राम प्रसाद बिस्मिल और क्रांतिकारियों ने किया था वाराणसी में ही काकोरी कांड का सूत्रपात

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल पर उनकी माता के धार्मिक स्वभाव की पूरी छाया पड़ी थी। किशोरावस्था में ही आर्य समाज से जुड़ जाने के बाद उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश व स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी का अध्ययन किया। प्रकांड वेदज्ञाता होने के बाद पंडित कहे जाने लगे।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 08:45 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 08:45 PM (IST)
राम प्रसाद बिस्मिल और क्रांतिकारियों ने किया था वाराणसी में ही काकोरी कांड का सूत्रपात
पंडित रामप्रसाद बिस्मिल पर उनकी माता के धार्मिक स्वभाव की पूरी छाया पड़ी थी।

वाराणसी, जेएनएन। ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है, वक्त आने दे तुझे बता देंगे ऐ आसमां, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है....’ जैसी क्रांतिकारी गीतों के रचयिता काकोरी कांड के नायक पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का काशी से गहरा नाता रहा है। क्रांतिकारी गतिविधियों के सिलसिले में उनका अक्सर वाराणसी आना होता था। यहां काशी विद्यापीठ में क्रांतिकारियों की उन दिनों गुप्त बैठकें हुआ करती थीं, इन्हीं बैठकों में काकोरी कांड की रचना का सूत्रपात हुआ।

इतिहासकार बताते हैं कि रास बिहारी बोस, शचींद्र नाथ सान्याल, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के सानिध्य में कई क्रांतिकारी गतिविधियों का काशी में ही सूत्रपात हुआ। इसमें सबसे महत्वपूर्ण था काकोरी कांड। जिसमें रेल रोक कर आजादी की लड़ाई के लिए हथियार खरीदने के लिए अंग्रेजों का खजाना लूटने की योजना बनाई गई। इस कांड के नायक पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म आज ही के दिन यानी 11 जून को शाहजहांपुर जिले में हुआ था। उन दिनों क्रांति के केंद्र पंजाब, बंगाल और महाराष्ट्र थे, जबकि बनारस बंगाल और महाराष्ट्र के बीच सेतु बना था।

1920 के दशक में बनारस क्रांतिकारी आंदोलन की धुरी बन गया। बम कांड के बाद जब रासबिहारी बोस भूमिगत हुए तो वह काफी समय तक बनारस में छिपे रहे। इस दौरान यहां अनेक क्रांतिकारियों का आना-जाना लगा था। काकोरी कांड के बाद मुकदमा चलाने का नाटक करने के बाद अंग्रेजी सरकार ने 19 दिसंबर 1927 को पंडित रामप्रसाद को गोरखपुर की जेल में फांसी दे दिया।

वेदाध्यायी व प्रकांड विद्वान थे बिस्मिल

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल पर उनकी माता के धार्मिक स्वभाव की पूरी छाया पड़ी थी। किशोरावस्था में ही आर्य समाज से जुड़ जाने के बाद उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश व स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी का अध्ययन किया। प्रकांड वेदज्ञाता होने के बाद पंडित कहे जाने लगे। युवावस्था आते-आते शाहजहांपुर में ही क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए और सशस्त्र क्रांति की राह पर चल पड़े। महज 30 वर्ष की अवस्था में फांसी के फंदे पर झूलकर भारत माता की गोद में हमेशा के लिए सो गए लेकिन 11 किताबों व अनेक क्रांतिकारी गीतों के रचयिता पंडित बिस्मिल आज भी हर भारतीय के जेहन में जाग्रत हैं।

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