पीसा की मीनार से पांच डिग्री ज्यादा झुका हुआ है 500 साल पुराना काशी का रत्नेश्वर महादेव मंदिर

देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में कुछ मंदिर बेहद अद्भुत और तमाम रहस्यों को छिपाए हुए हैैं। ऐसा ही करीब 500 साल पुराना रत्नेश्वर महादेव मंदिर सिंधिया घाट पर है। यह मंदिर अपने अक्ष पर पीसा की मीनार से पांच डिग्री ज्यादा झुका हुआ है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 18 Jan 2021 09:35 PM (IST) Updated:Mon, 18 Jan 2021 09:51 PM (IST)
पीसा की मीनार से पांच डिग्री ज्यादा झुका हुआ है 500 साल पुराना काशी का रत्नेश्वर महादेव मंदिर
वाराणसी, सिंधिया घाट पर झुका हुआ रत्नेश्वर महादेव मंदिर।

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना] । देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में कुछ मंदिर बेहद अद्भुत और तमाम रहस्यों को छिपाए हुए हैैं। ऐसा ही करीब 500 साल पुराना रत्नेश्वर महादेव मंदिर सिंधिया घाट पर है। यह मंदिर अपने अक्ष पर पीसा की मीनार से पांच डिग्री ज्यादा झुका हुआ है और बिना घंटा-घडिय़ाल के भी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व कलात्मक रूप से बेहद ऊंचा स्थान रखता है। दरअसल, हाल ही में ट्विटर पर एक संस्था लॉस्ट टैैंपल ने इसकी तस्वीर लगाकर पूछा था कि क्या बता सकते हैैं कि किस महान शहर में यह मंदिर स्थित है। जवाब में पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया- 'यह काशी का रत्नेश्वर महादेव मंदिर है, अपने पूर्ण सौंदर्य के साथ। इसके बाद यह मंदिर दुनियाभर में चर्चा में आ गया।

गुजरात के सोलंकी वंश के बनाए गए मंदिरों से मेल

यूनेस्को की विश्व धरोहर में शुमार इटली में स्थित विश्व विख्यात पीसा की मीनार का झुकाव चार डिग्री है, जबकि यह मंदिर गंगा की धारा के विरुद्ध मणिकर्णिका घाट की ओर अपने अक्ष पर नौ डिग्री झुका हुआ है। यह मंदिर वास्तुकला के साथ-साथ नागर शैली की उत्कृष्टतम कला का प्रतीक है। यह गुजरात के सोलंकी वंश के बनाए गए मंदिरों से मेल खाता है। 'काशी खंड में भी वीरतीर्थ और वीरेश्वर दर्शन और सिंधिया घाट पर स्थित महादेव के मंदिर में पूजा का जिक्र है। बीएचयू में कला-इतिहास विभाग के प्रो. अतुल त्रिपाठी के अनुसार ब्रिटेन के प्रख्यात चित्रकार विलियम डेनियल ने 1834 में बनारस यात्रा के दौरान रत्नेश्वर महादेव की पेंटिंग बनाई थी, जिसमें इसका शिखर झुका है। वहीं, राबर्ट इलियट की 1824 में बनाई पेंटिंग में दो मंदिर झ़ुके हुए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि एक मंदिर गंगा में डूब चुका है।

मंडप के गुंबद पर घंटीनुमा आकृति है खास : प्रो. त्रिपाठी के अनुसार मंदिर में प्रदक्षिणा पथ नहीं है, इस कारण इसे निरंधार श्रेणी में रखा जाता है। गर्भगृह के शिखर पर समदृश आकृति के छोटे-छोटे शिखर बने हुए हैं। मंदिर के मंडप पर बना गोल गुंबद प्राय: गुजरात के वास्तुकला में दिखता है। इसकी एक अन्य विशिष्टता मंडप की छत पर बनी घंटीनुमा छोटी-छोटी कलाकृतियां हैैं। यानी मंदिर के निर्माण की लागत काफी ज्यादा रही होगी और कारीगर गुजरात के होंगे।

परदेसियों के लिए कौतूहल का विषय था मंदिर : डेनियल ने लिखा है-'पीसा की मीनार से भी खास यह पानी में डूबा एक जीवंत मंदिर है, जो परदेसियों के लिए अभूतपूर्व व कौतूहल का विषय है। उन्होंने इसे पैगोडा (स्तूप) बताया है। यह भी लिखा है कि मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। गर्भगृह और मंडप झुके हुए हैं। आइआइटी-बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डा. शिशिर गौर के अनुसार मंदिर का आधारतल विशेष है। इसके झुकाव का कारण गंगा का कटाव न होकर तल का धंसाव होने की संभावना ज्यादा है। जांच के बाद ही इसके तल की गहराई और अन्य रहस्यों पर से पर्दा हटेगा।

दो दंतकथाओं में भी है उल्लेख : मंदिर निर्माण पर दो दंतकथाएं भी हैं। एक के मुताबिक राजा मान ङ्क्षसह ने अपनी माता रत्नाबाई के लिए मंदिर बनवाया और मां का कर्ज उतारने की बात कही। कहते हैैं इसके बाद मंदिर पीछे की ओर झुक गया, क्योंकि मां का ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता। इसलिए इसे मातृ ऋण मंदिर भी कहते हैैं। दूसरी दंतकथा है कि अहिल्याबाई की दासी रत्ना ने उधार लेकर मंदिर निर्माण कराया और अपने नाम पर इसका नाम रत्नेश्वर महादेव रखा। इसके बाद उसे श्राप मिला कि इस मंदिर में दर्शन-पूजन व अनुष्ठान नहीं होगा।

 

मंदिर उसी खास जगह पर किसी भूगर्भीय हलचल की वजह से बाद में तिरछा हुआ होगा

जेम्स प्रिसेंप द्वारा रचित बनारस इल्सट्रेटेड पुस्तक में मणिकर्णिका घाट का एक स्केच है, जिसमें तारकेश्वर मंदिर के बगल में रत्नेश्वर महादेव का मंदिर सीधा है। इससे पता चलता है कि मंदिर उसी खास जगह पर किसी भूगर्भीय हलचल की वजह से बाद में तिरछा हुआ होगा। हालांकि अभी स्पष्ट तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता।

-प्रो. मारुतिनंदन तिवारी, मंदिर व मूर्तिकला विशेषज्ञ, एमिरेट्स प्रोफेसर, बीएचयू

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