सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने चलाई सड़क साहित्य की धारा, लेखनी से कोई विधा अछूती नहीं रही

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (जन्म 15 सितंबर 1927 निधन 23 सितंबर 1983) हिंदी साहित्य जगत के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं जिनकी लेखनी से कोई विधा अछूती नहीं रही। चाहे वह कविता हो गीत हो नाटक हो अथवा आलेख हों।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 11:28 PM (IST) Updated:Thu, 23 Sep 2021 08:50 AM (IST)
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने चलाई सड़क साहित्य की धारा, लेखनी से कोई विधा अछूती नहीं रही
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (जन्म 15 सितंबर 1927, निधन : 23 सितंबर 1983) हिंदी साहित्य जगत के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं

जागरण संवाददाता, वाराणसी। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (जन्म 15 सितंबर 1927, निधन : 23 सितंबर 1983) हिंदी साहित्य जगत के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं, जिनकी लेखनी से कोई विधा अछूती नहीं रही। चाहे वह कविता हो, गीत हो, नाटक हो अथवा आलेख हों। यही नहीं सड़क साहित्य की धारा उन्होंने ही शुरू की। उनका मानना था कि जब दो या इससेे अधिक गंभीर कवियों द्वारा उठते-बैठते, घूमते-फिरते व्यंग्य-विनोद किया जाय तो वह सड़क साहित्य है।

साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर, 1927 को बस्ती हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा बस्ती, बनारस व प्रयागराज में हुई। प्रारंभिक शिक्षा बस्ती के एंग्लो संस्कृत हाईस्कूल से हुई। वहीं इंटर करने वह बनारस आ गए। वरिष्ठ साहित्यकार व यूपी कालेज हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. रामसुधार सिंह ने बताया कि वह कबीरचौरा स्थित श्यामलाकांत वर्मा के घर के बगल में किराये पर मकान ले कर रहते हैं। वर्ष 1942 में उन्होंने क्वींस कालेज से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। वहीं उच्च शिक्षा के लिए प्रयाग चले गए। वर्ष 1944 से 1949 तक वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र रहे। प्रयाग से एमए करने के बाद वहीं एजी विभाग में प्रमुख डिस्पैचर के पद नौकरी मिल गई। कुछ ही वर्षों के बाद उनकी नियुक्ति आल इंडिया रेडियो-दिल्ली में हिंदी समाचार विभाग में सहायक संपादक पद हो गई। वर्ष 1960 में वह दिल्ली से लखनऊ रेडियो स्टेशन आ गए। लखनऊ रेडियो की नौकरी के बाद वह कुछ दिनों तक भोपाल रेडियो में भी कार्यरत रहे। बीच में कुछ दिनों तक बस्ती के खैर इंटर कालेज में सर्वेश्वर दयाल ने अध्यापन का भी कार्य किया। वहीं दिनमान पत्रिका शुरू होने पर वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय के आग्रह पर वर्ष 1964 में वह दिल्ली आ गए और और दिनमान से जुड़ गए।

इस दौरान उन्होंने समाज में व्याप्त हर बुराई कड़ा प्रहार किया। एक छोटे से कस्बे से अपना जीवन शुरू करने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने रचनात्मक की ऐतिहासिक ऊंचाइयों को छुआ है। वह एक सफल पत्रकार भी थे। उन्होंने दिनमान का कार्यभार संभाला तो समकालीन पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को समझा और सामाजिक चेतना जगाने में अपना योगदान दिया। वर्ष 1982 में प्रमुख बाल पत्रिका पराग के सम्पादक बने व मृत्युपर्यन्त पराग से जुड़े रहे। बाल साहित्य को उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित करने का काम किया। क्योंकि सर्वेश्वर मानते थे कि जिस देश के पास समृद्ध बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं रह सकता। वर्ष 1983 में कविता संग्रह खूंटियों पर टंगे लोग के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 24 सितंबर 1983 को उनकी मृत्यु हो गई।

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