Sardar Vallabhbhai Patel Birth Anniversary : "काशी" बने बनारस का आधिकारिक नाम, सरदार पटेल थे तैयार

बनारस का आधिकारिक नाम काशी ही हो। उन्होंने 5 अक्टूबर 1949 को बनारस रियासत का विलय कराया था जिसके बाद वाराणसी अस्तित्व में आया। काशिराज विभूति नारायण सिंह व गोविंद मालवीय के अनुरोध पर सरदार काशी नाम पर राजी थे मगर वरुणा व असि मिलाकर वाराणसी की अवधारणा सामने आई।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 03:41 AM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 09:49 AM (IST)
Sardar Vallabhbhai Patel Birth Anniversary : "काशी" बने बनारस का आधिकारिक नाम, सरदार पटेल थे तैयार
25 नवंबर 1948 में सरदार पटेल को बीएचयू ने डाक्टर आफ ला की मानद उपाधि दी थी।

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना (वर्ष 1916) के मौके पर महात्मा गांधी मंच से रईस और धनवान लोगों पर व्यंग्य कस रहे थे। हैदराबाद के निजाम और दूसरी रियासतों के राजा उन्हें अनसुना कर अब बस भी करो गांधी बोल रहे थे। एनी बेसेंट और तमाम नेताओं द्वारा टोकने पर भी जब निजाम नहीं रुके, तो अति विशिष्ट अतिथि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने तेज स्वर में कहा, बक-बक बंद करो और गांधी को सुनो। सरदार ने हैदराबाद निजाम और कपूरथला महाराजा पर आंखें तरेरीं तो दोनों सहम कर चुप हो गए।

गांधी जी के इसी भाषण के बाद निजाम की जूतियों की बोली लगाने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी मंच पर आए। बीएचयू के शुभारंभ से पूर्व मालवीय जी जब दान की मांग कर रहे थे, हैदराबाद निजाम ने उनकी झोली में अपनी जूती फेंक दी। मालवीय जी ने उसी दिन जूती की बोली लगने का एक विज्ञापन अखबार में छपवा दिया।

राकेश गुप्ता द्वारा लिखी पुस्तक लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अनुसार गांधी जी के भाषण के बाद मालवीय जी ने एलान किया कि हमारे पास एक गैर-मामूली जूती है, जनाब जो कि निजाम साहब की है, इसलिए खुल कर बोली लगाइए। किसी ने सौ-दो सौ और हजार रुपये लगाए, इतने में सरदार पटेल खड़े हुए और बोले पूरे एक लाख। किसी ने सरदार से पूछ लिया कि आप क्या करेंगे इस जूती का, उन्होंने जवाब दिया कि इसे निजाम के सिर पर मारूंगा। इसके बाद तत्काल निजाम ने इज्जत बचाने के लिए अपनी ही जूती पर दस लाख की बोली लगा दी। तब तक सभा में बैठे एक व्यक्ति ने कहा, लो भई, पड़ गई निजाम की जूती, निजाम के सिर। 25 नवंबर 1948 में सरदार पटेल को बीएचयू ने डाक्टर आफ ला की मानद उपाधि दी थी। उन्होंने कहा था बनारस का आधिकारिक नाम काशी ही हो। उन्होंने 5 अक्टूबर 1949 को बनारस रियासत का विलय कराया था, जिसके बाद वाराणसी अस्तित्व में आया। काशिराज विभूति नारायण सिंह व गोविंद मालवीय के अनुरोध पर सरदार काशी नाम पर राजी थे, मगर वरुणा व असि मिलाकर वाराणसी की अवधारणा सामने आई।

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