वाराणसी में संस्कृति संसद : विमर्शों ने नैराश्य का घटाटोप तोड़ा, सोच को नए आयामों से जोड़ा

सनातनी समाज की तंद्रा भंग कर पुन अपना गौरव बोध जगा सके। संसद के उद्घाटन सत्र से ही रूद्राक्ष के विशाल आगार में शाम तक डटी रह गईं स्वयंप्रभा ने आयोजन से आए इस विचार को मनोयोग से आत्मसात किया कि यदि संस्कृत संस्कृति व संस्कारों का क्षरण रोकना है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 12 Nov 2021 07:51 PM (IST) Updated:Fri, 12 Nov 2021 07:51 PM (IST)
वाराणसी में संस्कृति संसद : विमर्शों ने नैराश्य का घटाटोप तोड़ा, सोच को नए आयामों से जोड़ा
वाराणसी के रुद्राक्ष अंतरराष्ट्रीय कंवेंशन सेंटर में शुक्रवार को संस्कृति संसद में शामिल संत समाज।

वाराणसी, कुमार अजय। लोक व्यवहारों से जुड़े अनेक पर्वोत्सवों पर भी अवकाश लेने में कृपणता बरतने वाली राजकीय कर्मचारी स्वयंप्रभा द्विवेदी अगले तीन दिनों तक छुट्टी पर रहेंगी। उन्हें लंबे समय से संस्कृति संसद के आयोजन की प्रतीक्षा थी। प्रबल इच्छा थी कि चतुर्दिक प्रहारों से जुझ रहे अपने सनातनी धर्म-दर्शन की दशा-दिशा को लेकर अंतर में घुमड़ते प्रश्नों का समाधान पा सकें कोई तो ऐसा मार्गदर्शन मिले जो नकारात्मक सोच से सुसुष्त होते जा रहे स्वयं के अभिमान को नई ऊर्जा दे।

सनातनी समाज की तंद्रा भंग कर पुन: अपना गौरव बोध जगा सके। संसद के उद्घाटन सत्र से ही रूद्राक्ष के विशाल आगार में शाम तक डटी रह गईं स्वयंप्रभा ने आयोजन के मंच से आए इस विचार को मनोयोग से आत्मसात किया कि यदि संस्कृत, संस्कृति व संस्कारों का क्षरण रोकना है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रचे जा रहे षडयंत्रों के तहत चल रहे अपप्रचारों को अपने अमोघ आत्मबल से टोकना है तो सभी को समवेत प्रयास करने होंगे। अपनी गौरवशाली परंपराओं में विश्वास व मान के नूतन रंग भरने होंगे। अपने रेस्त्रां का समूचा प्रबंधन अनुज को सौंपकर संस्कृति संसद में पूर्ण भागीदारी का अंकन करा चुके बंधुवर आशुतोष मिश्र वे भी संसद के पटल से आए इस निष्कर्ष से सहमत हैं कि सनातनी संस्कृति के नवोन्मेष के लिए सर्वप्रथम शिक्षा क्षेत्र में सार्थक हस्ताक्षेप आवश्यक है। उसके बिना सनातन जीवन दर्शन के गौरव की पुनर्स्थापन की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्हें रास आया हरिद्वार से पधारे अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवीन्द्रपुरी जी महाराज का यह प्रबोधन की भारतीय संस्कृति के उत्कर्ष के लिए शिक्षा को संस्कारों से जोड़ना आज का युगधर्म है।

शिक्षा प्रणाली का नया खाका खींचने से पहले यह निश्चित कर लेना आवश्यक है कि हमें मात्र एक व्यक्ति नहीं अपितु चरित्रवान व्यक्ति का व्यक्तित्व गढ़ना है जो सनातन समाज के नैतिक मूल्यों का संवाहक बने। सनातनी समाज व हिंदू धर्मदर्शन पर हो रहे आक्रमणों से व्यथित साधारण गृहणी किंतु प्रबुद्ध नागरिक अंजू अग्रवाल के लिए यह प्रथम अवसर है धर्म संस्कृति पर विमर्श के लिए आयोजित किसी वैचारिक संगम में भाग लेने का उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक इंद्रेश कुमार के इस वक्तव्य पर्याप्त संतोष व ढाढस मिला कि संस्कृति संगम की साक्षी नगरी काशी से मनन चिंतन का संदेश सप्तसागर पार तक जाएगा। समस्त कूट रचित धारणाओं को तोड़ हिंदू दर्शन के सूत्र वाक्य सर्वे भवन्तु सुखिन: के भाव को विश्वव्यापी स्वीकार्यता दिलाएगा।

प्रणाम: सर्वमेव कुशलम्

वेद की ऋचाओं से गूंजते रूद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर के रुपस सभागार व इसकी प्रशस्त विथिकाओं में संस्कृत व वेद विद्यालयों से आए नन्हें बटुकों की टहलान अपने आप एक पृथक ही आकर्षण थी। धोती, कुर्ता व कंधे पर श्वेत पटकों के परिधान में सजे तिलकधारी इन बच्चों के बीच अभिवादन प्रणाम: सर्वमेव कुशलम् का आदान प्रदान किसी की भी दृष्टि को संमोहन में बांध लेने वाला था। कार्यक्रम में भाग लेने आए कतिपय आगंतुकों ने भी साथ आए बच्चों को पारंपरिकवेश में सज्जित कर रखा था। इन्हें देखकर गुरुकूल युग की छवियां आंखों के सामने साकार हो रहीं थी।

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