प्रो. हरेराम त्रिपाठी बने संपूर्णानंद संस्कृत विवि के कुलपति, कुलाधिपति ने तीन वर्षों के लिए की नियुक्ति

आनंदीबेन पटेल ने श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (नई दिल्ली) के प्रो. हरेराम त्रिपाठी को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का स्थायी कुलपति नियुक्त की हैं। कुलाधिपति ने उनकी नियुक्ति कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्षों के लिए की हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 09 Jun 2021 04:40 PM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 04:40 PM (IST)
प्रो. हरेराम त्रिपाठी बने संपूर्णानंद संस्कृत विवि के कुलपति, कुलाधिपति ने तीन वर्षों के लिए की नियुक्ति
प्रो. हरेराम त्रिपाठी को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति होंगे।

वाराणसी, जेएनएन। राज्यपाल/कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (नई दिल्ली) के प्रो. हरेराम त्रिपाठी को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का स्थायी कुलपति नियुक्त की हैं। कुलाधिपति ने उनकी नियुक्ति कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्षों के लिए की हैं। कुलाधिपति की ओर से बुधवार को आदेश जारी होने के बाद स्थायी कुलपति की नियुक्ति को लेकर अटकलें समाप्त हो गई।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल का तीन वर्षों का कार्यकाल 23 मई को समाप्त ही समाप्त हो गया था। कोरोना काल में नियुक्ति प्रक्रिया में हो रही देरी को देखते हुए कुलाधपति ने नियमित कुलपति की नियुक्ति होने तक लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय को संस्कृत विश्वविद्यालय के वीसी का अतिरिक्त चार्ज सौंपा है। वहीं अब प्रो. हरेराम त्रिपाठी विश्वविद्यालय के 35वें कुलपति होंगे। प्रो. त्रिपाठी अगले सप्ताह में कार्यभार ग्रहण कर सकते हैं।

‘जागरण प्रतिनिधि’ से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि पहली प्राथमिकता राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन व शास्त्रों की रक्षा करना होगा। नई शिक्षा नीति के अनुरूप पाठ्यक्रमों का निर्माण कराया जाएगा। शास्त्राें को जनमानस तक पहुंचाने के लिए संस्कृत उन्मोमुखी अर्थात संस्कृत को और सरल बनाने का प्रयास होगा। शासन व राजभवन के निर्देश पर 15 अगस्त से पहले शास्त्री-आचार्य की परीक्षा भी करा ली जाएगी।

यही से की थी पढ़ाई, यही बने कुलपति

मूल रूप से देवरिया (कुशीनगर) के निवासी प्रो. त्रिपाठी की प्रारंभिक शिक्षा देवरिया में ही हुई। वर्ष 1986 वह संस्कृत पढ़ने बनारस चले गए। रामाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय से उत्तर मध्यमा (इंटर) की परीक्षा उत्तीर्ण की। शास्त्री (स्नातक), आचार्य (स्नातकोत्तर) व पीएचडी तक की पढ़ाई आपने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से की। न्यायशास्त्र के प्रकांड विद्वान प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी के निर्देशन में वर्ष 1986 में पीएचडी की उपाधि ली। कॅरियर की शुरूआत वर्ष 1993 में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (रणवीर कैंप-जम्मू) में बतौर अनुसंधान सहायक पद से किया। छह माह बाद आपकी नियुक्ति श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन संकाय हो गई। वर्ष 2009 में सर्वदर्शन विभाग में प्रोफेसर बने। आपकाे वर्ष 2003 में महर्षि बदरायण राष्ट्रपति पुरस्कार, शंकर वेदांत, पाणिनी, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की ओर से विशिष्ट पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कार व सम्मान मिल चुका है। अब तक आप 30 से अधिक ग्रंथों का संपादन व लेखन कर चुके हैं।

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