बीएचयू के दीक्षा समारोह में अतिथि बनकर आए पंडित ओंकारनाथ ठाकुर बन गए महामना परिवार के सदस्य

बनारस में जब भी शास्त्रीय गीत-संगीत की बात आती है तो बीएचयू के पंडित ओंकारनाथ ठाकुर प्रेक्षागृह का नाम सबसे पहले आता है। गायन वादन नृत्य और नाट्य प्रदर्शन का यह सबसे अनुकूल स्थान है जो महान शास्त्रीय गायक पं.ओंकारनाथ ठाकुर को समर्पित है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 11:20 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 01:20 PM (IST)
बीएचयू के दीक्षा समारोह में अतिथि बनकर आए पंडित ओंकारनाथ ठाकुर बन गए महामना परिवार के सदस्य
पंडित ओंकारनाथ ठाकुर के कारण संगीत के आचार्य पद की गरिमा भी काफी बढ़ गई।

वाराणसी, जेएनएन। बनारस में जब भी शास्त्रीय गीत-संगीत की बात आती है तो बीएचयू के पंडित ओंकारनाथ ठाकुर (जन्म: 24 जून 1897, खम्भात (गुजरात), निधन:29 दिसंबर 1967 मुंबई (महाराष्ट्र) प्रेक्षागृह का नाम सबसे पहले आता है। गायन, वादन, नृत्य और नाट्य प्रदर्शन का यह सबसे अनुकूल स्थान है, जो महान शास्त्रीय गायक पं.ओंकारनाथ ठाकुर को समर्पित है। जिनका जन्म भले ही गुजरात में हुआ, मगर बीएचयू उनके जीवन का सबसे अहम पड़ाव साबित हुआ। वह वर्ष 1950 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दीक्षा समारोह में अतिथि बनकर आए तो बनारस व महामना परिवार के होकर रह गए। यहां के सांगीतिक और आध्यात्मिक वातावरण ने उन्हें यहीं बस जाने को प्रेरित किया। यहां पर उन्हेंं अपने शास्त्रीय गायन के प्रसार का अनुकूल वातावरण मिला और उनका सानिध्य पाकर काशी के कलाकार देश-विदेश में प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल रहे।

उन्हें लाने का श्रेय सबसे अधिक बीएचयू के संस्थापक महामना मदन मोहन मालवीय को जाता है। महामना ने वर्ष 1940 में उन्हें विश्वविद्यालय से जोडऩे का प्रयास किया था, मगर बताया जाता है आर्थिक स्थिति ठीक न होने से उन्होंने आग्रह भेजा नहीं। हालांकि पंडित ओंकारनाथ उनके देहांत के बाद आए व स्वयं बीएचयू से जुड़े, इससे मालवीय जी की यह इच्छा भी पूरी हो गई।

आने से बढ़ गई संगीत आचार्य पद की गरिमा

उनके आने से विश्वविद्यालय में संगीत के आचार्य पद की गरिमा भी काफी बढ़ गई। उन्होंने बीएचयू के गंधर्व महाविद्यालय के प्रधानाचार्य का पदभार ग्रहण किया था, जिससे सात वर्ष बाद 1957 में सेवानिवृत्त हुए। इसी दशक में उन्हें अपार प्रोत्साहन व पहचान संगीत में मिली। उनका गाया और लयबद्ध गीत वंदेमातरम या मइया मोरी मैं नहीं माखन खायो आज भी लोकप्रिय है।

दूर की थी मुसोलिनी की नींद की समस्या

उनकी गायकी सुन महात्मा गांधी ने कहा था कि अनेक भाषण देकर भी पंडित जी के समान जनसमूह का मन नहीं मोह सकता। उन्होंने सर जगदीशचंद्र बसु की प्रयोगशाला में पेड़-पौधों पर संगीत व सुरों के प्रभाव पर अभिनव सफल प्रयोग किया था। इटली के तानाशाह मुसोलिनी की नींद न आने की समस्या उन्होंने अपने सुरों से दूर की थी।

नाट्य शास्त्र पर आधारित होगा प्रेक्षागृह

बीएचयू के संगीत एवं मंच कला संकाय स्थित ओंकारनाथ ठाकुर प्रेक्षागृह अब अपने कायाकल्प को तैयार है। इसे भरत मुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित मंचकला व्यवस्था के अनुरूप ढालने की तैयारी है। कोरोना की दूसरी लहर के कारण कार्य थोड़ा विलंबित हुआ है, मगर यह प्रेक्षागृह प्राचीन कलाओं संग जल्द आधुनिकतम स्वरूप में दिखेगा

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