भाला और तलवार लेकर चलते थे डाकिया, वर्ष1878 से अब तक का दिखेगा डाक इतिहास
वाराणसी में भारतीय डाक विभाग जल्द ही अपनी धरोहरों को जनता और छात्रों के सामने लाने वाला है। इसके लिए विभाग ने तैयारी कर ली है।
वाराणसी, जेएनएन। भारतीय डाक विभाग जल्द ही अपनी धरोहरों को जनता और छात्रों के सामने लाएगा ताकि लोगों को पता चल सके कि पुरातन डाक सेवा से आधुनिक डाक व्यवस्था तक हमने कैसे अपनी यात्रा तय की है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि शुरुआती दौर में डाकिए भाला और तलवार लेकर चलते थे। भाले में घुघरु भी लगी होती थी।
यह अपने आप में एक अनोखा अनुभव होगा जब कुछ ऐसे अनछुए पहलुओं को देखने को मिलेगा जो कहीं न कहीं आपको दांतों तले अंगुली दबाने पर विवश कर देंगे। बनारस में डाक सेवा विशेश्वरंगज और नीचीबाग से वर्ष 1878 में शुरू हुई थी। उास पैदल चलने वाले डाकियों को घुंघुरू लगा भाला और दो तलवार दी जाती थी। उस समय डाकिए दूर दराज जाते थे उसमें जंगल भी पड़ता था ऐसे में वे भाला और तलवार से जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा करते थे। भाला में घुंघुरू इसलिए लगा रहता था कि ताकि इसकी आवाज सुनकर लोगों को जानकारी हो जाए कि डाकिया आ गया है। यह सिलसिला 1960 तक चला।
पोस्ट मास्टर जनरल वाराणसी परिक्षेत्र प्रणव कुमार ने बताया कि विशेश्वरंगज मुख्य डाकघर में फिलेटली ब्यूरो का काम तेजी से चल रहा है। हमारा प्रयास है कि प्रवासी भारतीय दिवस से पहले यह तैयार हो जाए। फिलेटली ब्यूरो में चमड़े का नगदी बैग और पुराने तराजू भी प्रदर्शित किए जाएंगे। इसके अलावा कई सौ विभिन्न प्रकार के डाक टिकट भी प्रदर्शित किए जाएंगे। हमारा प्रयास है कि अधिक से अधिक लोग जाने डाक विभाग ने किस-किस पड़ाव को पार कर यहां तक की यात्रा पूरी की।