वाराणसी में पूरी श्रद्धा के साथ जैन समुदाय का पर्युषण महापर्व, समारोह का समापन 19 सितंबर को

जैन धर्मावलम्बी पर्यूषण महापर्व पर स्वाध्याय पूजा-आराधना व्रत-संयम तप-त्याग तपस्या आत्मज्ञान की आराधना के साथ-साथ समस्त विश्व की कल्याण की भावना से मंत्रोच्चारण जाप पाठ आदि करते हैं। पर्युषण महापर्व में 18 दिनों की विशेष धर्म-आराधना की जाती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 14 Sep 2021 12:56 PM (IST) Updated:Tue, 14 Sep 2021 12:56 PM (IST)
वाराणसी में पूरी श्रद्धा के साथ जैन समुदाय का पर्युषण महापर्व, समारोह का समापन 19 सितंबर को
पर्युषण महापर्व में 18 दिनों की विशेष धर्म-आराधना की जाती है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व पर्युषण महापर्व शुक्रवार से ही जारी है। पूरे विश्व में फैले जैन समुदाय पर्युषण महापर्व का समापन 19 सितंबर को धूमधाम करेंगे। पूरे विश्व के जैन धर्मावलम्बी पर्यूषण महापर्व पर स्वाध्याय, पूजा-आराधना, व्रत-संयम, तप-त्याग, तपस्या आत्मज्ञान की आराधना के साथ-साथ समस्त विश्व की कल्याण की भावना से मंत्रोच्चारण, जाप, पाठ आदि करते हैं। पर्युषण महापर्व में 18 दिनों की विशेष धर्म-आराधना की जाती है।

पर्युषण महापर्व के प्रारम्भ में आठ दिन कर्म निर्जरा ज्ञानावरणी, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र एवं अंतराय के बारे में समझकर, तीर्थंकरों की पूजा, स्तुति, प्रतिक्रमण आदि से आराधना की जाती है तत्पश्चात् दशलक्षण महापर्व पर उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रम्हचर्य धर्म के इन दशलक्षणों, गुणों की आराधना की जाती है।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के जैन दर्शन की पूर्व अतिथि प्रवक्ता डा. इन्दु जैन ने बताया कि "पर्व" का अर्थ है जो आत्मा को पुनीत करे और पर्यूषण, दशलक्षण महापर्व" शाश्वत पर्व हैं। "पर्युषण महापर्व" जैन दर्शन का एक ऐसा सौभाग्यशाली पर्व है जिसके दोनों सिरों पर "क्षमा" उपस्थित है एक "उत्तम क्षमा" के रूप में दूसरी "क्षमावाणी" क्षमा याचना के रूप में। पर्युषण महापर्व हमारे जीवन में आत्म जागरण का मार्ग दिखाते हैं। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें विश्व मैत्री की भावना समाई हुई है। यह संसार के समस्त जीवों के प्रति मैत्री की भावना से परिपूरित है। यह सद्भावना का पर्व है।

"यह पर्व सिखाते हैं हमको, जग का जग को देते जाओ,

जीवन की नौका हल्की कर, भव सागर से खेते जाओ,

तब निखर उठेगा यह मानस, क्षमा करेगा कंचन सा,

छा जावेगा हमारे जीवन में, शिशु पर माँ के आंचल सा।।"

'पर्व' शब्द के ढाई अक्षर को स्वीकार करने से सहज ही आत्मा के पर्व का जागरण होगा, इसे थोड़ा पृथक करें तो -

'प' का अर्थ होता है - पापों का

र का अर्थ होता है- रग-रग से

'व' का अर्थ होता है - विसर्जन करना

पर्युषण पर्व आपसे कह रहा है कि अपनी जिन्दगी में अपने पापों को रग-रग से विसर्जित कर दो। उसी दिन तुम्हारे भीतर का सारा प्रदूषण समाप्त हो जायेगा और पर्युषण की शाश्वत सुगन्ध से आत्मा सुवासित हो जायेगी ।

मनुष्य के वास्तविक गुणों को उजागर करने और स्वयं को जगाने के लिए आते हैं पर्युषण महापर्व।

धर्म का यह विश्लेषण करते हुए प. पू. आचार्य कार्तिकेय स्वामी जी कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रंथ में लिखा है "धम्मो वत्थु सहावो" अर्थात् वस्तु का स्वभाव ही धर्म है।" पर इससे मन में सहज ही प्रश्न उठता है कि "हम अपना स्वभाव कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? तब वे बताते हैं कि...

