिव को रामेश्वर लिंग के रूप में पूजा यह कथा सर्वविदित है। इस अनुष्ठान के जरिए रघुकुल तिलक ने खुद तो नवीन ऊर्जा पाई ही यह अभिष्ट भी स्पष्ट है कि इस मौके पर (शिवद्रोही ममभगत कहावा, सो नर मोहि सपनेउ नहीं भावा) जैसी सपाट बयानी से उन्होंने (उत्तर भारत वैष्णव व दक्षिण भारत शैव) के मतैक्य की निरझर धारा भी बहाई। अलबत्ता यह तथ्य प्राय: अगम रहा है कि (जाके प्रिय न राम वैदेही, तजिए ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही) जैसी स्पष्टोक्ति के साथ भगवान शिव ने भी अपनी राजधानी काशी पुरी में अनुजों सहित श्रीराम व उनके परम सेवक हनुमंत लला को शिवलिंग के रूप में स्वयं के साथ एकाकार किया।

रामेश्वरम स्थापना के आभार को बड़ी श्रद्धा से स्वीकार किया। अपने ईष्ट रघुनंदन को अपने सानिध्य में ही पूजवाया। सनातन धर्म ग्रंथों में पंथिक समरसता का एक और सुनहरा अध्याय जोड़वाया।नगर की दाक्षिणात्य बस्ती हनुमान घाट को प्राप्त है यह श्रेयसयह भी उल्लेखनीय है कि श्रीरामेश्वर, भरतेश्वर, लक्ष्मणेश्वर व शत्रुध्नेश्वर सहित श्री हनुमंतेश्वर के रूप में ये पांचों लिंग रूप काशी केदार खंड स्थित दाक्षिणात्य बस्ती हनुमान घाट में ही विराजते हैं। इस पावन क्षेत्र की महत्ता आभामंडित करते हैं पौराणिक आख्यानों से सजे पृष्ठों वाले काशी खंड को प्रमाणों से साजते हैं।

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