काशी में श्रद्धा से ज्ञात-अज्ञात पितरों का लोग कर रहे हैं श्राद्ध, आशीष देकर विदा लेंगे पितृगण

शास्त्रीय मान्यता के अनुसार पितरों का श्राद्ध कर्म करने के बाद लोगों ने उनके निमित्त गो-ग्रास और ब्राह्मणों को भोजन कराया। उनको अन्न वस्त्र और द्रव्य का दान किया। इसके बाद शाम को पितरों की विदाई पर घर के मुख्य द्वार के बाहर दीपक जलाया जाएगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 06 Oct 2021 02:54 PM (IST) Updated:Wed, 06 Oct 2021 02:54 PM (IST)
काशी में श्रद्धा से ज्ञात-अज्ञात पितरों का लोग कर रहे हैं श्राद्ध, आशीष देकर विदा लेंगे पितृगण
शाम को पितरों की विदाई पर घर के मुख्य द्वार के बाहर दीपक जलाया जाएगा।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर लोग सुबह से ही अपने पितरों का तर्पण कर रहे हैं। जिन लोगों को अपने पितरों की तिथि ज्ञात नहीं है वह अमावस्या तिथि पर सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों के निमित्त पिंडदान और तिलांजलि अर्पित कर रहे हैं। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार पितरों का श्राद्ध कर्म करने के बाद लोगों ने उनके निमित्त गो-ग्रास और ब्राह्मणों को भोजन कराया। उनको अन्न, वस्त्र और द्रव्य का दान किया। इसके बाद शाम को पितरों की विदाई पर घर के मुख्य द्वार के बाहर दीपक जलाया जाएगा।

मान्यता है कि पितृगण यदि तृप्त होकर अपने लोक को पधारते हैं तो परिवार में वर्षभर सुख-समृद्धि और आरोग्यता की प्राप्ति होती है। पितृविसर्जनी अमावास्या तिथि पर लोग देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण से मुक्त होते हैं। इससे कुल में वीर, निरोगी, शतायु, श्रेय प्राप्त करने वाली संततियां उत्पन्न होती हैं।

कोरोना से मृत लोगों के लिए किया तर्पण : कोरोना महामारी के दौरान जिन लोगों को समाजसेवी अमन कबीर ने मुखाग्नि दी थी उनके आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए अमन ने आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रथम तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक तिलांजलि दिया। शास्त्रीय विधि-विधान से सभी मृत आत्माओं के लिए मणिकर्णिका घाट पर पिंडदान किया। इसके बाद घाट के किनारे असहाय लोगों को अन्न और वस्त्र का दान किया। वहीं शाम को अस्सी घाट पर अमन उन मृत आत्माओं के लिए दीपक भी जलाएंगे।

शहर में आस्‍था और रीति का पर्व : पुरखों का तर्पण करने का पर्व श्राद्ध का समापन होने से पूर्व काशी में विभिन्‍न गंगा घाटों के अलावा पिशाच मोचन पर भी श्राद्ध का आयोजन किया गया। इस दौरान वैदिक रीति रिवाजों और परंपराओं के अनुरूप ही पितरों को तर्पण का आस्‍था का पर्व मनाया गया। गंगा के प्रमुख घाटों पर आस्‍था का क्रम सूर्योदय के साथ शुरू हुआ और दोपहर बाद तक चलता रहा। 

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