पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी को, भगवान श्री हरि विष्णु की आराधना से मिलेगी खुशहाली और संतान प्राप्ति
ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 23 जनवरी शनिवार की रात्रि 857 पर लग रही है जो 24 जनवरी रविवार की रात 1058 तक रहेगी। 24 जनवरी रविवार को एकादशी एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
वाराणसी, जेएनएन। भारतीय संस्कृति के हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक माह की तिथियों का अपना खास महत्व माना गया है। सनातन धर्म में व्रत त्यौहार की परंपरा काफी पुरानी है। चांद मास के अनुसार प्रत्येक मास में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। सबकी अलग-अलग महिमा मानी गई है। इस बार पौष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाई जाएगी। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना की जाएगी।
मान्यता है कि जिन को दांपत्य जीवन में संतान सुख की प्राप्ति नहीं होती उन्हें इस दिन नियम संयम के साथ भगवान श्री हरि के शरण में रहकर पुत्रदा एकादशी का व्रत उपवास करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 23 जनवरी शनिवार की रात्रि 8:57 पर लग रही है जो 24 जनवरी रविवार की रात 10:58 तक रहेगी। 24 जनवरी रविवार को एकादशी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। विमल जैन ने बताया कि एक दिन पूर्व शाम को अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान के बाद पुत्रदा एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए और दूसरे दिन यानी पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्री विष्णु की पूजा अर्चना के बाद उनकी महिमा में श्री विष्णु सहस्रनाम श्री पुरुष सूक्त का पाठ करना चाहिए
श्री हरि विष्णु जी से संबंधित मंत्र ओम श्री विष्णवे नमः और ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए। संपूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत करना चाहिए। व्रत का पारण अगले दिन किया चाहिए। एकादशी तिथि के दिन चावल ग्रहण नहीं किया जाता। इस दिन ग्रहण करके विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। साथ ही व्रत के दिन में चयन नहीं करना चाहिए। पुत्रदा एकादशी के व्रत व भगवान श्री विष्णु की विशेष कृपा से सभी मनोरथ सफल होते हैं साथ ही जीवन में सुख समृद्धि के साथ संतान सुख की प्राप्ति होती है। जीवन में मन वचन कर्म से पूर्णरूपेण सूचित करते हुए यह व्रत करना विशेष फलदाई माना गया है। इस दिन यथार्थ दान दक्षिणा का लाभ उठाना चाहिए। पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन नगरी भद्रावती के राजा वसुकेतु को पुत्र प्राप्ति भी इसी व्रत की वजह से हुई थी।