सावन माह 2021 : मानवीय चेतना के अंतर्यामी हैं भगवान शिव, स्‍वरूप माना गया है अत्‍यंंत कल्‍याणकारी

यह ब्रह्मण्ड अनादि और अनंत है। भगवान शिव भी अनादि अनन्त हैं। यह समग्र सृष्टि ही शिव के अंदर प्रविष्ट है। सृष्टि के आदि में सदाशिव ही महाकाल के रूप प्रतिष्ठ होकर इस चराचर सृष्टि के आधार हैं। अपने इस शाश्वत स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण भी करते हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 11:57 AM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 11:57 AM (IST)
सावन माह 2021 : मानवीय चेतना के अंतर्यामी हैं भगवान शिव, स्‍वरूप माना गया है अत्‍यंंत कल्‍याणकारी
शिव अपने शाश्वत स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण भी करते हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। यह ब्रह्मण्ड अनादि और अनंत है। भगवान शिव भी अनादि और अनन्त है। यह समग्र सृष्टि ही शिव के अंदर प्रविष्ट है। सृष्टि के आदि में सदाशिव ही महाकाल के रूप प्रतिष्ठ होकर इस चराचर सृष्टि के आधार बनते हैं। अपने इस शाश्वत स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण भी करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रह नक्षत्रों को एकत्रित कर रखा है।

परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है। कारण कि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है। शिव सृष्टि को संहार से बचाते हुए संहार कारक भी हैं। भगवान विष्णु का परम भक्त होने के कारण शिव को सबसे बड़ा वैष्णव भी कहा जाता है। वेदों में इनका नाम रुद्र है। लोक में इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधर , विष्णु , बाघम्बर आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हें भैरव के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव मानवीय चेतना के अन्तर्यामी हैं।

शक्ति से युक्त होकर अर्धनारीश्वर के रूप में पूर्ण होते हैं। योगिराज के रूप में सबके आराध्य हैं। इनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शंंकर सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। शुक्ल यजुर्वेद संहिता में सूर्य, इंद्र, विराट पुरुष, वृक्ष, वनस्पति, अन्न, जल, वायु एवं मनुष्य सभी भगवान शिव स्वरूप ही है। भगवान सूर्य के रूप में शिव मनुष्य के कर्मों का भली-भांति निरीक्षण कर उन्हें वैसा ही फल देते हैं।

आशय यह है कि संपूर्ण सृष्टि शिवमय है। मनुष्य अपने-अपने कर्मानुसार फल पाते हैं। स्वस्थ बुद्धि वालों को सुख, शान्ति, समृद्धि और दुर्बुद्धि वालों को व्याधि, दुख, मृत्यु प्रदान करते हैं। वैसे तो त्रिदेवों में ब्रह्मा को रजोगुण, विष्णु को सतोगुण एवं शिव को तमोगुण संपूर्ण देवता के रूप में प्रतिष्ठापित किया है। तीनों का एकाकार ही सत्व, रज, तम की सामूहिक संकल्पना को पूर्ण करते हुए परम ब्रह्म की ओर अग्रसारित करता है। इन तीनों गुणों से परिपूर्ण रहते हुए भी भगवान शिव इन तीनों गुणों से परे हैं।

भक्तगण अपनी प्रवृत्ति और प्रकृति के अनुसार किसी भी देवता में विद्यमान इन गुणों में से किसी एक गण से संबंधित पूजन विधि का आश्रय लेते हुए शिव की उपासना में तल्लीन होकर अपने अभीष्ट फल को प्राप्त करते हैं। राक्षसों के द्वारा भगवान शिव की तमोगुणी स्वरूप की उपासना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। वही भगवान शिव स्वयं भगवान विष्णु के सतोगुणी स्वरूप की उपासना करते हैं। भगवान शिव सत्व रज तम रूपी इन तीनों गुणों से युक्त रहकर भी इससे परे एक ऐसे देवता हैं जिनके द्वारा सृष्टि में पूर्ण संतुलन बना रहता है।

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