" धम्मो वत्थु सहावो, खमादि भावो यदसविहो धम्मो।

रयणत्तयं च धम्मो, जीवाणं रक्खणं धम्मो।।"

अर्थात् जीवों की रक्षा से रत्नात्रय धर्म तक पहुँचा जाता है और रत्नत्रय धर्म, दस प्रकार के धर्मों तक ले जाता है तथा साधक अपने स्वभाव में स्थिर हो जाता है। यद्यपि धर्म एक ही है दस आदि नहीं, पर आत्म स्वभाव तक पहुँचाने के लिए" पर्यूषण महापर्व" दस सीढ़ियों के समान हैं इसके बिना लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सकता।

मानव मंगल की स्थापना में स्वसत्ता का साक्षात्कार ही दशलक्षण धर्मों की चरमावस्था है। दशलक्षण अर्थात् पर्यूषण पर्व राज किसी व्यक्ति विशेष या घटना विशेष से संबंधित न होकर प्राणीमात्र के पवित्र गुणों से संबंधित है। इन दिनों धर्म के दस लक्षणों पर विशेष श्रद्धा व भक्तिपूर्वक आराधना होती है अत: इसे दशलक्षण पर्वराज, दशलक्षण महापर्व, आत्म शुद्धि, आत्म शोधन, आत्म जागृति, आत्म निरीक्षण, आत्मलोचन, आत्म जागरण, आत्म परिमार्जन, आत्मोपलब्धि एवं स्वात्मोपलब्धि आदि का 'महापर्वराज' पर्युषण महापर्व भी कहते हैं।

पर्युषण महापर्व पूर्ण होने के बाद क्षमा रूपी गुण को धारण किए हुए, समस्त सृष्टि से क्षमा याचना करते हुए "क्षमावाणी महापर्व" मनाया जाता है। विगत आठ दिनों तक कर्म निर्जरा के बारे में विचार किया और आज दशलक्षण महापर्व पर उत्तम क्षमा के गुण को, मनुष्य की आत्मा में स्थित क्षमा रूपी स्वभाव की आराधना का दिवस है।

प्रत्येक मनुष्य में क्षमा रूपी गुण जन्म से ही विद्यमान रहता है बस इस गुण को अपनी जीवनशैली में यदि धारण करने का अभ्यास किया जाए तो हम अपने जीवन से हमेशा के लिए मन के क्रोध और कलुषता को दूर कर सकते हैं। "उत्तम क्षमा" एक औषधि है जो मन की गहराई में जाकर घावों का इलाज करती है। एक बेहतरीन ज़िन्दगी जीने के लिए " उत्तम क्षमा " एक ऐसा भावनात्मक पढ़ाव है जो मन को मज़बूती प्रदान करता है, मन स्वस्थ हो तो ज़िन्दगी खूबसूरत होती है।

"उत्तम क्षमा" तीन लोक में सारे उत्तम क्षमा रत्ना को प्राप्त कराने वाली और दुर्गति के दुखों को हरण करने वाले एवं जन्म-मरण रूपी समुद्र पार करने वाली है। जहां आक्रोश, गाली आदि कठोर वचन के सुनने पर भी अपने आत्मा में उसे उस कहने वाले के प्रति समभाव रहे वही उत्तम क्षमा है। अत: हम सभी अपने हृदय को स्वच्छ करें और "स्वच्छ मन-स्वस्थ जीवन" के मूल मंत्र को अपने जीवन में अपनाएं यही हम सभी की भावना होनी चाहिए।

इसलिए कहा है कि..

"चार मिलें चौंसठ खिलें,बीस खड़े कर जोर,

"क्षमा" ऐसी भावना,हर्षें रोम करोड़।।"

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