Pandit Deendayal Upadhyay Birth Anniversary : समाज के अंतिम व्यक्ति की चिंता, मानव धर्म मानते थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय
एकात्म मानववाद के आधार पर भारत राष्ट्र की कल्पना करने वाले पंडित दीनदयाल के चिंतन और विमर्श की मूल भावना में भारतीयता और राष्ट्रीयता केंद्रित है। राष्ट्र एक भौगोलिक इकाई मात्र नहीं है वह समाज संस्कृति और सभ्यता को संपूर्ण समग्रता के साथ अपने अस्तित्व में स्वीकार करता है।
वाराणसी, डा. मंजु द्विवेदी। एकात्म मानववाद के आधार पर भारत राष्ट्र की कल्पना करने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन और विमर्श की मूल भावना में भारतीयता और राष्ट्रीयता केंद्रित है। उनके अनुसार राष्ट्र एक भौगोलिक इकाई मात्र नहीं है, वह समाज, संस्कृति और सभ्यता को संपूर्ण समग्रता के साथ अपने अस्तित्व में स्वीकार करता है। इसलिए उसी परिप्रेक्ष्य में समाज के अंतिम व्यक्ति की चिंता करना ही मानव धर्म है। यह चिंतन उनके रग-रग में प्रवाहित था। आज नए भारत के निर्माण में एकात्म मानववाद मार्गदर्शक की भूमिका में है। उनका विचार था कि आत्म चेतना और आत्मगौरव से अभिभूत व्यक्ति और राष्ट्र न केवल सक्षम होगा, बल्कि लोक कल्याणकारी भावना से परिपूर्ण होगा।
पंडितजी का जन्म आश्विन कृष्ण त्रयोदशी संवत 1973 विक्रमी तदानुसार 25 सितंबर 1916 को मथुरा जिले के नगला चंद्रभान ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद और माता का नाम रामप्यारी था। वह बचपन से ही मेधा संपन्न और अक्षरशः अनिकेत थे। कम उम्र तक ही अपने पिता के घर रहे, उसके बाद प्रवासी जीवन प्रारंभ हो गया। फिर कभी लौटकर घर नहीं गए। 1937 में अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए और बीए, बीटीकी पढ़ाई पूरी कर संघ के प्रचारक बन गए। बाद में राजनीति में गए और जनसंघ की स्थापना के वैचारिक प्रणेता बने। आपका भारतीय संस्कृति के प्रति वैचारिक अधिष्ठान भविष्य के भारत निर्माण का प्रमुख स्तंभ है। आपने राष्ट्र को उस वृक्ष के समान माना है जिसमें तना, फल, फूल, पत्ती सभी अपना विकास करते हैं और सबका आधार उस वृक्ष की जड़ है। वह राष्ट्र को राजनैतिक नहीं, सांस्कृतिक इकाई मानते थे। वे एक सफल पत्रकार, चिंतक और साहित्यकार थे। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उनकी नीति-निपुणता को देखते हुए कहा था कि "यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जायं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं"। महामानव के जीवनव्रत को धारण कर हम सभी को आत्मनिर्भर हो, नवभारत के निर्माण में भारतीय संस्कृति को आत्मसात करना होगा, तब जाकर उनके जन्म का उत्सव सार्थक होगा।
- डा. मंजु द्विवेदी,सेंटेनरी विजिटिंग फेलो, भारत अध्ययन केंद्र, बीएचयू।