ज्ञानवापी परिसर मामले में दायर दो नए वादों को मुकदमा के रुप में दर्ज करने का आदेश
सुनवाई के दौरान अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की तरफ से रईस अहमद अंसारी एखलाख अहमद और मुमताज अहमद की दलील थी कि उक्त मामले में वक्फ बोर्ड को पक्ष नहीं बनाया जा सकता। ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। ज्ञानवापी परिसर स्थित ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वरनाथ व श्रीनंदी महाराज की ओर से पक्षकारों द्वारा दायर दो नए वादों को सुनवाई के लिए अदालत ने स्वीकार कर लिया। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने दोनों वादों को मुकदमा (मूलवाद) के रुप में दर्ज करने का आदेश दिया है। दोनों वादों की पोषणीयता के बिंदु पर गत गुरुवार को पक्षकारों की बहस सुनने के पश्चात अदालत ने फैसला सुरक्षित कर लिया था। अदालत ने दोनों मुकदमों में अग्रिम सुनवाई के लिए 22 सितंबर की तिथि मुकर्रर की है।
ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वर और नंदी जी महाराज के पक्षकारों शीतला माता मंदिर के महंत पं. शिव प्रसाद पांडेय, मीरघाट निवासी सितेंद्र चौधरी समेत अन्य ने दोनों वाद दाखिल किए थे। दोनों वादों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन व अन्य अधिवक्ताओं ने पक्ष रखते हुए दलील दी कि ज्ञानवापी का संपूर्ण क्षेत्र ज्योॢतलिंग भगवान आदि विश्वेश्वरनाथ का क्षेत्र है। वेद पुराणों में इसकी प्रामाणिकता उल्लेखित है। ज्ञानवापी के तहखाने में अब भी ज्योतिर्लिंग लिंग विद्यमान है। मुगल शासक औरंगजेब के फरमान पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दिया गया। परिसर में सदियों से मौजूद श्रीनंदी जी महाराज इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि करता है कि आज भी उक्त ज्योॢतलिंग की तरफ उनका मुख मौजूद है। नंदी महाराज भगवान शिव के सवारी और सेवक हैं। जहां शिव रहते हैं वहीं नंदी जी विराजमान रहते हैं। अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने यह भी दलील दी कि सतयुग से पहले भगवान शिव ने स्वयं ज्योतिॢलंग की स्थापना की थी, जो शाश्वत है और वह नष्ट नहीं हो सकता। हिंदुओं को ज्योतिॄलग आदि विश्वेश्वरनाथ, मां श्रृंगार गौरी की पूजा-पाठ करने का पूरा अधिकार है। आदि विश्वेश्वरनाथ से नंदी जी महाराज का साक्षात्कार कराने के मूल स्थान पर नया मंदिर बनाने और हिंदुओं को वहां प्रवेश व पूजा पाठ करने में हस्तक्षेप से रोकने का अनुरोध किया।
सुनवाई के दौरान अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की तरफ से रईस अहमद अंसारी, एखलाख अहमद और मुमताज अहमद की दलील थी कि उक्त मामले में वक्फ बोर्ड को पक्ष नहीं बनाया जा सकता। ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। वक्फ एक्ट 1995 के प्राविधान का जिक्र करते हुए कहा कि वक्फ संपत्ति की सुनवाई का क्षेत्राधिकार लखनऊ स्थित वक्फ बोर्ड को है। उन्होंने दोनों वादों पर आपत्ति जताते हुए इसे मूलवाद के रुप में दर्ज नहीं करने की दलील दी। दोनों पक्षों ने अपने-अपने दलील के समर्थन में नजीर भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए।
अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनने और नजीरों के अवलोकन के बाद दोनों वादों को मूल वाद के रूप में दर्ज करते हुए सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया।