पद्म पुरस्कार 2021 : वाराणसी के तीन विभूतियों को पद्म सम्मान, डोमराजा जगदीश, प्रो. रामयत्न व किसान चंद्रशेखर सिंह को पद्मश्री

पद्म पुरस्कार 2021 गणतंत्र दिवस पर जारी पद्म अवार्डों की सूची में बनारस के डोमराजा रहे जगदीश चौधरी को मरणोपरांत पद्मश्री दिया गया है। इसके अलावा काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो. रामयत्न शुक्ल व प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर सिंह का नाम भी पद्मश्री की सूची में है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 25 Jan 2021 10:51 PM (IST) Updated:Tue, 26 Jan 2021 10:52 AM (IST)
पद्म पुरस्कार 2021 : वाराणसी के तीन विभूतियों को पद्म सम्मान, डोमराजा जगदीश, प्रो. रामयत्न व किसान चंद्रशेखर सिंह को पद्मश्री
पद्म अवार्डों 2021 की सूची ने काशी को निहाल किया। शहर की तीन विभूतियों को यह सम्मान मिला है।

वाराणसी, जेएनएन। पद्म पुरस्कार 2021 : गणतंत्र दिवस के मौके पर दिए जाने वाले पद्म पुरस्कारों का एलान कर दिया गया है। इस बार सात हस्तियों को पद्म विभूषण, 10 को पद्म भूषण और 102 को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। 16 हस्तियों को पद्म पुरस्कार मरणोपरांत प्रदान करने का एलान किया गया है।

काशी के नाम तीन पद्म सम्मान

गणतंत्र दिवस पर जारी पद्म अवार्डों की सूची ने इस बार भी काशी को निहाल किया। शहर की तीन विभूतियों को यह सम्मान मिला है। इसमें बनारस के डोमराजा रहे जगदीश चौधरी को मरणोपरांत पद्मश्री दिया गया है। इसके अलावा काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो. रामयत्न शुक्ल व प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर सिंह का नाम भी पद्मश्री की सूची में है। इस लिहाज से अवार्ड देने में सरकार ने हर क्षेत्र का ख्याल रखा है। खास यह कि तीनों नाम प्रशासन की ओर से भेजी गई सूची से इतर हैैं। हालांकि अन्य श्रेणी के पुरस्कारों की सूची में अबकी बनारस का कोई नाम नहीं है। मरणोपरांत पद्मश्री के लिए चुने गए काशी डोमराजा परिवार के प्रतिनिधि रहे जगदीश चौधरी लोकसभा चुनाव में मोदी के प्रस्तावक भी थे। चौधरी का पिछले साल अगस्त में निधन हो चुका है। काशी विद्वत परिषद अध्यक्ष प्रो. रामयत्न शुक्ल संस्कृत व्याकरण के प्रकांड विद्वान हैैं। ये संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष रह चुके हैैं। रोहनिया निवासी प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर सिंह को कई मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है।

पद्मश्री-2- अब पद्मश्री हो गई शेरवाली कोठी
काशी का जिक्र डोमराजा परिवार के बिना अधूरा रह जाता है। इस कुनबे के प्रतिनिधि रहे जगदीश चौधरी को बीते लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने प्रस्तावक के रूप में मान दिया तो अब सरकार की ओर से उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री की घोषणा ने बनारस वालों का दिल बाग-बाग कर दिया। इसके साथ ही मीरघाट स्थित शेर वाली कोठी के वैभव में एक और नगीना जुड़ गया। अपने बनारसी अंदाज और मिजाज के लिए पहचाने जाने वाले जगदीश चौधरी का बीते वर्ष 25 अगस्त को बीमारी के चलते निधन हो गया था।

