Ramayana Conclave in Varanasi : रामायण केवल आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं, सर्वोच्च सामाजिक दिग्दर्शन है : नीलकंठ

शिव की नगरी और रामचरित मानस की प्राकट्य स्थली काशी पर इससे सुंदर विषय कुछ हो भी न सकता था। भव्य पार्श्व में दिव्य अयोध्या की झांकी और सम्मुख मंच पर विद्वतजनों की उपस्थिति में ‘राम के शिव-शिव के राम’ विषय पर वैचारिक मंथन ने परिदृश्य को आध्यात्मिक बना दिया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 12:13 AM (IST) Updated:Sat, 23 Oct 2021 12:13 AM (IST)
Ramayana Conclave in Varanasi : रामायण केवल आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं, सर्वोच्च सामाजिक दिग्दर्शन है : नीलकंठ
मुख्य अतिथि प्रदेश के पर्यटन, संस्कृति एवं धर्मार्थ कार्य मंत्री डा. नीलकंठ तिवारी ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया

जागरण संवाददाता, वाराणसी। भगवान शिव की नगरी और रामचरित मानस की प्राकट्य स्थली काशी पर इससे सुंदर विषय कुछ हो भी न सकता था। भव्य पार्श्व में दिव्य अयोध्या की झांकी और सम्मुख मंच पर विद्वतजनों की उपस्थिति में ‘राम के शिव-शिव के राम’ विषय पर वैचारिक मंथन ने पूरे परिदृश्य को आध्यात्मिक बना दिया। संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में अयोध्या शोध संस्थान के सौजन्य से चल रहे ‘जन-जन के राम’ श्रृंखला की अंतिम कड़ी में यहां शुक्रवार को रुद्राक्ष कान्‍वेशन सेंटर में रामायण कान्क्लेव का आयोजन था। रामायण प्रदर्शनी का उद्घाटन मुख्य अतिथि प्रदेश के पर्यटन, संस्कृति एवं धर्मार्थ कार्य मंत्री डा. नीलकंठ तिवारी ने किया। उन्होंने कहा कि रामायण केवल आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं है, यह सर्वोच्च सामाजिक दिग्दर्शन भी है। इसका देश, समाज और काल पर अत्यंत व्यापक प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव है।

बताया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रेरणा से इस अभियान की शुरुआत के पूर्व ही कोरोना आ गया। या। इस वर्ष जब इसे आनलाइन शुरू करने का निर्णय लिया गया तो भगवान शिव और राम की कृपा से कोरोना नियंत्रण में आने लगा। तब इसे 16 जनपदों में भव्य रूप में प्रस्तुत किया गया।

बतौर मुख्य वक्ता अयोध्या के महंत मिथिलेश नंदिनीशरण जी महाराज ने कहा कि भगवान श्रीराम का दिव्य व्यक्तित्व भगवान शिव के अंत:करण की अभिव्यक्ति है। कहा कि अयोध्या की बात होते ही जन्म और जन्मभूमि का स्मरण होता है तो काशी की बात आते ही मरण और मोक्ष की कामना मन में उभरती है। बस, यही जन्म और मरण के बीच की जीवन यात्रा ही रामत्व से शिवत्व की यात्रा है। राम का रामत्व शिव हैं तो शिव के शिवत्व राम हैं। सेतुबंध रामेश्वरम की स्थापना कर भगवान श्रीराम ने कहा यहां गंगाजल चढ़ाने से उद्धार होगा। इस प्रकार उन्होंने पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांध दिया। इसके सूत्र शिव बने। वहीं शिव काशी में मृत्यु पाने वाले के मन में राम शब्द का तारक मंत्र देते हैं।

प्रो. श्रीनिवास पांडेय ने कहा कि स्वामी करपात्री जी महाराज कहते थे कि हमारे शास्त्र अक्षुण्ण हैं, शाश्वत हैं लेकिन उनकी रक्षा तभी होगी, जब आने वाली पीढ़ी उसे समयानुकूल नए संदर्भों और अर्थों में ग्रहण कर सकेगी। इसलिए इन ग्रंथों पर वैज्ञानिक दृष्टि से शोध की आवश्यकता है। रामचरित मानस ग्रंथ ने समाज से शैव-वैष्णव के द्वंद्व को समाप्त कर दिया। पं. हरिराम द्विवेदी ने भगवान राम और शिव के पारस्परिक आध्यात्मिक संबंधों को काव्य रूप में प्रस्तुत किया। संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा, जो कल्याण करता है तथा स्वयं में समाहित करता है, वह शिव है तथा जो हृदय में शिव को धारण कर मर्यादा का पालन करता है, वह राम है।

सुबह-ए-बनारस के सैकड़ों कलाकार सम्मानित

कार्यक्रम में सुबह-ए-बनारस की तरफ से काशी के सैकड़ों कलाकारों को सम्मानित किया गया। दूसरे चरण में पं. सुखदेव के मिश्र की नादांजलि, पं. माता प्रसाद एवं पं. रविशंकर युगल कथक नृत्य, राहुल मुखर्जी एवं साथियों की नृत्य नाटिका तथा तृप्ति शाक्या व पं. साजन मिश्र-दिव्यांश मिश्र के भजन गायन ने आयोजन को आध्यात्मिकता से सराबोर कर दिया।

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