रमजान 2021 : आज से शुरू होगा रमजान का दूसरा अशरा, इबादतों का सिलसिला तेज

रमजान में तीन अशरे होते हैं। एक अशरा 10 दिन को कहते हैं। इस तरह देखा जाए तो रमजान के 30 दिनों को तीन अशरों में बांटा गया है। एक रमजान से 10 रमजान तक पहला अशरा रहमत का होता है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 23 Apr 2021 08:50 AM (IST) Updated:Fri, 23 Apr 2021 08:50 AM (IST)
रमजान 2021 : आज से शुरू होगा रमजान का दूसरा अशरा, इबादतों का सिलसिला तेज
रमजानुल मुबारक का रहमत का पहला अशरा खत्म होगा, तो वहीं मगफिरत का दूसरा अशरा शुरू होगा।

वाराणसी, जेएनएन। रमजानुल मुबारक का रहमत का पहला अशरा मगरिब की अजान के साथ ही खत्म होगा, तो वहीं मगफिरत का दूसरा अशरा शुरू होगा। दूसरे अशरे में सच्चे दिल से की गई तौबा कुबूल होती है और गुनाहों की माफी मिलती है। उलमा-ए-कराम ने रोजेदारों से इबादतों संग कोरोना से निजात व लोगों की सलामती के लिए दुआ मांगते रहने की अपील की है।

रमजान में तीन अशरे होते हैं। एक अशरा 10 दिन को कहते हैं। इस तरह देखा जाए तो रमजान के 30 दिनों को तीन अशरों में बांटा गया है। एक रमजान से 10 रमजान तक पहला अशरा रहमत का होता है। इस अशरे में अल्लाह पाक अपने बंदों पर रहमत नाजिल फरमाता है। दूसरा अशरा मगफिरत का है यानी गुनाहों से माफी का। ये अशरा 10 रमजान को मगरिक की अजान से शुरू होकर 20 रमजान को मगरिब की अजान से पहले तक है। रमजान के महीने में रहमत के दरवाजे खुल जाते हैं।

इस अशरे में गुनाहगारों की तौबा कुबूल की जाती है। इसलिए इस अशरे में रोजेदारों को गुनाहों के लिए माफी तलब करनी चाहिए। इस अशरे में पंच वक्ता नमाजों एहतेमाम करते हुए तिलावत-ए-कलामपाक में दिल लगाना चाहिए। भूखों को खाना खिलाएं, जरूरतमंदों की मदद करें और रोजेदारों को इफ्तार कराएं। इससे खुदा राजी होकर अपने बंदों को बरकत की रोजी इनायत करता है।

दुनिया की ख्वाहिशों को भुला देने का नाम है माहे रमजान

इस्लामिक वर्ष के 12 महीनों में रमजान नौवां महीना है। यह महीना मुसलमानों के लिए विशेष मायने रखता है। इसलिए भी कि इस महीने को रब ने अपना महीना कहा है। इस महीने को संयम और समर्पण के साथ ही खुदा की इबादत का महीना माना जाता है। माहे रमजान में अल्लाह का हर नेक बंदा रूह को पाक करने के साथ अपनी दुनियावी हरकत को पूरी तत्परता के साथ वश में रखते हुए केवल अल्लाह की इबादत में ही मशगूल हो जाता है। रमजान में खुदा की इबादत बहुत असरदार होती है। इसमें सुुुुबह सहर से शाम मगरिब कि अजान होने तक रोजेदार खानपान सहित सभी दुनियावी ख्वाहिशों को भुला कर न सिर्फ संयम का परिचय देता है, बल्कि तमाम बुराईयों से माफी-तलाफी भी करता है।

यूं तो रब की इबादत जितनी भी कि जाये कम है, मगर रमजान में खुदा की इबादत मोमिनीन और तेज कर देता है, क्योंकि रमज़ान के दिनों में इबादत का खास महत्व है। यही वजह है कि इस माहे मुबारक में रोजेदार जकात देता है। जकात का अपना महत्व है, जकात अपनी कमाई में से ढाई प्रतिशत गरीबों में बांटने को कहते है। जकात देने से खुदा बंदे के कारोबार और माल में बरकत के साथ ही उसकी हिफाजत भी करता है। इस्लाम में ईमान, नमाज, रोजा, हज व जकात पांच फराइज हैं। माहे रमजान न सिर्फ रहमतों, बरकतो की बारिश का महीना हैं, बल्कि समूचे मानव जाति को इंसानियत, भाईचारा, प्रेम, मोहब्बत और अमन-चैन का भी पैगाम देता है। नमाज के बाद रमजान मुसलमानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।

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