पूसा डीकंपोजर कैप्सूल से पुआल की खाद बनाने में लगेगा कम समय, जैविक खेती में मिलेगी मदद
कृषि विज्ञान केंद्र कोटवा की तरफ से सोमवार को विकास खंड रानी की सराय के गंधुवई गांव में फसल अवशेष प्रबंधन पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें किसानों को आधुनिक और जैविक खेती करने के फायदे भी बताए गए।
आजमगढ़, जेएनएन। पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए जैविक खाद बनाने और पराली को खाद में परिवर्तित करने के प्रयास भी वैज्ञानिक खूब कर रहे हैं। काफी हद तक देश में खाद कम समय में बनाने की प्रक्रिया भी अब अमल में आने लगी है। कृषि वैज्ञानिक भी अब कृषि तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिए सक्रिय हैं। इसी क्रम में आजमगढ़ जिले में कृषि विज्ञानियों ने किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी देते हुए कृषि अवशेष को जलाने पर होने वाले नुकसान के प्रति सचेत करते हुए इससे खाद बनाकर जैविक खेती को बढ़ावा देने की अपील की। कृषि विज्ञान केंद्र कोटवा की तरफ से सोमवार को विकास खंड रानी की सराय के गंधुवई गांव में फसल अवशेष प्रबंधन पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।
केंद्र के वरिष्ठ विज्ञानी एवं प्रभारी डा. आरके सिंह ने किसानों को पूसा डीकंपोजर कैप्सूल से पुआल की खाद बनाने के लिए प्रेरित किया। बताया कि इससे मिट्टी की गुणवत्ता भी प्रभावित नहीं होगी। धान फसल की कटाई स्ट्रा प्रबंधनयुक्त कंबाइन हार्वेस्टर से ही कराने की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पूसा नई दिल्ली से विकसित पूसा डिकंपोजर 25 किसानों को निश्शुल्क उपलब्ध कराया जाएगा। वरिष्ठ विज्ञानी डा. रणधीर नायक ने फसल अवशेष में पाए जाने वाले पोषक तत्वों एवं अवशेष को जलाने पर होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी दी।
बताया कि हुए वेस्ट डिकंपोजर, यूरिया प्रयोग सहित अन्य तकनीकी के माध्यम से उपयोग करके मृदा स्वास्थ्य एवं वातावरण सुधार किया जा सकता है। मौसम विज्ञानी डा. तेज प्रताप सिंह ने कृषि संबंधित क्रिया कलापों को मौसम की ताजा जानकारी के करके लाभांवित होने का गुर सिखाया। अध्यक्षता रमेश तिवारी पूर्व जिला जज बिहार व संचालनर पूर्व प्रधान राम अनुज सिंह ने किया। इंद्रसेन सिंह, भीष्म सिंह, जयप्रकाश, अशोक तिवारी, रवींद्र यादव, बृजेश यादव, जानकी देवी, सावित्री देवी, पूर्णिमा, शांति देवी सहित काफी संख्या में किसान थे।