अंतिम डोमराजा स्व. कैलाश चौधरी के तीन पुत्र व चार पुत्रियां हुईं जिनमें दो पुत्र पहले ही गुजर चुके थे। जगदीश चौधरी डोमराजा परिवार के आखिरी चिराग होने के साथ ही डोमराजा परिवार के प्रतिनिधि भी थे। कभी राजा हरिश्चंद्र तक की सेवकाई लेने वाला चौधरी परिवार आज भले तंगी के दौर से गुजर रहा हो लेकिन मान प्रतिष्ठा के मामले में उनका नाम (डोमराजा) ही काफी है। इस परिवार में कभी बग्घी और पालकी भी सवारी के रूप में हुआ करती थी। मगर यह शाने-शौकत अंतिम डोमराजा तक ही सीमित रही। परिवार बढऩे के साथ शवदाह की पालियां लगातार बंटती चली गईं। एक समय था कि मणिकॢणका के घाट पर डोमराजा की शवदाह में सत्ता चलती थी। माना जाता है कि महाश्मशान पर कभी चिताएं ठंडी नहीं होतीं, इस लिहाज से परिवार की पहचान आज भी कायम है।  
राजमाता की प्रतिष्ठा का आजीवन रखा ख्याल
सब कुछ के बावजूद डोमराज परिवार में राजमाता की प्रतिष्ठा, परिवार की मुखिया जमुना देवी को प्राप्त है। कैलाश चौधरी के बाद चौधरान संभालने वाले तीनों भाइयों ने हमेशा महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए बड़ी चौधरानी की ही सलाह ली। स्व. जगदीश चौधरी का कहना था कि परिवार की एकता के लिए किसी अभिभावक की छाया जरूरी है। इसका वे जीवनभर पालन करते रहे। गद्दी पर बैठने के बाद भी महत्वपूर्ण फैसलों के लिए वे हमेशा राजमाता की सलाह लिया करते थे।
यह भी पहली बार ही हुआ
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रस्तावक बनने के बाद दैनिक जागरण से बातचीत में जगदीश चौधरी ने कहा था कि पहली बार किसी नेता या प्रधानमंत्री ने डोम समाज के बारे में सोचा। डोम समाज दुनिया के इस सबसे पुराने शहर बनारस में सबसे पिछड़ा समाज है। वह पीढ़ियों से मणिकर्णिका घाट पर शवों के दाह संस्कार का काम करता आया है। कोई नेता कभी हमारे बारे में नहीं सोचता है। जिस तरह से प्रधानमंत्री ने मेरे बारे में और दो परिवार समेत पूरे समाज के बारे में सोचा है वह नेक पहल है। हालांकि डोम समाज के हिस्से पद्मश्री सम्मान भी पहली बार आया है।

संस्कृत के उत्थान से ही विश्व का कल्याण संभव : प्रो. रामयत्न शुक्ल

संस्कृत व्याकरण के प्रकांड विद्वान व काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो. रामयत्न शुक्ल ने कहा कि संस्कृत के उत्थान से ही विश्व का कल्याण संभव है। ऐसे में देश को ही पूरे विश्व को संस्कृतज्ञ होने की जरूरत है।

पद्मश्री पुरस्कार की सूची में शामिल प्रो. शुक्ल सोमवार को जागरण प्रतिनिधि से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत व संस्कृति की बदौलत ही देश दोबारा विश्वगुरु का दर्जा हासिल कर सकता है। नई शिक्षा नीति-2020 में संस्कृत को महत्व समाज के लिए सुखद संदेश है। हालांकि इंटर तक संस्कृत को एक विषय के रूप में अनिवार्य करने की जरूरत है। उत्थान के लिए संस्कृत शिक्षा को रोजगारपरक बनाने की आवश्यकता है।

वर्ष 1999 में मिला राष्ट्रपति पुरस्कार

प्रो. शुक्ल को वर्ष 1999 में राष्ट्रपति पुरस्कार, वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से केशव पुरस्कार, वर्ष 2005 में महामहोपाध्याय सहित अनेक पुरस्कार व सम्मान मिल चुका है।

शीर्ष संतों को दिया विद्यादान

प्रो. रामयत्न शुक्ल स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, स्वामी गुरु शरणानंद, रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जैसे संतों को भी विद्यादान दे चुके हैैं। उन्होंने वर्ष 1961 में संयासी संस्कृत महाविद्यालय में बतौर प्राचार्य का कार्यभार संभाला। वर्ष 1974 में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हुए और 1976 में बीएचयू चले गए। वर्ष 1978 में फिर बतौर उपाचार्य संस्कृत विवि आए और 1982 में सेवानिवृत्त हुए। प्रो. शुक्ल उप्र नागकूप शास्त्रार्थ समिति व सनातन संस्कृत संवर्धन परिषद के संस्थापक भी हैं।

