जमींदारों ने चुनार की रामलीला को दी जमीन, 176 वर्षों से अनवरत सज रहा रंगमंच

अंग्रेजी शासन काल से शुरू हुई चुनार की सुप्रसिद्ध रामलीला इस वर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन 02 अक्टूबर को मुकुट पूजा के साथ शुरू होकर 21 दिनों तक चलेगी।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 26 Sep 2018 02:05 PM (IST) Updated:Wed, 26 Sep 2018 02:10 PM (IST)
जमींदारों ने चुनार की रामलीला को दी जमीन, 176 वर्षों से अनवरत सज रहा रंगमंच
जमींदारों ने चुनार की रामलीला को दी जमीन, 176 वर्षों से अनवरत सज रहा रंगमंच

मीरजापुर (चुनार) । सदानीरा मां गंगा के तट पर बसी भतृहरि की तपोनगरी चुनार में करीब एक सौ छिहत्तर वर्ष पूर्व अंग्रेजी शासन काल से शुरू हुई चुनार की सुप्रसिद्ध रामलीला इस वर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन 02 अक्टूबर को मुकुट पूजा के साथ शुरू होकर 21 दिनों तक चलेगी। चुनार नगरी की परंपरा बन चुकी इस रामलीला का प्रमुख आकर्षण इसमें भाग लेने वाले स्थानीय कलाकार और उनके द्वारा किया जाने वाला जीवंत अभिनय होता है।

आधुनिकता की दौड़ में जहां आज फेसबुक, व्हाट्सएप जैसी मोबाइल क्रांति और टेलीविजन सीरियलों के आधिक्य के बाद भी यहां के कलाकारों की कड़ी मेहनत और जीवंत अभिनय से चुनार की रामलीला आज भी प्रासंगिक है और इसका आकर्षण लोगों में वैसे ही बना हुआ है जैसे पहले था। आमजन और लीला प्रेमियो के सीधे सहयोग से संचालित होने वाली श्री राघवेंद्र रामलीला नाट्य समिति के तत्वावधान में नगर के मुख्य बाजार स्थित रामलीला मैदान पर धनुष यज्ञ, परशुराम लक्ष्मण संवाद, सीता हरण, लंका दहन, अंगद विस्तार, काली जी का जुलूस, राम बारात, रावण वध (दशहरा मेला) व भरत मिलाप मेला जैसी लीलाओं का साक्षी बनने आसपास के दर्जनों गांवों से हजारों लीला प्रेमी यहां आते हैं। अपने नगर की इस पुरातन परंपरा को सहेजने के लिए साल दर साल स्थानीय धर्म प्रेमी और जागरूक युवा इसके मंचन को लेकर सजग हैं। नगर की यह सांस्कृतिक थाती को बनी रहे इसके लिए समिति से जुड़े लोग कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।

 

नगर के रईसों व जमींदारों ने शुरू की थी रामलीला

नगर के वरिष्ठ साहित्यकार तथा वर्षों से रामलीला में सहयोगी रहे शिव प्रसाद कमल बताते है कि रामनगर की रामलीला से प्रेरित होकर करीब एक सौ छिहत्तर वर्ष पूर्व चुनार के रइसों और जमींदारों द्वारा रामलीला का मंचन शुरू किया गया था। कालांतर में इसका विस्तार हुआ और आज आसपास के क्षेत्र में रामनगर की रामलीला के बाद चुनार का अपना अलग महत्व है। करीब 68 वर्ष पूर्व रामलीला के लिए भव्य मंच और कलाकारों के तैयार होने के लिए भवन का निर्माण किया गया। भरत मिलाप और विजयादशमी की लीला को छोड़ कर सभी लीलाएं रामलीला मैदान पर ही आयोजित की जाती हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सुखद बात यह है कि यहां के लोग इस गौरवशाली इतिहास को सहेजने में स्वयं बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। बिना किसी पारिश्रमिक के कलाकार उत्कृष्ट अभिनय करते हैं। 

आंतरिक ऊर्जा से जीवंत होता है अभिनय

एक दशक से अधिक समय से दशानन का किरदार कर रहे गोविंद जायसवाल ने बताया कि रामलीला मंचन के दौरान अभिनय करते समय एक अलग अनुभूति और आंतरिक ऊर्जा मिलती है जिससे पात्र स्वयं जीवंत हो उठता है। वहीं डायरेक्टर अविनाश अग्रवाल का कहना है कि सभी कलाकारों द्वारा अपना पार्टी बेहद संवेदनशील और जिम्मेदारी से निभाया जाता है।

चुनार रामलीला की प्रमुख लीलाएं धनुष यज्ञ-09 अक्टूबर राम बारात- 10 अक्टूबर काली जी का जुलूस - 13 अक्टूबर सीता हरण - 14 अक्टूबर लंका दहन-16 अक्टूबर अंगद विस्तार व चारों फाटक लड़ाई -18 अक्टूबर रावण वध-19 अक्टूबर भरत मिलाप-20 अक्टूबर

 

बोले आयोजक

हमारे पुरखों ने इस प्राचीन और गौरवशाली रामलीला के रूप में जो सांस्कृतिक थाती हमें सौंपी है। उसके उत्थान के लिए रामलीला समिति सदैव प्रयत्नशील है। आज के इस आधुनिक दौर में भी रामलीला शुरू होने के बाद नगर के लोगों के पैर बरबस ही रामलीला मैदान की ओर चल पड़ते हैं। हमारा सामूहिक प्रयास है कि साल दर साल इसे और बेहतर स्वरूप दिया जाए। -अखिलेश मिश्र, अध्यक्ष रामलीला नाट्य समिति।

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