पांरपरिक और वैज्ञानिक खेती के दम पर बने पूर्वांचल के किसानों के प्रेरणास्त्रोत चंद्रशेखर सिंह

बनारस के विकासशील किसान चंद्रशेखर सिंह पद्मश्री अलंकरण के लिए चुने जाने के साथ काशी और पूर्वांचल ही नहीं देश भर के किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए हैं। खास बात यह है कि चंद्रशेखर के जीवन में प्रेरणा स्त्रोत बनी महामना की बगिया। पूर्व कुलपति प्रो. पंजाब सिंह से लेकर प्रो. राकेश भटनागर के कार्यकाल तक उन्हें लगातार बीएचयू से प्रोत्साहन मिला। यही नहीं उनके कार्यों को देखते हुए बनारस से पद्मश्री के लिए प्रस्ताव भी बीएचयू के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर ने दिया था, जिसका प्रो. पंजाब सिंह ने समर्थन किया।जक्खिनी के टंडिया गांव निवासी चंद्रशेखर ऐसे किसान हैं, जिन्होंने शुरू से ही कृषि को हाइटेक बाजार से जोड कर देखा। हाइटेक इसलिए क्योंकि एक संपन्न इंसान जिस गुणवत्तापरक खाद्य की तलाश में बड़े-बड़े माल व मार्ट में जाता है उसे उन्होंने अपने गांव में तैयार कर बेचना शुरू कर दिया। उसके बाद तो पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा। इस बीच अपनी अपनी उच्च शिक्षा भी नहीं छोड़ी, उन्होंने राजातालाब के ही कालेज से अपनी बीए एलएलबी पूरी और वकालत में लग गए। कानून की दुनिया में मन नहीं लगा। उसे छोड़ खेती की जो परंपरा उन्हें विरासत में पुरखों से मिली थी उसे ही कायम रखा।

साथ में बीएचयू के वैज्ञानिकों और समय-समय पर मिलने वाले प्रशिक्षणों में उन्होंने कई तकनीकी कुशलता भी हासिल की, जिसे अपने अपनी पारंपरिक कृषि के साथ क्रियान्वित कर दिया। एक उदाहरण देते हुए चंद्रशेखर बताते हैं कि सौ डिग्री ताप में पेरे गए सरसो में कोई लाभकारी गुण नहीं बच पाता है। मगर उन्होंने कोल्ड आयल तकनीक की सहायता से लकड़ी के बने कोल्हू से सरसो की पेराई की। मात्र बीस डिग्री सेल्सियस पर इसका तेल निकाल लिया जाता है, जिससे तेल के समस्त लाभकारी तत्व नष्ट नहीं होते। भरोसे के आधार पर जिन लोगों ने इस तेल का एक बार उपयोग किया तो, उसके बाद तो एक बाजार ही तैयार हो गया। यह तकनीक उन्होंने बीएचयू में ही सीखा था।

खुद ही बना रहे हैं नई वैरायटी के बीज

चंद्रशेखर के अनुसार अब वह इतना सीख चुके हैं, बीएचयू की तरह बीजों के नए वैरायटी निकालते हैं। कई वैरायटी पर काम हो रहा है, जिसके पूर्ण हाेने पर रजिस्टर्ड करएंगे। उन्होंने बीज प्रशंस्करण उत्पादन के तीन प्लांट भी स्थापित कराए हैं, जिससे इससे चालीस लोगों को रोजगार मिला है। बीएचयू में पांच-छह अवार्ड मिले हैं। पूसा ने 2008 में प्रोग्रेसिव फार्मर अवार्ड, जगजीवन राम पुरस्कार एक बार प्रो. पंजाब सिंह के सहयोग समय उनके घर पर किसान मेला का आयोजन हुआ। उसके बाद किसान मेला बीएचयू में होने लगा। इसके अलावा वह कृषि मंत्रालय के सेंट्रल सीड कमेटी में सदस्य भी हैं। पूरे भारत से इस कमेटी में केवल दो ही सदस्य होते हैं।

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